नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के आठवें रूप महागौरी की उपासना की जाती है। माता के इस स्वरूप ने भगवान शिव को पाने के लिए कठोर तपस्या की थी। उनका शरीर काला पड़ गया। प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें स्वीकार किया और उन पर गंगाजल डाला। इससे माता का शरीर कांतिवान और वर्ण गौर हो गया तब से उनका नाम गौरी हो गया।
महागौरी का स्वरूप: गौर रंग, सफेद वस्त्र और बैल की सवारी
इनका वाहन वृषभ अर्थात् बैल है। उनकी एक भुजा अभयमुद्रा में है, तो दूसरी भुजा में त्रिशूल है। तीसरी भुजा में डमरू है तो चौथी भुजा में वरमुद्रा में है। इनके वस्त्र भी सफेद रंग के हैं और सभी आभूषण भी श्वेत हैं।
पूजा विधि
1. महागौरी का ध्यान कर के कलश पर
अक्षत चढ़ाएं।
2. कलश पर पंचामृत और जल छिड़कें।
3. चंदन, हल्दी, मेहंदी, कुमकुम और गुलाब के फूल चढ़ाएं।
4. नारियल के साथ सौलह श्रंगार की सामग्री चढ़ाएं।
5. नारियल या खोपरे से बनी मिठाईयों का भोग लगाएं।
महत्त्व: महागौरी की पूजा से तनाव से मुक्ति और धन, एश्वर्य की प्राप्ति
मार्कंडेय पुराण के अनुसार, महागौरी की पूजा करने से धन, ऐश्वर्य, शांति मिलती है। तनाव से मुक्ति मिलती है। इनकी आराधना से सोम चक्र जाग्रत होता है। इससे असंभव काम भी पूरे हो जाते हैं।
हर तरह के पाप खत्म होते हैं। सुख-सौभाग्य की प्राप्ति होती है। हर मनोकामना पूर्ण होती है। महागौरी सिखाती हैं कि हम किसी भी क्षैत्र में कुछ काम कर रहे हों, वहां हमारा चरित्र एकदम उज्वल होना चाहिए। निश्छल स्वभाव और कर्मों में पवित्रता होनी चाहिए।
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