अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: अर्थव्यवस्था को कोविड-पूर्व की स्थिति में लौटाने के तमाम प्रयासों के बावजूद इस क्षेत्र में अपेक्षित गति नहीं आ पा रही है। पिछली तिमाही में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि को देखते हुए उत्साह जगा था कि जल्दी ही अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट आएगी। सरकार ने भी अनुमान लगाया था कि इस वित्त वर्ष में आर्थिक विकास दर नौ फीसद के आसपास रह सकती है। मगर इस अनुमान तक पहुंचना अभी संभव नहीं लग रहा। राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की ताजा रिपोर्ट में औद्योगिक क्षेत्र की गति धीमी ही दर्ज हुई है।
खनन के क्षेत्र में जरूर कुछ उत्साहजनक नतीजे देखने को मिले हैं, मगर बाकी क्षेत्रों में सुस्ती जारी है। इन सबके बीच महंगाई पर अंकुश लगाना कठिन बना हुआ है। खुदरा महंगाई साढ़े पांच फीसद से अधिक हो गई है। जबकि कोविड के दौरान यह पांच फीसद से नीचे थी। तब वस्तुओं की पहुंच सुगम नहीं रह गई थी। औद्योगिक उत्पादन में सुस्ती और महंगाई में निरंतर बढ़ोतरी दो ऐसे बिंदु हैं, जो आर्थिक विकास दर के पांव में पत्थर का काम करते हैं। खुद रिजर्व बैंक ने अनुमान जताया है कि अभी महंगाई की दर और बढ़ेगी तथा इस वित्त वर्ष के अंत तक अपने शीर्ष पर रहेगी, फिर उसमें उतार शुरू होगा।
हालांकि महंगाई के कारणों में पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ने को भी एक प्रमुख कारण माना जाता है, मगर पिछले कुछ समय से सरकारों ने इसे काबू में कर रखा है। फिर खाद्य पदार्थों की कीमतों में बढ़ोतरी इसलिए भी लोगों की समझ से परे है कि इस मौसम में फलों, सब्जियों, दुग्ध उत्पाद और कई नई फसलों की बाजार में आवक कुछ अधिक रहती है। फिर भी अगर वस्तुओं की कीमतें उतार
पर नजर नहीं आ रहीं, तो इसमें केवल पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों का दोष नहीं माना जा सकता।
कई जगहों से ऐसी भी शिकायतें सुनने को मिल रही हैं कि फसल न बिक पाने की वजह से किसान सब्जियों को सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं। दरअसल, महंगाई पर काबू न पाए जा सकने के पीछे एक बड़ा कारण कृषि उत्पाद का माकूल भंडारण और बाजार तक उनकी पहुंच सुनिश्चित न हो पाना है। फिर किसानों से खरीद और बाजार तक फसलों की पहुंच बनाने में कीमतों का बड़ा अंतर बिचौलियों की मनमानी की वजह से पैदा होता है। उसे नियंत्रित और व्यावहारिक बनाने के लिए कोई कारगर उपाय नहीं किया जाता। इससे मध्य और निम्न आयवर्ग पर महंगाई की मार पड़ती है।
औद्योगिक उत्पादन को अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है, मगर उसकी सुस्ती नहीं टूट पा रही, तो यह निस्संदेह सरकार के लिए चिंता का विषय है। कोविड के दौरान कल-कारखाने बंद रखने पड़े थे, इसलिए उस वक्त औद्योगिक उत्पादन में गिरावट समझी जा सकती है, मगर जब से बाजार खुल गए हैं और कारोबारी गतिविधियां सुचारु हो चली हैं, औद्योगिक उत्पादन में तेजी की उम्मीद की जा रही थी।
यह अभी रफ्तार नहीं पकड़ रही, तो इसके कुछ कारण स्पष्ट हैं। एक तो बाजार में वस्तुओं की मांग घटी है। दूसरे, बाहर के बाजारों तक वस्तुओं की पहुंच सुगम बनाना कठिन बना हुआ है। बाजार में मांग तभी बढ़ेगी, जब लोगों की क्रयशक्ति बढ़ेगी। क्रयशक्ति बढ़ाने के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा करने जरूरी हैं। कोविड काल में बहुत सारे लोगों के रोजी-रोजगार के साधन छिन गए, उन्हें लौटाने का प्रयास करना होगा। जब तक इन कमजोर कड़ियों को दुरुस्त नहीं कर लिया जाता, अर्थव्यवस्था की सुस्ती नहीं टूटने वाली।
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments