सड़क पर चाय पिने का चलन भारत में सालो से चला आ रहा है। यूँ तो इस इस चाय के चलन में कुछ खास बदलाब देखने को नहीं मिले है। इन चाय में सबसे ज्यादा चाय शायद रेलवे स्टेशन पर बिकती दिखाई देती है। लोग भरी मात्रा में स्टेशन पर आवागमन करते रहते है और चाय पिटे रहते है। हालाँकि रेलवे स्टेशन पर बिकने वाली चाय में कुछ बदलाव तो आया है परन्तु ये बदलाव चाय के स्वादिक रूप में काम और चाय को परोसे जाने आने बर्तन के रूप में ज्यादा देखने को मिला। जी हाँ किसी समय स्टेशन पर चाय सिर्फ कुल्हड़ में ही साफ देखि जा सकती थी परन्तु धीरे-धीरे कुल्हड़ की जगह कागज और प्लास्टिक ने लेली। लेकिन सरकार की इस पहल से शायद कुल्हड़ आपको दुबारा अपनी महक छोड़ते दिखाई पद सकती है।
पिछले साल से ही भारतीय रेलवे ने यात्रियों की सुविधा के लिए कई अहम फ़ैसले लिए हैं। साथ ही, सोशल मीडिया के ज़रिये भी रेलवे अधिकारी यात्रियों की मदद करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए रेलवे मंत्रालय ने एक और फ़ैसला लिया है। जल्द ही आपको बनारस और राय बरेली के स्टेशनों पर चाय, कॉफ़ी या फिर सूप आदि सब प्लास्टिक या पेपर कप की जगह मिट्टी के कुल्हड़ों में पीने को मिलेगा। इन रेलवे स्टेशनों पर चाय की चुस्कियों के लिए कुल्हड़ों की जल्द वापसी होने वाली है। पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद ने 15 साल पहले रेलवे स्टेशनों पर ‘कुल्हड़’ की शुरुआत की थी, लेकिन प्लास्टिक और पेपर के कपों ने कुल्हड़ की जगह ले ली।
उत्तर रेलवे एवं उत्तर-पूर्व रेलवे के मुख्य वाणिज्यिक प्रबंधक बोर्ड की ओर से जारी परिपत्र के अनुसार रेल मंत्री पीयूष गोयल ने वाराणसी और रायबरेली स्टेशनों पर खान-पान का प्रबंध करने वालों को
टेराकोटा या मिट्टी से बने कुल्हड़ों, ग्लास और प्लेट के इस्तेमाल का निर्देश दिया है।
रेलवे अधिकारियों का कहना है कि, एक तरह से अगर यह कदम इको-फ्रेंडली है, तो दूसरी तरह यह एक पहल भी है, स्थानीय कुम्हारों के लिए एक बड़ा बाज़ार तैयार करने की। इस फ़ैसले के अनुसार ज़ोनल रेलवे और आईआरसीटीसी को सलाह दी गयी है, कि वे तत्काल प्रभाव से वाराणसी और रायबरेली रेलवे स्टेशनों पर विक्रेताओं को यह निर्देश दें कि यात्रियों को भोजन या पेय पदार्थ परोसने के लिये स्थानीय तौर पर निर्मित उत्पादों, पर्यावरण के अनुकूल टेराकोटा या पक्की मिट्टी के कुल्हड़ों, ग्लास और प्लेटों का इस्तेमाल करें ताकि। इस तरह से स्थानीय कुम्हार आसानी से अपने उत्पाद बेच सकेंगे।
दरअसल, खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (केवीआईसी) के अध्यक्ष पिछले साल दिसंबर में यह प्रस्ताव लेकर आए थे। उन्होंने गोयल को पत्र लिखकर यह सुझाव दिया था, कि इन दोनों स्टेशनों का इस्तेमाल इलाके के आस-पास के कुम्हारों को रोज़गार देने के लिये किया जाना चाहिए।
केवीआईसी अध्यक्ष वी.के. सक्सेना ने बताया, “हम कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक दे रहे हैं, जिससे उनकी उत्पादकता 100 कुल्हड़ प्रतिदिन से 600 कुल्हड़ प्रतिदिन हो गयी है। इसलिए यह भी ज़रुरी है कि उन्हें बाज़ार दिया जाये, ताकि ये कुम्हार यहाँ अपने उत्पाद बेचकर कमाई कर सकें। हमारे प्रस्ताव पर रेलवे के सहमत होने से लाखों कुम्हारों को अब तैयार बाज़ार मिल गया है।”
कुम्हार सशक्तिकरण योजना के तहत सरकार भी कुम्हारों को बिजली से चलने वाले चाक वितरित कर रही है। वाराणसी में करीब 300 बिजली से चलने वाले चाक दिए गए हैं और 1,000 और ऐसे चाक वितरित किये जायेंगें। रायबरेली में अब तक 100 चाक वितरित किए गए हैं और 700 का वितरण शेष है। सक्सेना ने कहा कि केवीआईसी भी इस साल बिजली से चलने वाले करीब 6,000 चाक पूरे देशभर में कुम्हारों को वितरित करेगी।
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments