पूर्व विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर केंद्र सरकार में पहली बार मंत्री बने हैं और उन्होंने बताया है कि आखिरकार वह राजनीति में क्यों आए। उन्होंने कहा कि मैं राजनीति में शामिल होने का एक कारण यह है कि मैंने एक सरकार को सुधारों के बारे में बात करते देखा। पहली बार हमारे पास एक सरकार है जिसके लिए सुधार का मतलब है पोषण, लड़की की शिक्षा, मध्यवर्गीय लोगों की सेवाएं। तब मुझे लगा कि मुझे भी सुधार लाने में योगदान देना चाहिए। आपको बता दें कि विदेश सचिव के पद से रिटायर होने के बाद जयशंकर ने टाटा समूह के ग्लोबल कॉरपोरेट मामलों के अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला। जयशंकर को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से पद्म श्री पुरस्कार मिल चुका है।
नरेंद्र मोदी कैबिनेट में अनुभवी राजनयिक एस जयशंकर चीन और अमेरिका के साथ बातचीत में भारत के प्रतिनिधि भी रह चुके हैं। देश के प्रमुख सामरिक विश्लेषकों में से एक
दिवंगत के सुब्रमण्यम के पुत्र जयशंकर ऐतिहासिक भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के लिए बातचीत करने वाली भारतीय टीम के एक प्रमुख सदस्य थे। इस समझौते के लिए 2005 में शुरुआत हुई थी और 2007 में मनमोहन सिंह की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने इस पर हस्ताक्षर किए थे। जनवरी 2015 में जयशंकर को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और सुजाता सिंह को हटाने के सरकार के फैसले के समय को लेकर विभिन्न तबकों ने तीखी प्रतिक्रिया जतायी थी।
जयशंकर अमेरिका और चीन में भारत के राजदूत के पदों पर भी काम कर चुके हैं। 1977 बैच के भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस)अधिकारी जयशंकर ने लद्दाख के देपसांग और डोकलाम गतिरोध के बाद चीन के साथ संकट को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जयशंकर सिंगापुर में भारत के उच्चायुक्त और चेक गणराज्य में राजदूत पदों पर भी काम कर चुके हैं। 64- वर्षीय जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे हैं।
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