मौसम से बेहाल....

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मौसम से बेहाल....

Anjali Yadav 25-01-2022 15:21:10

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: देश के एक बड़े हिस्से में फिलहाल ठंड अपने जिस तापमान के साथ कायम है, उसमें आम लोगों के लिए सामान्य जीवन जीना एक बड़ी चुनौती है। ऐसे में पिछले कई दिनों की बारिश ने मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। हालांकि कड़ाके की ठंड के इस मौसम में माना जाता है कि अब तापमान सामान्य होने की ओर बढ़ने वाला है। मगर इस बार की बारिश ने ज्यादा चिंता इसलिए पैदा कर दी, क्योंकि इसके साथ ही तापमान भी निचले स्तर पर बना रहा और इसने रोजमर्रा की जिंदगी पर असर डाला।

यह शायद इसलिए भी हुआ कि हर साल मौसम के इस चरण में होने वाली बारिश के मुकाबले बीते कुछ दिनों में जो बरसात हुई, वह अन्य सालों की अपेक्षा काफी ज्यादा मापी गई। मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक, शनिवार देर रात हुई बारिश के बाद इस साल जनवरी में दिल्ली में कुल 88.2 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई। यह आंकड़ा 1950 के बाद अब तक का सबसे ज्यादा है। यानी बहत्तर साल बाद यह इस महीने में हुई सबसे ज्यादा बारिश है।

जाहिर है, ठंड से ठिठुरती दिल्ली में इतनी वर्षा ने चरम पर पहुंचे जाड़े की अन्य समस्याओं में और इजाफा कर दिया है। अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि बारिश के चलते ही शनिवार को दिल्ली में अधिकतम तापमान 14.7 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया, जो इस मौसम में सामान्य से सात डिग्री कम था। स्वाभाविक ही इस साल की बरसात ने दिल्ली में कुछ जटिल स्थितियां पैदा कीं। दरअसल, हर साल के सामान्य चक्र की अपेक्षा इस वर्ष ज्यादा बारिश की मुख्य वजह एक बाद एक, लगातार दो पश्चिमी विक्षोभों काप्रभाव था।

इसके अलावा भी दिल्ली में इस महीने अब तक छह
बार पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव देखा गया। आमतौर पर इस दौरान महीने में तीन से चार बार पश्चिमी विक्षोभ का असर सामान्य माना जाता है। पहाड़ी इलाकों में इस वर्ष की ठंड में भारी बर्फबारी के चलते मैदानी इलाकों में ठंड और शीतलहर का दौर लंबा खिंचा और आम लोगों के सामने चुनौतियां ज्यादा रहीं। ऐसे में बरसात की वजह से आम घरों में रहने वाली आबादी के बरक्स उन लोगों की समस्याओं का अंदाजा भर लगाया जा सकता है जिनके पास मौसम की ऐसी मार का सामना करने के संसाधन नहीं हैं। विडंबना यह है कि ऐसे हालात की आशंका के बावजूद सरकारी तंत्र आमतौर पर उदासीन रुख बनाए रखता है।

यों मौसम की अपनी गति होती है और इसके निर्धारित चक्र में उतार-चढ़ाव आता रहता है। मगर पिछले कुछ समय से अमूमन हर मौसम में गरमी, ठंड या बरसात में सामान्य से ज्यादा बदलाव ने मौसम विज्ञान और पर्यावरण से जुड़े विषयों पर काम करने वालों का ध्यान आकर्षित किया है। दुनिया भर में कार्बन उत्सर्जन सहित अन्य कई वजहों से तापमान में बढ़ोतरी और पर्यावरण में होेने वाली उथल-पुथल की वजह से मौसम की अस्वाभाविक प्रतिक्रिया देखी जा रही है।

बीते साल दुनिया के कई हिस्सों में हुई बेलगाम बरसात ने लोगों को यह सोचने पर मजबूर किया कि इसकी वजह क्या हो सकती है। जर्मनी में जहां सात सौ साल बाद सबसे ज्यादा बारिश दर्ज की गई, वहीं चीन में एक हजार साल का आंकड़ा टूटा। निश्चित रूप से अलग-अलग हिस्सों में मौसम की इस तरह असामान्य प्रतिक्रिया के चलते न केवल आम जनजीवन बाधित होता है, बल्कि इससे ज्यादा चिंता इस बात को लेकर पैदा होती है कि कहीं यह सब आने वाले संकट की आहट तो नहीं है!

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