नौटंकी की मलिका गुलाबबाई

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नौटंकी की मलिका गुलाबबाई

Administrator 30-04-2019 21:36:38

हिमांशु बाजपेयी

कोई भी ईमानदार आकलन इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि नौटंकी की मलिका कही जाने वाली पद्मश्री गुलाबबाई अवधी लोक की सबसे बड़ी नायिकाओं में शुमार किए जाने की हकदार हैं. ऐसा सिर्फ उनकी नौटंकियों की असाधारण लोकप्रियता के चलते नहीं है बल्कि गुलाबबाई के उस संघर्ष विद्रोह, निरालेपन और प्रेम की वजह से है जिसने उनकी नौटंकियों की तरह उनके जीवन को भी हाशिए के लोगों खासकर महिलाओं के लिए एक मिसाल बना दिया.
 
1919 में अति पिछड़ी बेड़िया जाति में जन्मी गुलाबबाई ने समाज से विद्रोह करते हुए नौटंकी में पुरूषों के वर्चस्व को तोड़ा और देश की पहली महिला नौटंकी कलाकार होने का गौरव प्राप्त किया. सत्रह साल की होते होते उन्होने दूसरी लड़कियों को नौटंकी सिखाना शुरू किया उससे वक्त पुरूष कलाकार न लड़कियों को सिखाते थे न मंच पर चढ़ने देते थे.  इसके पीछे अश्लीलता और सामाजिक परंपराओं का तर्क दिया जाता था.  उन्होने खुलकर इस बात को कहा कि महिलाओं के नौटंकी में आगमन को अश्लीलता का आगमन न माना जाए. अश्लीलता जब आएगी पुरूषों की वजह से आएगी. 
 
महज़ बीस-बाईस साल की उम्र में गुलाब नौटंकी का पर्याय बन चुकी थीं और अपनी नौटंकियों के कथानक और प्रसंग खुद तैयार करने लगी जिनमें से ज्यादातर ग्रामीण जनता को धर्म, इतिहास और सामाजिक सरोकारों की जानकारी देने वाले होते थे. दिलचस्प है कि गुलाब की कही बात उनकी कंपनी में सारे पुरूषों को माननी पड़ती थी. क्योंकि नौटंकी की कामयाबी गुलाब के होने से होती थी. सुलताना डाकू, हरिशचंद्र महाराज,लैला-मजनूं आदि  उनकी कई नौटंकियां आज भी जन में नौटंकी के ब्रांड के बतौर रची-बसी हैं. उनके गाने बालीवुड में धड़ल्ले से इस्तेमाल हुए हैं.
सफलता पाने के बाद भी गुलाब अपनी जड़ें और ज़िम्मेदारियां नहीं भूलीं. अपने सवर्ण बहुल गांव बलपुरवा
में उन्होने एक भव्य हवेली बनवाई जो कि उन्होने बेड़िया समाज को समर्पित की. उनके गांव में आज भी इसे बेड़िया के संघर्ष और कामयाबी का प्रतीक माना जाता है. हमेशा साल की पहली नौटंकी गुलाब अपने गांव में ही करती थीं. 
आर्थिक मजबूती को गुलाब महिलाओं की तरक्की की पहली सीढ़ी मानती थीं. पुरूष कमाए और औरत घर में बैठे इसपर उनका विश्वास नहीं था. कई रईसों की तरफ से शादी के निवेदन आने के बावजूद नौटंकी छोड़ना और शादी करना गवारा नहीं किया. वे प्रेम को ज़रूरी मानती थीं शादी को नहीं. और प्रेम भी उन्होने अद्भुत ढंग का किया. एक मुसलमान से. उसी से बिना शादी किए बच्चे भी पैदा किए और बड़े सलीके से उनकी परवरिश भी की. 
जिस दौर में सिर्फ धाकड़ पहलवान ही नौटंकी कंपनियां चलाते थे, गुलाब ने पूरी ठसक के साथ अपनी खुद की नौटंकी कंपनी ‘द ग्रेट गुलाब थिएटर कंपनी’ बनाई जो कि किसी महिला द्वारा बनाई गई पहली कंपनी थी. इसके लिए बिल्कुल प्रोफेशनल ढंग का बिजनेस मॉडल भी तैयार किया. इसमें उनकी भूमिका प्रबंधक की भी थी. जिसमें तकरीबन पचास लोग उनके मातहत काम करते थे. 
निजी जीवन की तरह अपनी कंपनी में भी गुलाब ने धर्म-जात का भेदभाव मिटा दिया. उनकी कंपनी में हिन्दू मुसलिम एकता का अद्भत उदाहरण था, दोनो समुदाय के लोग मिल-जुल कर एक दूसरे के त्योहार मनाते थे. आखिरी समय तक गुलाब नौटंकी समेत सभी लोक कलाओं के संरक्षण लिए कोशिश करती रहीं. इस बात पर भी सवाल उठाती रहीं कि कला एवं संस्कृति से दलितो-आदिवासियों के योगदान को खारिज क्यों किया जाता है जबकि बेड़िया होने के बावजूद उन्होने अपनी कला-संस्कृति से अप्रतिम प्रेम किया है. पद्मश्री और संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुलाबबाई का देहांत 1996 में कानपुर में हुआ.
  
जनादेश न्यूज़ नेटवर्क   

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