तेल की जूझती कीमतों पर लगाम...

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तेल की जूझती कीमतों पर लगाम...

Anjali Yadav 25-11-2021 17:33:06

अंजलि यादव,          
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,          


नई दिल्ली: किसी ने बहुत खूब कहा है सखी सैया खूब कमात हैं महंगाई डायन खाय जात हैं” ये कुछ बोल आज की परिस्थति को स्पष्ट बया करते हैं. आज का मध्यवर्गीय परिवार सबसे अधिक महंगाई की मार झेल रहा हैं. कोरोनाकाल में महंगाई की समस्या धीरे-धीरे दानवी रूप ले रही हैं. जो इसानों को जीते जी मार डालने में कोई कसर नही छोड़ रही हैं. बता दे कि तेल और गैस की ऊंची कीमतों से जूझते दुनिया के प्रमुख तेल उपभोक्ता देशों ने पूरे तालमेल के साथ अपने भंडार से तेल की आपूर्ति बढ़ाने का फैसला किया है। अपनी तरह की इस पहली और अनोखी पहल का मकसद अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को नीचे लाना है। ध्यान रहे, पिछले करीब एक साल में अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में 50 फीसदी से ज्यादा बढ़ोतरी हो चुकी है। पिछले महीने यह तीन साल के शिखर 86 डॉलर प्रति बैरल को भी पार कर गया था।
 

भारत और अमेरिका समेत तमाम तेल उपभोक्ता देश तेल निर्यातक देशों के समूह ओपेक (ऑर्गनाइजेशन ऑफ पेट्रोलियम एक्सपोर्टिंग कंट्रीज) से बार-बार तेल उत्पादन में मांग के अनुरूप बढ़ोतरी लाने का आग्रह कर रहे हैं, लेकिन वह इस पर ध्यान नहीं दे रहा है। ऐसे में अमेरिका, चीन, भारत, जापान, साउथ कोरिया, ब्रिटेन जैसे देशों ने अपने भंडारों से तेल की आपूर्ति बढ़ाने का फैसला किया है।

गौर करने की बात है कि कोरोना महामारी के उथल-पुथल भरे इस दौर में एनर्जी मार्केट को असाधारण उतार-चढ़ावों से गुजरना पड़ा। लॉकडाउन जैसे कदमों के प्रभाव में एक समय उत्पादन संबंधी गतिविधियां ठप पड़ने से तेल की मांग में अभूतपूर्व कमी आ गई थी। उसके बाद धीरे-धीरे हालात बदले। लेकिन अब जब मांग महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच रही है, तेल सप्लाई उस
अनुपात में नहीं बढ़ रही, जिससे न केवल इन देशों में पेट्रोल और गैस के भाव आसमान छू रहे हैं बल्कि आम लोगों को कई अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

भारत में भी बेलगाम हो रही पेट्रोल की कीमतों को कुछ हद तक नियंत्रित करने के लिए एक्साइज ड्यूटी में कमी लानी पड़ी, जिससे सरकारी खजाने पर करीब 60,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ा। हालांकि, यह बात भी सच है कि भारत में हाल के वर्षों में इस पर एक्साइज ड्यूटी में काफी बढ़ोतरी हुई थी। असल में, तेल की ऊंची कीमतें न केवल महंगाई बढ़ा रही हैं बल्कि इस वजह से इकॉनमिक रिकवरी में भी मुश्किल हो रही है। अपने रिजर्व से तेल निकाल कर ओपेक देशों को उपयुक्त संदेश देने का यह फैसला इसी मजबूरी से निकला है।



हालांकि चाहे भारत के 3.8 करोड़ बैरल के भंडार में से 50 लाख बैरल निकालने की बात हो या अमेरिका के 60 करोड़ बैरल के भंडार में से 5 करोड़ बैरल निकालने की, यह मात्रा इतनी कम है कि इसका कोई और अर्थ नहीं लिया जा सकता। निश्चित रूप से यह एक सांकेतिक कदम है। अब देखने वाली बात यह है कि ओपेक देश इसे किस रूप में लेते हैं। उनकी अगली बैठक 2 दिसंबर को होनी है जिसमें वे जनवरी के लिए अपनी उत्पादन योजना को अंतिम रूप देंगे। उम्मीद की जानी चाहिए कि ओपेक तेल उपभोक्ता देशों के इस कदम को सही संदर्भों में लेते हुए इस पर पॉजिटिव ढंग से रिएक्ट करेगा। वहीं रिजर्व बैंक और सरकार के तकनीकी जादू टोनों से अगर महंगाई रूकनी होती तो कब की रूक जाती. मगर यहाँ तो हालत ये हैं मर्ज बढ़ता ही गया ज्यों ज्यों दवा की, जब तक मुक्त व्यापार के पाखंड की दुहाई देना छोड़ कर सरकार की बड़ी कार्यवाही नहीं करेगी, महंगाई नहीं रूकेगी.

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