एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल में ऐसे बरतें सावधानी

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एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल में ऐसे बरतें सावधानी

Khushboo Diwakar 03-09-2019 16:08:35

एक दिन हम सभी वातावरण में मौजूद बैक्टीरियल या फंगल इन्फेक्शन से सर्दी-जुकाम, गले के इन्फेक्शन, वायरल, निमोनिया और पेट संबंधी तरह-तरह की बीमारियों के शिकार होते रहते हैं। हालांकि डॉक्टर इन बीमारियों के इलाज के लिए दवाएं देते हैं, लेकिन जब स्थिति में सुधार नहीं होता तो जरूरत पड़ती है इन बीमारियों की जड़ यानी बैक्टीरिया के विकास को रोकने या खत्म करने की। इस काम के लिए रोगी को एंटीबायोटिक या एंटीबैक्टीरियल मेडिसिन दी जाती हैं, जो विभिन्न तरह के बैक्टीरियल संक्रमण से होने वाली बीमारियों के इलाज में कारगर साबित होती हैं। 

इस्तेमाल में सावधानी
एंटीबायोटिक दवा के गलत या जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल करने से दुनिया भर में एंटीबायोटिक प्रतिरोध के मामले बढ़ते जा रहे हैं, जो चिंता का विषय है। कई डॉक्टर बीमारी की ठीक से जांच किए बगैर रोगी को शुरू में ही एंटीबायोटिक दवा दे देते हैं, जिससे सुपरबग्स की समस्या सामने आती है। इससे रोगी के स्वास्थ्य पर हमला बोलने वाले बैक्टीरिया पर ये एंटीबैक्टीरियल दवाएं असर नहीं करतीं। इससे बैक्टीरियल संक्रमण के मामले बढ़ते जा रहे हैं और उनके लिए समुचित मेडिसिन न होने के कारण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है।

ये हैं बहुत शक्तिशाली
देखा जाए तो एंटीबायोटिक मेडिसिन बहुत शक्तिशाली दवाएं हैं, जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया या फंगल इन्फेक्शन से लड़ती हैं। ये बैक्टीरिया हमारी श्वेत रक्त कोशिकाओं पर हमला करते हैं और वहां करीब 16 मिनट में मल्टीप्लाई होकर दोगुने होते जाते हैं। ये बहुत जल्द हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर कर देते हैं, जिससे हम कई बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं। अगर इन बैक्टीरिया या फंगस को खत्म नहीं किया जाता तो यह मल्टीप्लाई होकर हमारी स्थिति को और बिगाड़ सकते हैं। एंटीबायोटिक मेडिसिन दो तरह से काम करती हैं- एक बैक्टीरिया को शरीर के विभिन्न ऑर्गन्स में बढ़ने या मल्टीप्लाई होने से रोकती हैं और दूसरी उन्हें खत्म करती हैं। रोगी इन एंटीबायोटिक मेडिसिन को तीन तरह से ले सकता है ओरल यानी टैबलेट, कैप्सूल या सिरप फार्म में, दूसरा इन्जेक्शन के रूप में और तीसरा इंट्रा वेनस ड्रिप के जरिये। रोगी के हालात के आधार पर ये मेडिसिन दी जाती हैं। जैसे उसे वायरल इन्फेक्शन हो तो एंटी वायरल, फंगस इन्फेक्शन हो तो एंटी फंगल, बैक्टीरिया इन्फेक्शन हो तो एंटी बैक्टीरियल।

रोगी की जरूरत
जहां तक एंटीबायोटिक मेडिसिन लेने का सवाल है, सबसे पहले इस बात की जांच कर लेनी चाहिए कि रोगी को वाकई इसकी जरूरत है या नहीं। बिना डॉक्टरी जांच के और सोचे-समझे बिना ये दवाएं लेना नुकसानदेह हो सकता है। कई बार वायरल, मौसमी बुखार, सर्दी-जुकाम जैसी बीमारियों में किसी एंटीबायोटिक मेडिसिन की जरूरत नही पड़ती, पैरासिटामोल या एंटी-एलर्जिक मेडिसिन से रोगी 2-3 दिन में ही ठीक हो जाता है। लेकिन अगर उसे बुखार के साथ सीने में जकड़न, लगातार खांसी, कफ और ब्लड आना जैसे संक्रमण हो जाते हैं तो डॉक्टर को चेकअप कर एंटीबायोटिक दवाएं भी देनी पड़ती हैं। इसी तरह अगर किसी रोगी के गले में बैक्टीरियल संक्रमण हो और वह एंटीबायोटिक मेडिसिन देने पर एक हफ्ते में ठीक हो जाए तो 10-15 दिन बाद  उसे दुबारा गले में संक्रमण होने पर यह जरूरी नहीं कि संक्रमण बैक्टीरिया की वजह से ही हो और इस बार भी उसे एंटीबायोटिक मेडिसिन की ही जरूरत पड़े। इसलिए डॉक्टर से जांच कराने के बाद ही मेडिसिन लेनी चाहिए।

क्या है खुराक
इन एंटीबायोटिक मेडिसिन की खुराक रोगी के वजन, उम्र और बीमारी के हिसाब से नियत की जाती है। आमतौर पर इन्हें 15 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम वजन के हिसाब से दिया जाता है, जैसे कोई व्यक्ति 60-65 किलोग्राम वजन का है तो उसे रोजाना लगभग 1000 मिलीग्राम या 1 ग्राम एंटीबायोटिक दी जाती है। उम्र के आधार पर एंटीबायोटिक की यह मात्रा कम या ज्यादा होती है। जैसे- 12 साल से कम उम्र के बच्चे को तकरीबन 125 मिलीग्राम से 250 मिलीग्राम एंटीबायोटिक्स दी जाती है।
बहुत छोटे बच्चे को एंटीबायोटिक मेडिसिन सिरप के रूप में करीब 1 चम्मच या 5 मिलीलीटर दी जाती है। फार्मा कंपनी द्वारा बनाए गए इन सिरप के एक चम्मच में तकरीबन 125 ग्राम मेडिसिन होती है।

कोर्स पूरा करना होता है जरूरी
बैक्टीरियल संक्रमण के आधार पर रोगी को एंटीबायोटिक दवाओं का 3 से 5 दिन का कोर्स कराया जाता है। रोगी को अधिकतर 8-12 घंटे के अंतराल पर ये दवाएं लेनी पड़ती हैं। लेकिन चेस्ट इंफेक्शन जैसी कुछ बीमारियों में ये दवाएं 24 घंटे में एक या दो बार लेने की सिफारिश की जाती है।  2-3 दिन में तबीयत में सुधार होने के बावजूद रोगी के लिए एंटीबायोटिक मेडिसिन का कोर्स पूरा करना जरूरी होता है, वरना बैक्टीरिया प्रतिरोध होने का अंदेशा रहता है और सुपरबग्स की स्थिति आ सकती है। यानी पूरी तरह से ठीक न होने के कारण रोगी का इम्यून सिस्टम बिगड़ सकता है और ये बैक्टीरिया कुछ दिन बाद रोगी पर दोबारा हमला कर सकते हैं। सुपरबग्स की स्थिति में दिल की समस्या, कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों से जूूझ रहे रोगी के लिए काफी परेशानी हो सकती है। 

इन बातों का रखें ध्यान
कई बार रोगी नियम से दवा नहीं ले पाता या किसी कारणवश दवा लेना भूल जाता है। इस स्थिति में रोगी को वो खुराक छोड़कर नियत शेड्यूल जारी रखना चाहिए। अगली बार डबल खुराक नहीं लेनी चाहिए। अतिरिक्त खुराक या ओवरडोज लेने से रोगी की सेहत पर कई दुष्परिणाम भी हो सकते हैं। ऐसे में उल्टी, मतली, पेट दर्द, डायरिया, चक्कर आना, स्किन रैशेज, इचिंग, एलर्जी आदि की आशंका रहती है।
इनके अलावा गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली महिलाओं और गंभीर बीमारियों से जूझ रहे लोगों को भी एंटीबायोटिक दवाएं देना ठीक नहीं होता। इससे ब्लीडिंग होने, गर्भपात होने की आशंका रहती है या भ्रूण में पल रहे बच्चे का विकास ठीक तरह से न होने या विकृति आने की आशंका रहती है। स्तनपान कराने वाली माताओं को फीडिंग में दिक्कत आ सकती है, जिसका असर बच्चे पर पड़ता है। गंभीर बीमारियों से ग्रस्त रोगी का इम्यून सिस्टम पहले ही कमजोर होेता है, इन एंटीबायोटिक दवाओं से उसकी सेहत बिगड़ने का खतरा बराबर बना रहता है।
ज्यादातर एंटीबायोटिक दवाएं खाली पेट नहीं लेनी चाहिए। आमतौर पर माना जाता है कि दवाएं खाली पेट लेने से जल्दी एब्जार्ब हो जाती हैं, लेकिन एंटीबायोटिक दवाओं के साथ ऐसा नहीं है। इनसे पेट की समस्या होने का खतरा रहता है। फूड पाइप में छाले पड़ने की आशंका रहती है, पेट में जलन होती है, उल्टी, मितली आ सकती है। इसलिए एंटीबायोटिक दवाएं खाना खाने के बाद या खाने के साथ लेना बेहतर है।

कई तरह की दवाएं
मेडिकल साइंस में आज 100 से भी अधिक एंटीबायोटिक दवाएं उपलब्ध हैं, जो अपने उद्देश्य में काफी सफल हैं। मोटे तौर पर इन दवाओं को छह समूहों में बांटा जा सकता है। इनमें सबसे पुरानी एंटीबायोटिक दवा पेनिसिलिन है, जो आजकल कम प्रचलन में है। 
1. पेनिसिलिन ( एम्पीसिलिन और एमोक्सिसिलिन)-त्वचा, चेस्ट, युरिनरी ट्रेक्ट इन्फेक्शन
2. कैफलोस्पोरिन (सेफेलेक्सिन)- सेप्टीसीमिया, मेनिन्जाइटिस इन्फेक्शन
3. एमिनाग्लाकोसाइड्स (जेन्टामिसिन, टोब्रामाइसिन)- कान और आंख के संक्रमण
4. टेट्रासाइक्लिन (टेट्रासाइक्लाइन, डॉक्सिस्काइलाइन)- त्वचा संक्रमण
5. माक्रोलिड्स (इरिथ्रोमाइसिन, क्लेरिथ्रोमाइसिन)- फेफडे़ और चेस्ट संक्रमण
6. फ्लूरोक्विनोलोन (साइप्रोफ्लोंक्सासिन, लेवोफ्लोंक्सासिन)-सांस और यूटीआई संबंधित संक्रमण

मिथक और हकीकत
आमतौर पर माना जाता है कि बुखार या सर्दी-जुकाम होने पर एंटीबायोटिक दवा देनी ही पड़ेगी। वायरल संक्रमण केवल एंटीबायोटिक मेडिसिन से ही ठीक होते हैं, यह सोचना गलत है। 70 प्रतिशत मामलों में ये दूसरी दवाओं से ठीक हो जाते हैैं।
एंटीबायोटिक दवाएं लेने से पेट खराब हो जाता है और किडनी पर असर पड़ता है। हर बीमारी के लिए अलग-अलग तरह की और अलग-अलग मात्रा में एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। इनके सावधानीपूर्वक सेवन से ऐसी कोई समस्या नहीं होती।
एंटीबायोटिक दवाओं की ज्यादा खुराक लेने से जल्दी आराम मिल जाएगा, यह सोचना गलत है। इससे रोगी को कई तरह के दुष्परिणाम झेलने पड़ सकते हैं।

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