फिल्म रिव्यू- अमर सिंह चमकीला

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फिल्म रिव्यू- अमर सिंह चमकीला

Gauri Manjeet Singh 13-04-2024 17:01:00

इम्तियाज़ अली ने पंजाब के चर्चित दिवंगत सिंगर अमर सिंह चमकीला की लाइफ पर फिल्म बनाई है. ये उनकी बायोपिक बताई जा रही है. मगर इस फिल्म की कहानी चमकीला की ज़िंदगी से थोड़ी अलग है. ये फिल्म चमकीला की वो कहानी दिखाती-बतलाती है, जैसा इम्तियाज़ को लगता है कि चमकीला थे. मगर अपने यहां अब तक जितनी भी बायोग्राफिकल फिल्में बनी हैं, उसमें इम्तियाज़ की 'अमर सिंह चमकीला' अलग नज़र आती है. अलग समझ आती है. क्योंकि ये फिल्म सिर्फ चमकीला की लाइफ के मुख्य इवेंट्स को उठाकर कहानी में पिरो नहीं देती है. उस फेनोमेना को समझने की कोशिश करती है. फिर हमें बताती है. वो प्रोसेस इस फिल्म को अलग बनाता है. सिनेमैटिक टूल्स  की मदद से ये फिल्म आपको एंटरटेन करने के साथ-साथ सोचने पर भी मजबूर करती है. आप चमकीला के बारे में जो भी सोचते हैं, उस नज़रिए को चैलेंज करती है. एक इन्सान के तौर पर आपको चैलेंज करती है. क्योंकि ये हमारे सोशल बिहेवियर के बारे में बात करती है. हम क्या हैं और क्या दिखना चाहते हैं. इस द्वंद को एक्सप्लोर करती है. फिल्म में एक गाना है 'बाजा'. इस गाने को देखकर 'तमाशा' के गाने 'चली कहानी' की याद आती है. क्योंकि इसमें आपको चमकीला की कहानी संक्षेप में सुनाई जाती है. इस गाने में एक लाइन है. 

"जिस वजह से चमका वो, उस वजह से टपका. चमकीला, सेक्सिला, ठरकीला, वो गंदा बंदा." 

ये लाइन सेल्फ-एक्सप्लेनेटरी है. थोड़ी अटपटी भी. क्योंकि चमकीला के साथ जो भी हुआ, उसके गाने की वजह से हुआ. लोगों ने उसका गाना सुनकर उसके बारे में राय कायम की. क्योंकि वो अपने गानों में पुरुषों की फैंटसी के बारे में बातें करता था. महिलाओं के शरीर पर गाने बनाता था. उसने बचपन से अपने आसपास जो देखा, जो सुना, जिन परिस्थियों से गुज़रा, उन्हीं चीज़ों ने उसकी पर्सनैलिटी को शेप किया. अब वो बड़े होकर वही चीज़ें कर रहा है. 

फिल्म में एक सीन है. चमकीला की उम्र कोई पांच-सात साल है. कुछ महिलाएं जमा होकर एक गाना गा रही हैं. उसमें 'खड़ा' शब्द बार-बार आ रहा है. और उनके गाने में इस शब्द का वही अर्थ है, जो आपके दिमाग में आ रहा है. इस पर चमकीला अपनी मां से पूछता है कि 'खड़ा' का क्या मतलब होता है. ये किस बारे में बात हो रही है. तो मां उसे थप्पड़ मारकर चुप करा देती है. फिर वो बड़ा होता है, तो उसी तरह के गाने बनाने शुरू कर देता है. क्योंकि उसे लगता है कि लोग इस तरह के गाने सुनना पसंद करते हैं. और उसका ये सोचना सही साबित होता है. क्योंकि कुछ ही सालों में वो 'ऐसे' गाने गाकर पंजाब का सबसे मशहूर सिंगर बन जाता है. चमकीला के आर्ट से लेकर उसकी लाइफ तक इस चीज़ से डिफाइन होती है कि लोग उसके बारे में क्या सोचते हैं. 

ये फिल्म सामाजिक रूप से चमकीला को समझने की कोशिश करती है. उसका एक आयाम ये भी है कि जब वो स्टेज से खड़े होकर गाता है. और नीचे लोग नाचते हैं. एंजॉय करते हैं, तो उसे ऐसा लगता है कि उसकी कोई हैसियत है. उसे अथॉरिटी का भाव महसूस होता है. जो उसने पहले कभी फील नहीं किया. क्यों? क्योंकि वो एक कथित नीची जाति में पैदा हुआ. उसे धमकियां मिलती हैं. वो वादा करता है कि अश्लील गाने नहीं गाएगा. धार्मिका गाने बनाने लगता है. मगर जैसे ही वो स्टेज
पर पहुंचता है, लोग उससे 'पुराना' वाला गाना गाने को कहते हैं. और वो गाना शुरू कर देता है. चमकीला की इस हरकत पर उसके साथ काम करने वाला एक साथी कहता है, 

"जब गाने की बात आती है, तो ये लोगों का ग़ुलाम है जी" 

ये ग़ुलामी उसकी रगों में रची-बसी है. वो कभी गई ही नहीं. वो गाने गाकर स्टार बन गया. मगर इन्सान तो वो वही है. इसलिए वो लोगों के कहने पर फट से अश्लील गाने गाना शुरू कर देता है. क्योंकि उसे जो हाई चाहिए, वो लोगों की प्रतिक्रिया से आती है. आर्ट और आर्टिस्ट, धर्म, जाति, समय और समाज जैसी चीज़ों से परे होता है. मगर सिर्फ लेखन में. जीवन में नहीं. अमर सिंह चमकीला एक ऐसे व्यक्ति थे, जिन्हें अलगाववादी भी मारना चाहते थे. पुलिस भी खत्म करना चाहती थी. समाज और धर्म के ठेकेदार भी उनके खिलाफ थे. साथी सिंगर्स को भी वो चुभने लगे थे. और ये सब क्यों हो रहा था? उनके गानों की वजह से. 


इम्तियाज़ ने अमर सिंह चमकीला की कहानी को कहने का जो तरीका चुना है, वो कारगर साबित होता है. फिल्म की शुरुआत चमकीला और उनकी पत्नी अमरजोत की मौत से होती है. फिल्म की कहानी एक रात में घटती है. मगर उसमें आप चमकीला का अतीत भी जान लेते हैं और वर्तमान से भी अप टु डेट रहते हैं. फिल्म की नॉन-लीनियर बुनाई कहानी में आपकी दिलचस्पी और कुतूहल बनाए रखती है. ये फिल्म जैसी दिखती है, उसमें एडिटिंग का बड़ा योगदान है. आरती बजाज ने फिल्म में कई मौकों पर 2डी एनिमेशन का इस्तेमाल किया है.जो कहानी में मिथ वाला भाव जोड़ती है. वहीं दूसरी तरफ आर्काइवल फुटेज और तस्वीरों की मदद से उसे असलियत के बेहद करीब ले जाने की कोशिश की गई. ये दोनों ही चीज़ें नैरेटिव के साथ जाती हैं.  

फिल्म में दिलजीत दोसांझ ने अमर सिंह चमकीला का रोल किया है. चमकीला होने में और चमकीला बनने में जो फर्क है, वो आपको दिलजीत की परफॉरमेंस में दिखता है. दिलजीत भी चमकीला की ही तरह पंजाब में पैदा हुए. वहीं पले-बढ़े. उनके गाने सुनकर बड़े हुए. प्लस से वो खुद भी सिंगर हैं. इसलिए जब वो चमकीला बनते हैं, तो यकीन होता है. परिणीति चोपड़ा ने चमकीला की को-सिंगर और पत्नी अमरजोत का रोल किया है. परिणीति कहीं खलती नहीं हैं. एक प्रॉपर पंजाबी किरदार में उनके लिए ये हासिल कर लेना, बड़ी बात है. मगर वो कहीं स्टैंड आउट नहीं करतीं. और उन्हें कुछ खास मौके भी नहीं मिले हैं. इसके अलावा फिल्म में अंजुम बत्रा और अनुराग अरोड़ा, वो दो एक्टर हैं, जिनका काम आपको याद रहेगा. अंजुम ने ढोलकिया का रोल किया है, जो चमकीला को पहला मौका देता है. वहीं अनुराग ने उस DSP का रोल किया है, जिनको चमकीला के दोस्त और शागीर्द उसकी कहानी सुना रहे हैं.   
  
'अमर सिंह चमकीला' रेगुलर बायोपिक नहीं है. क्योंकि न ये फिल्म पूरी तरह से फिक्शनल है, न ही पूरी तरह से तथ्यात्मक. मगर हमारे यहां जितनी भी बायोपिक्स बनी हैं, उसमें इस फिल्म का दर्जा अव्वल रहेगा. क्योंकि इसका फॉरमैट पिछली सभी बायोपिक्स से अलग है. सब्जेक्ट मटीरियल चाहे जो हो, उसको बरता कैसे जाता है, सबकुछ उस पर निर्भर करता है. इम्तियाज़ अली ने इस फिल्म में कुछ अलग करने की कोशिश की है. इसमें वो शत-प्रतिशत सफल रहे हैं. 'अमर सिंह चमकीला' नेटफ्लिक्स पर स्ट्रीम हो रही है. इसे एक बार देखा जाना चाहिए. 

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