अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: कोरोना महामारी ने हमारी दुनिया को तरह-तरह से प्रभावित किया है। कोरोना महामारी से निजात को लेकर अभी भी बहुत ज्यादा उम्मीदें हैं नहीं। क्योंकि खतरे का स्तर अभी भी कम नहीं हुआ है इसका व्यापक असर मानव मस्तिष्क पर भी पड़ा है, जिस पर लगातार अध्ययन व शोध का क्रम चल रहा है। वैश्विक स्तर पर सबसे चिंताजनक स्थिति यूरोपीय देशों की है। गौरतलब है कि यूरोप के कई देश महामारी की पहली लहर के समय से ही काफी चुस्ती और एहतियात से काम लेते रहे हैं। इसके लिए उनकी हर तरफ प्रशंसा भी हुई। हालांकि जर्मनी और रूस सहित कई देशों में बाद के दिनों में यह चुस्ती ढीली भी पड़ी। इस बीच, कोरोना विषाणु के नए स्वरूप आते जाने से भी चिंता बढ़ी है।
बता दे कि एक व्यापक अध्ययन में 19 देशों के हेल्पलाइन नंबरों पर की गई 80 लाख टेलीफोन कॉल का अध्ययन किया गया है। इसमें यह पाया गया कि पहली लहर के दौरान लोग मानसिक रूप से ज्यादा परेशान थे और लोगों ने मदद मांगने के लिए खूब कॉल किए। यूरोप में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रसार पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) भी चिंता जता चुका है। ज्यादा चिंताजनक बात यह है कि टीकों की पर्याप्त आपूर्ति के बावजूद यूरोप महामारी का केंद्र बना हुआ है। बहुत सारे टीके उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन वहां टीकों का उपयोग समान नहीं रहा है। इसलिए कोरोना मामलों की संख्या फिर से करीब-करीब रेकार्ड स्तर तक बढ़ने लगी है। करीब तिरपन देशों में कोरोना संक्रमण की वजह से अस्पताल में भर्ती होने की दर अगर एक हफ्ते की तुलना में दोगुनी से अधिक हुई है तो आशंका यही है कि यह महामारी की नई लहर का संकेत है। यदि ऐसा ही चला तो इस क्षेत्र में अगले साल फरवरी तक पांच लाख लोगों को इस महामारी के कारण जान गंवानी पड़ सकती है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक यूरोपीय देशों में टीकाकरण की रफ्तार अलग-अलग है। औसतन सैंतालीस फीसद लोगों का टीकाकरण पूरा हो चुका है। महज आठ देश ऐसे हैं, जहां पर सत्तर फीसद आबादी टीके की सभी खुराक ले चुकी है। इस दौरान वे दृश्य लोगों ने टेलीविजन पर खूब देखे हैं जिनमें कई यूरोपीय देशों में कोरोना पाबंदियों को सरकारों ने या तो न्यूनतम कर दिया, या फिर ऐसी सख्ती के खिलाफ वहां जनता विरोध में सड़कों पर उतरी। इस स्थिति को वैज्ञानिकों और चिकित्सकों के कई समूहों के अलावा डब्लूएचओ भी गंभीर मानता रहा है।
डब्ल्यूएचओ ने चेतावनी दी है कि टीकों की उपलब्धता
के बावजूद यूरोप में संक्रमण के मामले अगर बढ़ रहे हैं तो यह दुनिया के लिए खतरे की एक और घंटी से कम नहीं है। साफ है कि कोरोना संक्रमण के खिलाफ कोई भी कवायद अगर एकतरफा या असंतुलित होगी तो इस महामारी के खतरे से आसानी से मुक्ति संभव नहीं है। भारत उन देशों में शामिल है जो पहले दिन से यह कहता रहा है कि इस महामारी के खिलाफ न सिर्फ वैश्विक पहल की स्पष्ट रूपरेखा तय होनी चाहिए बल्कि इस पर साझा अमल भी होना चाहिए।
वहीं हेल्पलाइन नंबरों पर सामान्य दिनों की तुलना में 35 प्रतिशत अधिक कॉल आई थी। स्विट्जरलैंड में लॉजेन विश्वविद्यालय के एक अर्थशास्त्री और शोध पत्र के एक सह-लेखक मारियस ब्रुलहार्ट कहते हैं, ‘घरेलू हिंसा या आत्महत्या के कारण कॉल में वृद्धि का कोई संकेत नहीं था।’ लोग किसी न किसी से बात करना चाहते थे, महामारी संबंधी अपनी चिंताओं का इजहार करना चाहते थे। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि फ्रांस और जर्मनी में लॉकडाउन के अधिक सख्त होने पर हेल्पलाइन पर आत्महत्या से संबंधित कॉल में वृद्धि हुई थी, लेकिन जब सरकार ने जरूरतमंदों को वित्तीय सहायता का प्रस्ताव किया, तब खुदकुशी संबंधी चिंता कम हो गई। भारत जैसे देश में यह गौर करने लायक तथ्य है, जहां तनाव के दौर में किसानों व छोटे कारोबारियों ने बड़ी संख्या में आत्महत्या की है।
संकेत साफ है, अगर किसी भी संकट या महामारी के समय ऐसे लोगों तक आर्थिक सहायता पहुंचा दी जाए, तो आत्महत्या के मामलों को कम किया जा सकता है। पश्चिमी देशों में ऐसे श्रमिकों व व्यवसायियों की पर्याप्त मदद की गई है, जो महामारी व लॉकडाउन के समय लाचार हो गए थे। शोध की यह परियोजना 2020 में महामारी के शुरुआती दिनों से ही जारी थी, जब शोधकर्ता मानसिक स्वास्थ्य पर महामारी व लॉकडाउन के प्रभाव की निगरानी के लिए रास्ता तलाश रहे थे। शोध के आंकड़े आने वाले समय में बहुत काम आएंगे। शोध दल ने अमेरिका, चीन, लेबनान व 14 यूरोपीय देशों सहित 19 देशों व क्षेत्रों से आंकड़े जुटाए। काश! यह अध्ययन और बड़े पैमाने पर किया जाता।
वैज्ञानिक मानते हैंकि कुल मिलाकर यह शोध मानसिक स्वास्थ्य में बदलाव की निगरानी के लिए एक रोमांचक तरीका प्रदान करता है। यह सच है कि मानव समाज में आम तौर पर मानसिक स्वास्थ्य की उपेक्षा होती है और बदलते समय के साथ मानसिक स्वास्थ्य को समझना और समझाना जरूरी होता जा रहा है। संकट के समय मानव मदद और सामाजिकता की तलाश करने लगता है। मतलब सरकार के स्तर पर भी ऐसी नीतियों को बढ़ावा देना चाहिए, जो प्रत्यक्ष सामाजिकता बढ़ाएं।
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments