मथुरा। संस्कृति विश्वविद्यालय के छात्रावासों में रह रहीं दूर-दराज प्रांतों की छात्राओं और विदेशी छात्रों ने कालेज कैंपस में जमकर होली खेली। ब्रज के लोक गीतों को गाकर भरपूर मनोरंजन किया। छात्राओं की होली दोपहर तक चली।
सुबह धूप खिलते ही छात्राएं अपने छात्रावासों से निकलकर विवि प्रांगण में गुलाल और रंगों से लैस होकर एकत्र होने लगीं। विश्वविद्यालय में रह रहे छात्र बड़ी जिज्ञासा से इस रंगों के त्योहार को निहार रहे थे। थोड़ी देर में वे भी रंग और गुलाल में रच-बस गए। छात्राओं के छोटे-छोटे दल बन गए थे। एक दूसरे दल के सदस्यों को रंग से पोतने और गुलाल से लाल करने की होड़ सी मच गई। रंगों से बचने वालों के लिए दौड़ लगाने को विवि का लंबा-चौड़ा प्रांगण था, लेकिन उनको घेरने वाली छात्राएं भी कम नहीं थीं और दौड़कर पकड़ ले रहीं
थीं। चारों ओर मस्ती का माहौल और गुलाल का गुबार था।
छात्रावासों में रह रहीं कुछ छात्राओं के लिए तो यह सब अनौखा था। कुछ ने बृज की होली के बारे में सुना ही सुना था कभी इसका हिस्सा नहीं बनीं थीं। कुछ ऐसी थीं अपने घरों से बाहर निकली ही नहीं थीं और उनके यहां यह त्योहार इस तरह से मनाया भी नहीं जाता, उनके लिए भी यह अजूबा जैसा ही था। जिन्होंने पहले कभी नहीं मनाई थी होली, उनका उत्साह और भागीदारी सर्वाधिक उल्लास से भरपूर थी। किसी को रंग में सराबोर करने पर मचने वाला शोर विजेता का एहसास करा रहा था। छात्राओं के आनंद का मीटर चरम पर था और वे स्वच्छंद होकर लोकगीतों का टूटा-फूटा मगर पूरे जोश से गायन कर रही थीं। काफी देर तक होली का यह त्योहार विवि के प्रांगण में जीवंतता पर्याय बना।
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