जवान की मनोदशा ने ली जान

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जवान की मनोदशा ने ली जान

Anjali Yadav 08-03-2022 17:52:18

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: अमृतसर के खासा स्थित बीएसएफ हेडक्वॉर्टर में रविवार को जिस तरह से एक जवान ने ताबड़तोड़ फायरिंग कर अपने चार सहकर्मियों की हत्या की और खुद भी मारा गया, वह चिंतित करने वाला वाकया है। घटना का जो ब्योरा दिया गया है, उसके मुताबिक जवान सीटी सत्तेपा ने पहले ऑफिस पहुंचकर एक क्लर्क को गोली मारी। फिर बैरक जाकर अंधाधुंध फायरिंग करने लगा। उसने ऑफिशियेटिंग कमांडेंट के वाहन पर भी गोली चलाई, लेकिन वह बच गए। 

यह सच है कि अभी आरंभिक सूचनाएं ही सामने आई हैं, जिनके आधार पर कोई ठोस नतीजा नहीं निकाला जा सकता। पुलिस ने तो मामला दर्ज किया ही है, कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी के भी आदेश दे दिए गए हैं। लेकिन बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारियों ने दो बातें अभी से साफ कर दी हैं। एक, यह छुट्टियां न मिलने जैसी स्थिति से नाराजगी का मामला नहीं है। दो, इसमें पुरानी रंजिश का भी कोई एंगल नहीं है। अगर बिना किसी जांच-पड़ताल के, आरंभिक चरण में ही इतने साक्ष्य उपलब्ध हैं जिनके आधार पर ये दो संभावनाएं पूरी तरह नकारी जा सकती हैं तो स्वाभाविक ही जांच का दायरा सीमित हो जाता है। बेहतर होता बीएसएफ के वरिष्ठ अधिकारी अपने इस निष्कर्ष को सार्वजनिक करने के बजाय जांच प्रक्रिया को उसकी तार्किक परिणति तक पहुंचने देते और फिर उससे निकले निष्कर्षों पर
विचार करते।

यह खास तौर पर इसलिए भी जरूरी था क्योंकि अपना पक्ष रखने के लिए वह जवान भी अब जीवित नहीं है। ध्यान रहे, यह अपनी तरह का कोई पहला मामला नहीं है। पिछले साल ही सितंबर की 23 तारीख को दक्षिण त्रिपुरा के गोमती जिले में हुई आपसी तकरार में दो बीएसएफ कर्मी मारे गए थे और एक घायल हो गया था। उससे पहले 2019 में एक बीएसएफ कर्मी ने दो साथियों को घायल करने के बाद अपनी जान ले ली थी। मई 2018 में भी एक बीएसएफ जवान ने तीन साथियों की हत्या कर खुद को शूट कर लिया था। उस घटना के बाद बीएसएफ ने अपने सुरक्षाकर्मियों के लिए सालाना मानसिक स्वास्थ्य जांच अनिवार्य कर दिया था। 

लेकिन यह सिर्फ जवानों के मानसिक स्वास्थ्य का मसला नहीं है। उनकी वर्किंग कंडिशंस, उनके ड्यूटी आवर्स और उनके साथ होने वाले व्यवहार के सवाल भी इससे जुड़े हैं। इस बारे में कई स्टडी रिपोर्ट्स भी उपलब्ध हैं। जरूरत यह है कि इन्हें समग्रता में देखा जाए और उनमें जो सुझाव दिए गए हैं, उन्हें मिलाकर एक दिशानिर्देश तैयार किया जाए। उसके बाद इन्हें व्यापक स्तर पर लागू करने की पहल की जानी चाहिए। उम्मीद है कि इससे खासा जैसे मामलों से भविष्य में बचने में मदद मिलेगी। साथ ही, इससे बीएसएफ जैसे संगठनों में नौकरी के लिए युवाओं का भी आकर्षण बढ़ेगा।

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