तीन स्कॉर्पियन पनडुब्बियों को बनाने में फ्रांस देगा साथ, समुद्र में बढ़ेगी भारत की ताकत

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तीन स्कॉर्पियन पनडुब्बियों को बनाने में फ्रांस देगा साथ, समुद्र में बढ़ेगी भारत की ताकत

Simran Singh 15-07-2023 18:31:35

सिमरन सिंह  
लोकल न्यूज़ ऑफ़ इंडिया, 
नई दिल्ली:  पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा के दौरान तीन स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खरीद की घोषणा हुई। इन पनडुब्बियों को विरोधी नौसैनिक जहाजों को निशाना बनाने और डुबाने के लिए डिजाइन किया गया है। इसके साथ ही पनडुब्बियां कई प्रकार की निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने वाले सिस्टम से भी लैस हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय फ्रांस यात्रा रविवार को संपन्न हो गई। इस दौरान दोनों देशों के बीच कई अहम रक्षा समझौते हुए। दोनों देशों ने फाइटर जेट और हेलीकॉप्टर इंजन के संयुक्त विकास और भारतीय नौसेना के लिए स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के निर्माण सहित कई रक्षा परियोजनाओं की घोषणा की है। इससे पहले रक्षा अधिग्रहण परिषद (डीएसी) ने गुरुवार को नौसेना के लिए तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों और 26 राफेल समुद्री लड़ाकू जेट खरीदने के लिए हजारों करोड़ रुपये के प्रस्तावों को मंजूरी दी थी।

स्कॉर्पीन पनडुब्बियों के लिए भारत-फ्रांस का समझौता क्या है?
13-14 जुलाई को हुई पीएम मोदी की फ्रांस यात्रा भारत के रक्षा क्षेत्र के नजरिए से बेहद खास रही। इस दौरान दोनों देशों के बीच तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खरीद की घोषणा हुई। जानकारी के अनुसार, पनडुब्बियों को नौसेना द्वारा रिपीट क्लॉज के तहत हासिल किया जाएगा, जिसके बाद उन्हें मुंबई में मझगांव डॉकयार्ड्स लिमिटेड (एमडीएल) में बनाया जाएगा।

एमडीएल प्रोजेक्ट-75 के तहत छह स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। इसके लिए एमडीएल ने फ्रांस की एक रक्षा कंपनी 'नेवल ग्रुप' के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का सौदा किया था। छह में से पांच पनडुब्बियां पहले ही चालू हो चुकी हैं और आखिरी अगले साल की शुरुआत में चालू होने की संभावना है। 

इस परियोजना के तहत पांचवीं पनडुब्बी आईएनएस वागीर इस साल जनवरी में कमीशन की गई थी। अन्य आईएनएस कलवरी, आईएनएस खंडेरी, आईएनएस करंज और आईएनएस वेला को 2017 और 2021 के बीच चालू किया गया था। इस साल मई में छठी पनडुब्बी वाग्शीर ने अपना समुद्री परीक्षण शुरू किया।

अब, डीएसी ने एमडीएल द्वारा निर्मित की जाने वाली तीन अतिरिक्त स्कॉर्पीन पनडुब्बियों को मंजूरी दे दी है। इनमें पहले जैसे ही स्पेसिफिकेशन होने की संभावना है।

 

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भारत को इन पनडुब्बियों की जरूरत क्यों है? 
इस डील से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि प्रोजेक्ट 75 के तहत पनडुब्बियों की डिलीवरी में देरी के साथ-साथ भारत के घटते पनडुब्बी बेड़े को मजबूत करने के लिए तीन अतिरिक्त पनडुब्बियों की खरीद की आवश्यकता महसूस की गई
थी।

फिलहाल नौसेना के पास सेवा में 16 पारंपरिक पनडुब्बियां हैं। इनमें से सात सिंधुघोष श्रेणी (रूसी किलो श्रेणी), चार शिशुमार श्रेणी (संशोधित जर्मन टाइप 209) और पांच कलवरी श्रेणी (फ्रेंच स्कॉर्पीन श्रेणी) की हैं। हालांकि, अपने सभी ऑपरेशनों को अंजाम देने के लिए नौसेना को कम से कम 18 ऐसी पनडुब्बियों की आवश्यकता है।

इसके अलावा बीच-बीच में कई पनडुब्बियों की मरम्मत होती है, जिससे परिचालन पनडुब्बियों की ताकत में और कमी आती है। यहां तक कि हाल ही में कमीशन हुई कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियों को भी जल्द ही आगामी मरम्मत के लिए भेजा जाना है।

रक्षा मंत्रालय के अनुसार, इन पनडुब्बियों की खरीद से न केवल नौसेना के जरूरी फोर्स लेवल और ऑपरेशन तत्परता को बनाए रखने में मदद मिलेगी, बल्कि घरेलू क्षेत्र में रोजगार के महत्वपूर्ण अवसर भी पैदा होंगे। गुरुवार को एक बयान में कहा गया, 'इससे एमडीएल को पनडुब्बी निर्माण में अपनी क्षमता और विशेषज्ञता को और बढ़ाने में भी मदद मिलेगी।'

 

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स्कॉर्पीन पनडुब्बियों की खासियत क्या हैं?
1,565 टन वजनी इस पनडुब्बी का नाम हिंद महासागर के गहरे समुद्री शिकारी बाघ शार्क की एक प्रजाति के नाम पर रखा गया है। पनडुब्बियों में सटीक निर्देशित हथियारों का उपयोग करके दुश्मन पर विनाशकारी हमला करने की क्षमता जैसी बेहतर स्टील्थ विशेषताएं होती हैं। दरअसल, स्कॉर्पीन पनडुब्बियां पारंपरिक हमलावर पनडुब्बियां होती हैं। उन्हें विरोधी नौसैनिक जहाजों को निशाना बनाने और डुबाने के लिए डिजाइन किया गया है। ये टॉरपीडो और मिसाइलों की एक बड़ी श्रृंखला को लॉन्च करने में सक्षम हैं। इसके साथ ही पनडुब्बियां कई प्रकार की निगरानी और खुफिया जानकारी जुटाने वाले सिस्टम से भी लैस हैं।

इनकी लंबाई 220 फीट जबकि ऊंचाई 40 फीट है। सतह पर आने पर ये 11 समुद्री मील (20 किमी/घंटा) और पानी में डूबने पर 20 समुद्री मील (37 किमी/घंटा) की अधिकतम गति तक पहुंच सकती हैं।

स्कॉर्पीन श्रेणी की पनडुब्बियां लगभग 50 दिन बिना ईंधन भरे स्वतंत्र रूप से काम करने की क्षमता रखती हैं। इनमें डीजल इलेक्ट्रिक प्रणोदन प्रणाली का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की प्रणोदन प्रणाली डीजल (सतह पर काम करने के लिए) और बिजली (पानी के नीचे काम करने के लिए) दोनों का विकल्प देती है। हालांकि, इन इलेक्ट्रिक बैटरियों को लंबे समय तक डूबे रहने के बाद डीजल इंजन द्वारा रिचार्ज करने की आवश्यकता होती है। यानी कि पनडुब्बी को ऑपरेशन जारी रखने के लिए समय-समय पर सतह पर आना पड़ता है।

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