जाने बारिश में 3 महीने इस गांव से कोई क्यों नहीं निकलता

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जाने बारिश में 3 महीने इस गांव से कोई क्यों नहीं निकलता

Anjali Yadav 17-10-2020 17:40:59

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,



नई दिल्ली: अगर हम बिहार के गया की बात करे तो कहा जाता है कि पूर्वजों की मुक्ति का मुख्य द्वार है. एक तरफ हिन्दु वेदशास्त्रों और पुराणों के मुताबिक, गया में काल का नियम नहीं चलता. ये धरती है ज्ञान की, अर्पण की और तर्पण की. यहां आकर लोग अपने पुरखों को याद करते हैं. वहीं दुसरी ओर तीन महीनों तक गया के इस गांव से लोग कहीं भी निकल नहीं पाते. तो आइए जानते है कि आखिर क्या कारण है कि 3 महीनों तक गया के इस गांव के लोग कहीं भी बहार क्यों नहीं निकलते है- 



गांव से कोई नहीं निकलता बहार

बता दे कि बारिश के तीन महीनों तक गया के इस गांव से लोग कहीं भी निकल नहीं पाते. वजह है इस गांव के चारों तरफ पानी भर जाता है. यहां से निकलने के लिए न ही सड़क रहती है. न ही कोई पुल बनाया हुआ है. आजादी के बाद से अब तक इस गांव के लोग बांस से बने चचरी पुल का इस्तेमाल करते हैं. हर साल बाढ़ में ये पुल तबाह हो जाता है, फिर हर साल ऐसा ही पुल गांव के लोग मिलकर बनाते हैं.



नेता और अधिकारी इस गांव को गए भूल

इस गांव के लोगों का कहना है कि नेता और अधिकारी इस गांव को भूल गए हैं. यहां चुनाव में कोई नेता भी नहीं आता. जबकि, यह गांव पूर्व सीएम जीतन राम मांझी और सांसद सुशील कुमार सिंह के राजनीतिक क्षेत्र में आता है. गया से 120 किलोमीटर दूर इमामगंज विधानसभा क्षेत्र के डुमरिया प्रखंड के तंडवा गांव जाने के लिए सोरहर नदी पर पुल भी नहीं बना है. ग्रामीणों
ने बताया कि आजादी के सात दशक बाद भी इस नदी पर सिर्फ आश्वासन के पुल ही बनते आए हैं. 



 भरोसा देकर तंडवा गांव से लेते रहे वोट

चुनाव के समय सभी प्रत्याशी इसी नदी पर पुल बनाने का भरोसा देकर तंडवा गांव से वोट लेते रहे हैं. बरसात के 3 महीने में नदी में जब पानी आता है तो आवागमन बंद हो जाता है. तंडवा के आसपास के दर्जनों गांव पानी में डूब जाते हैं. ग्रामीणों को परेशानी का सामना करना पड़ता है. नेताओं और अधिकारियों का चक्कर लगा कर थक चुके ग्रामीण अब खुद ही चंदा करके हर साल चचरी का पुल बना लेते हैं. 



30 गांवों को जोड़ता है पुल

गांव के लडके और लड़कियों भी इसी पुल को पार कर के अपने स्कूल जाते हैं. ग्रामीणों ने बताया की यह नदी गांव और मेन रोड के बीच है. इस नदी पर कुछ साल पहले पुल बनाने का काम शुरू हुआ था लेकिन फिर किसी वजह से ये काम रुक गया. ठेकेदार भी दो दिन काम करके भाग गया. तब हम लोगों ने मिलकर बांस का पुल बनाया. यह पुल 30 गांवों को जोड़ता है.



पूर्वजों के समय से ही हाल रहे बुरे

तंडवा गांव के मुकेश प्रसाद कहते हैं कि इस नदी का यह हाल हमारे पूर्वजों के समय से ही है. कोई भी विधायक हम लोगों की बात नहीं सुनता. गांव में कोई बीमार हो जाए तो इसी पुल से पार करके जाना पड़ता है. अगर गांव में बाढ़ आ जाती है तो लोग खटिया पर मरीज को रख कर नदी पार करते हैं. अगर नदी में बहाव तेज होता है तो 10 किलोमीटर घूम कर जाते हैं. 

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