श्री कृष्ण ने सिखाये प्रेम के नए आयाम, सम्मान और इज़्ज़त के बगैर प्रेम असंभव

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श्री कृष्ण ने सिखाये प्रेम के नए आयाम, सम्मान और इज़्ज़त के बगैर प्रेम असंभव

24-08-2019 14:30:13

कृष्ण में हमें उनका बहुआयामी व्यक्तित्व दिखाई देता है। वे परम योद्धा थे, लेकिन अपनी वीरता का प्रयोग साधुओं के परित्रण (रक्षा) के लिए करते थे। वे एक श्रेष्ठ राजनीतिज्ञ थे, लेकिन उन्होंने इस राजनीतिक कुशलता का प्रयोग जन-कल्याण के लिए किया। वे परम ज्ञानी थे।

उन्होंने अपने ज्ञान का उपयोग लोगों को मनुष्यता के सरल और सुगम रूप को सिखाने में किया। उनमें प्रेम एवं ज्ञान का अद्भुत समन्वय था। प्राचीन और आधुनिक साहित्य का एक बड़ा भाग कृष्ण की मनोमय एवं प्रेममय लीलाओं से ओत-प्रोत है। उनके लोकरंजक रूप ने भारतीय जनता के मानस-पटल पर जो छाप छोड़ी है वह अमिट है।

कृष्ण सिखाते है कैसे किया जाता है प्यार

कृष्ण सिखाते हैं कि प्यार कैसे किया जाता है। जिन प्रेमियों में एक-दूसरे के प्रति आदर और सम्मान नहीं, जिनमें एक-दूसरे का ख्याल रखने की भावना नहीं, उनमें प्यार कैसे हो सकता है? युद्ध और प्रेम में अंतर यह है कि युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं, जबकि प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं। कृष्ण के जीवन पर ध्यान दें तो पाएंगे कि वे सबको सुख देना चाहते थे, सबके साथ रहना चाहते थे और सबका ख्याल रखना जानते थे।

अपनी लीलाओं में उन्होंने यही सब दर्शाया है। वे संगीत में रमने वाले, बांसुरी से सबका हृदय जीतने वाले थे। कृष्ण के पास सुदर्शन चक्र भी था जिसे वे प्रतिरोध के साधन के रूप में प्रयोग करते थे। वे योग के ज्ञाता थे। उन्होंने मानुष-धर्म को समझाया। कृष्ण भारतीय जन-मन के प्राण हैं।

कृष्ण ने कहा असफल हो जाते हैं तो अपनी रणनीति बदलें

कृष्ण कहते हैं कि अगर आप अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में असफल हो जाते हैं तो अपनी रणनीति बदलिए, न कि लक्ष्य। वह कहते हैं कि क्रोध से भ्रम पैदा होता है। भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है और जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है। जो व्यवहार आपको दूसरों से पसंद न हो, वैसा व्यवहार आप दूसरों के साथ भी न करें।

ज्ञानी व्यक्ति ज्ञान और कर्म को एक रूप में देखता है, वही सही मायने में देखता है। आसक्ति से कामना का जन्म होता है। जो मन को नियंत्रित नहीं करते,
उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है। कार्य में कुशलता को योग कहते हैं। कृष्ण ने गीता में कहा है कि स्थितप्रज्ञ हो जाना ही धर्म है। आत्मा को न तो किसी शस्त्र से काटा जा सकता है और न ही जलाया जा सकता है, क्योंकि आत्मा तो अमर है।

मुसीबत के समय ना मिले सफलता तो हिम्मत ना हारे

कृष्ण हमें यह भी सिखाते हैं कि मुसीबत के समय या सफलता न मिलने पर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। इसके बजाय हार की वजहों को जानकर आगे बढ़ना चाहिए। समस्याओं का सामना करें। एक बार डर को पार कर लिया तो फिर जीत आपके कदमों में होगी। उन्होंने लोगों का व्यर्थ चिंता न करने और भविष्य के बजाय वर्तमान पर ध्यान केंद्रित करने का मंत्र दिया।

कृष्ण बताते हैं कि इंसान को दूरदर्शी होना चाहिए और उसे परिस्थिति का आकलन करना आना चाहिए। जब किसी व्यक्ति को अपने बल पर विश्वास नहीं रहता तभी जीवन में आने वाले संघर्षो का सामना करने के लिए वह स्वयं को योग्य नहीं मानता! ऐसी स्थिति में वह अच्छे गुणों को त्याग कर दुगरुणों को अपनाता है! अर्थात मनुष्य के जीवन में दुगरुणता जन्म ही तब लेती है जब उसके जीवन में आत्मविश्वास नहीं होता।

संघर्ष और चुनौतियां जीवन के लिए लाभकारी 

कृष्ण समझाते हैं कि संघर्ष और चुनौतियां जीवन के लिए लाभकारी होती हैं। प्रत्येक नया प्रश्न प्रत्येक नए उत्तर का द्वार खोलता है। कृष्ण को दो रूपों में प्रमुखत: देखा जाता है-बाल कृष्ण और योगेश्वर कृष्ण। ज्ञानी कृष्ण की इस रूप में पहचान करता है कि उसकी आत्म-जागृति कृष्ण की जागृति के समान होती है। व्यक्ति संकल्प करे तो उसकी चेतना भी कृष्ण के समान विकसित हो सकती है।

महाभारत के युद्ध में कृष्ण ने अजरुन से कहा, ‘मैं इस शरीर से भिन्न हूं। मैं शुद्ध आत्मा हूं। तू भी शुद्ध आत्मा है। तेरे तात, भाई, गुरु और मित्र जिनसे तू यह युद्ध करनेवाला है, वे भी शुद्ध आत्मा हैं। युद्ध करना तेरे लिए निश्चित कर्म फल है, इसलिए तुम्हें यह कार्य आत्मा की जागृति में रहकर करना है। इस जागृति में रहकर अगर तुम लड़ाई करते हो तो तुम नए कर्म में नहीं बंधोगे और पुराने कर्म खत्म कर पाओगे, जिससे तुम्हारा मोक्ष होगा।’

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