खेल बना असली देशभक्ति का सबूत.....

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खेल बना असली देशभक्ति का सबूत.....

Anjali Yadav 30-10-2021 17:23:56

अंजलि यादव,          
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,          


नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान के बीच रविवार को हुए टी-20 वर्ल्ड कप मैच में पाकिस्तान की जीत पर कथित तौर पर खुशी मनाने के मामले में देश के अलग-अलग हिस्सों से गिरफ्तारी और कार्रवाई की खबरें हैं। राजस्थान के उदयपुर में एक प्राइवेट मैनेजमेंट स्कूल की टीचर को गिरफ्तार किया गया है, यूपी के पांच जिलों में सात लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है और कश्मीर के श्रीनगर में दो मेडिकल कॉलेजों के कुछ स्टूडेंट्स के खिलाफ यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है। इस संदर्भ में सबसे पहले तो यह बात साफ होनी चाहिए कि क्रिकेट या किसी भी खेल को खेल भावना से देखना, उसे एंजॉय करना और अच्छा खेलने वाले किसी भी टीम या खिलाड़ी का समर्थन करना, उसे चीयर करना अपने आप में अपराध नहीं हो सकता। कोई समाज अपने लोगों पर इस तरह की बंदिशें नहीं लगा सकता कि वे खेल के मैदान में इस या उस टीम के पक्ष में न बोलें या किसी के अच्छे शॉट की तारीफ न करें।


लेकिन पाकिस्तान की विशेष पृष्ठभूमि को देखते हुए इन मामलों को सामान्य मानक के आधार पर सीधे-सीधे खारिज नहीं किया जा सकता। इनमें यह देखना जरूरी है कि संबंधित लोगों की भूमिका स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया की श्रेणी में आती है या मैच
के बहाने माहौल बिगाड़कर अशांति फैलाने की व्यापक साजिश से भी उसका कोई लेना-देना है। अगर यह स्वत:स्फूर्त प्रतिक्रिया है तो इस पर यूएपीए जैसी कठोर धाराओं का इस्तेमाल करना या इसे देशद्रोह करार देना न केवल अनावश्यक है बल्कि यह पुलिस और शासन व्यवस्था के प्रति आम नागरिकों का अविश्वास बढ़ाएगा। अगर ये मामले प्रथम दृष्टया किसी व्यापक साजिश से जुड़ते दिखते हैं तो इनमें पूरी गंभीरता से जांच आगे बढ़ाते हुए कानूनी प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। लेकिन इस क्रम में भी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि ऐसे हर मामले में साक्ष्यों के जरिए साजिश से जुड़े पहलू स्पष्ट तौर पर उजागर हों। इन साक्ष्यों के बगैर की जाने वाली पुलिस कार्रवाई संविधान द्वारा दिए गए नागरिक अधिकारों का उल्लंघन मानी जाएगी। इस संदर्भ में सबसे संवेदनशील क्षेत्र जम्मू-कश्मीर की बात करें तो वहां प्रशासन के सामने पाकिस्तान से भेजे गए आतंकवादी तत्वों का मुकाबला करने के साथ-साथ आम लोगों का विश्वास जीतने की दोहरी चुनौती है। इसलिए हर कदम पर यह ध्यान रखते हुए चलना होगा कि अति उत्साह में की गई कोई कार्रवाई आम लोगों को प्रशासन के करीब लाने के बजाय उन्हें उससे और दूर न कर दे। देश के बाकी हिस्सों में उस तरह की चुनौती भले न हो, लेकिन इससे एक सभ्य और उदार समाज की हमारी छवि के धूमिल होने का खतरा तो है ही।

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