अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव एक ऐसे वक्त में हुए, जब पंजाब में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी है। राजनीतिक दल इसके लिए पहले से समीकरण बना चुके हैं। जाहिर सी बात है कि उस समीकरण का असर निगम चुनाव में दिखना था। स्वाभाविक ही इस लिहाज से भी इन नतीजों को देखा जा रहा है। आम आदमी पार्टी पहली बार चुनाव मैदान में उतरी, और उसने निगम चुनाव में सारे राजनीतिक दलों को पछाड़ दिया है।
चंडीगढ़ नगर निगम की कुल पैंतीस में से चौदह सीटें उसकी झोली में गई हैं। भाजपा को बारह, कांग्रेस को आठ और अकाली दल-बसपा गठबंधन को मात्र एक सीट पर संतोष करना पड़ा है। इसके पहले वहां निगम पर भाजपा का कब्जा था। हालांकि वहां के लोगों ने भाजपा को इस बार सिरे से तो खारिज नहीं किया है, पर जिस तरह उन्होंने आम आदमी पार्टी में अपना भरोसा अधिक जताया है, उससे विधानसभा चुनावों में नया समीकरण बनता दिख रहा है। हालांकि पंजाब में कांग्रेस की सरकार है और इस बार निगम चुनाव में पिछली बार की तुलना में उसे बढ़त हासिल हुई है। यह उसके लिए संतोष की बात हो सकती है, पर इसमें चुनौती तो उसकी भी साफ नजर आ रही है।
पंजाब में आम आदमी पार्टी ने चुनाव लड़ने का एलान अचानक नहीं किया है। इसकी तैयारी वह पिछले आम चुनाव के वक्त से कर रही थी। फिर जब भाजपा-अकाली दल गठबंधन टूटा और बसपा-अकाली दल गठबंधन बना, तो उसमें दलित मतों को लेकर एक नया समीकरण दिखाई देने लगा। पंजाब में माना जाता है कि जिस दल के साथ दलित मतदाता खड़े हो जाते हैं, विजय उसी की होती है।
इस लिहाज
से अकाली दल का दांव अच्छा था। पर उस दांव की काट में कांग्रेस ने नेतृत्व परिवर्तन कर दलित मुख्यमंत्री नियुक्त कर दिया, तो अकाली दल का समीकरण कमजोर पड़ गया। मगर आम आदमी पार्टी शुरू से अपने दिल्ली के कामकाज के आधार पर समीकरण बनाती रही। उसमें उसने बिजली, महिलाओं को वजीफा वगैरह की मुफ्त योजनाएं भी घोषित कर दी थी। दलित मतदाताओं को रिझाने के लिए भी उसने योजनाएं बना रखी हैं। मगर लग रहा था कि इसका असर वहां के लोगों पर नहीं पड़ेगा। अब साबित हो गया है कि वहां के लोगों का मिजाज बदला है। अभी तक पंजाब और चंडीगढ़ में कांग्रेस, भाजपा और अकाली दल का दबदबा रहा है। मगर आम आदमी ने वह दबदबा लगभग खत्म कर दिया है।
किसान आंदोलन की वजह से भी मतदाताओं का रुझान काफी बदला है। हालांकि चंडीगढ़ शहरी इलाका है, पर वहां भी इसका असर दिखाई दिया है। जबसे संयुक्त किसान मोर्चे में शामिल पंजाब और हरियाणा के कुछ किसान संगठनों ने विधानसभा चुनाव में उतरने का एलान किया है, तबसे स्थितियां कुछ और बदली हैं। इसका फायदा आम आदमी पार्टी को मिलता दिख रहा है। इसलिए पंजाब विधानसभा चुनाव को लेकर अब तक के बने सारे समीकरण बिगड़ते दिखने लगे हैं। हालांकि चंडीगढ़ नगर निगम में अपनी सत्ता कायम करने के लिए आम आदमी पार्टी को बहुमत जुटाने के लिए किसी दूसरे राजनीतिक दल का सहारा लेना पड़ेगा। वह सहारा भाजपा और अकाली दल तो बन नहीं सकते। कांग्रेस से ही उम्मीद बची है। पर आम आदमी पार्टी के सामने यह चुनौती होगी कि अगर वह कांग्रेस का हाथ पकड़ती है, तो विधानसभा चुनावों में कहीं उसे नुकसान का खतरा तो नहीं पैदा होगा।
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