अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: साल 2008 से ही हर वर्ष 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. हर वर्ष 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है, तो फिर प्रश्न उठता है कि 11 नवंबर को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस मनाने की क्या आवश्यकता है. दरअसल यह दिन मौलाना अबुल कलाम आजाद की विरासत को सम्मान देने के लिए समर्पित है.
मौलाना अबुल कलाम आजाद का बेहद प्रतिभाशाली दिमाग के धनी थे. आजादी के बाद वह देश के पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बने. अबुल कलाम आजाद के जन्मदिवस को देश में राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने स्वतंत्र भारत में साल 1947 से 1958 तक शिक्षा मंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दी थीं.
मौलाना अबुल कलाम आजाद एक शिक्षाविद् थे, वह पत्रकार थे और स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ भी थे. उन्होंने देश में शिक्षा के ढांचे को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. कमलाम कहते थे, हमारे सपने विचारों में तब्दील होते हैं और विचारों का परिणाम कर्मों के रूप में सामने आता है. मौलाना अबुल कलाम ने देश में शिक्षा के ढांचे में सुधार का सपना देखा और उसे पूरा करने के लिए हमेशा प्रयास करते रहे.
शिक्षा के लिए उनके समृद्ध समर्पण को ही ध्यान में रखते हुए 11 नंवबर 2008 को मानव
संसाधन और विकास मंत्रालय ने उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था. कलाम ने कहा था, किसी भी देश के विकास और समृद्ध के लिए शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण तत्व है. उनके शिक्षा मंत्री रहते, देश में कई महत्वपूर्ण शिक्षण संस्थानों की नींव रखी गई. ऐसे ही कुछ संस्थानों में से इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर, पहले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के नाम प्रमुख हैं.
मौलाना अबुल कलाम आजाद का जन्म साल 1888 में सऊदी अरब के मक्का में हुआ था. वे हमेशा इस बात पर जोर देते थे कि छात्रों को रचनात्मक होना चाहिए और उनके सोचने का ढंग बिल्कुल अलग होना चाहिए. उनका कहना था कि शिक्षाविदों को छात्रों के बीच प्रश्न पूछने की, रचनात्मकता और उद्यमशीलता के साथ ही नैतिक नेतृत्व की क्षमता का निर्माण करना चाहिए और स्वयं उनके लिए आदर्श बनना चाहिए.
कलाम महिलाओं की शिक्षा के प्रबल समर्थक थे. उन्होंने हमेशा ही इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्र के विकास के लिए महिला सशक्तिकरण एक आवश्यक और महत्वपूर्ण शर्त है. उनका मानना था कि महिलाओं के सशक्तिकरण से ही समाज स्थिर हो सकता है. साल 1949 में संविधान सभा में उन्होंने महिलाओं की शिक्षा के मुद्दे को उठाया था. उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में और भी कई कार्य किए, उनके किए गए कार्य आज भी याद किए जाते हैं.
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