चीन को सख्त संदेश देना आवश्यक

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चीन को सख्त संदेश देना आवश्यक

Anjali Yadav 04-02-2022 17:56:35

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: भारत ने चीन में आयोजित शीतकालीन ओलिंपिक का राजनयिक स्तर पर बहिष्कार करने का फैसला करके बिल्कुल सही किया। यद्यपि प्रारंभ में भारत ऐसे किसी फैसले को लेकर दुविधा में था, लेकिन जब चीन ने गलवन में हुए सैन्य संघर्ष में घायल अपने कमांडर को शीतकालीन ओलिंपिक समारोह का मशाल वाहक बनाने का निर्णय किया, तब फिर भारत के लिए उसे उसी की भाषा में जवाब देना आवश्यक हो गया था। चीन की यह ओछी हरकत न केवल भारत की दुखती रग पर हाथ रखने, बल्कि खेल भावना का निरादर करने वाली भी थी। अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों को संकीर्ण कूटनीति से परे रखने की परंपरा है, लेकिन चीन ने उसका सम्मान करने के बजाय धृष्टता दिखाई।

आज का भारत चीन की दादागीरी को स्वीकार करने को तैयार नहीं और न हो सकता है। चीन ने शीतकालीन ओलिंपिक को राजनीतिक रंग देने की जो भद्दी कोशिश की, उसके जवाब में भारत ने केवल इस खेल आयोजन का राजनयिक स्तर पर बहिष्कार करने का ही कदम नहीं उठाया, बल्कि यह भी तय किया कि दूरदर्शन इन खेलों के उद्घाटन एवं समापन समारोह का प्रसारण नहीं करेगा। खेल भावना
के सर्वथा विपरीत जाकर मनमानी करने वाले चीन को ऐसा सख्त संदेश देना आवश्यक था।

यह अच्छा हुआ कि भारत ने यह स्पष्ट करने में कोई संकोच नहीं किया कि ताली दोनों हाथ से बजती है। यदि चीनी नेतृत्व भारत के मामले में संवेदनशीलता का परिचय देने से इन्कार करता है तो फिर भारतीय नेतृत्व के लिए भी यह जरूरी हो जाता है कि वह न तो उसके हितों की परवाह करे और न ही साख की। कोरोना के कारण पहले से ही दुनिया भर में बदनाम चीन ने भारत को चिढ़ाने वाली हरकत करके एक तरह से अपनी फजीहत का ही इंतजाम किया। ज्ञात हो कि अमेरिका के साथ यूरोप के कई देश पहले ही यह तय कर चुके हैं कि वे बीजिंग में होने जा रहे शीतकालीन ओलिंपिक का राजनयिक स्तर पर बहिष्कार करेंगे।

हैरानी नहीं कि मोदी सरकार के फैसले के बाद कुछ और देश भारत की राह पर चलें। इसकी भी अनदेखी नहीं की जानी चाहिए कि राहुल गांधी को अमेरिका ने यह कहकर आईना दिखा दिया कि वह उनके इस दावे का समर्थन नहीं करता कि भारत सरकार की नीतियों के कारण चीन और पाकिस्तान निकट आ रहे हैं।

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