अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: हरियाणा में निजी क्षेत्र की नौकरियों में स्थानीय प्रत्याशियों के लिए 75 फीसदी सीटें आरक्षित करने के फैसले को राज्य का मामला बताने की केंद्र सरकार कोशिश को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने ठीक ही खारिज कर दिया। केंद्र सरकार ने इस मामले में अदालत को बताया था कि चूंकि यह राज्य का कानून है, इसलिए केंद्र सरकार इस पर कोई स्टैंड लेना जरूरी नहीं समझती। लिहाजा, इस मामले में वह कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेगी।
ध्यान रहे, हरियाणा स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स एक्ट 2020 राज्य विधानसभा में पिछले साल मार्च में पारित हुआ और राज्यपाल की मंजूरी के बाद नवंबर में इसे श्रम विभाग द्वारा नोटिफाई भी कर दिया गया। इस कानून के मुताबिक, राज्य में निजी क्षेत्र की तमाम कंपनियों, ट्रस्टों, सोसाइटियों के तहत निकाली जाने वाली नौकरियों में 30,000 रुपये प्रति महीने या उससे कम वेतन वाले सभी पदों पर 75 फीसदी स्थान उन प्रत्याशियों के लिए आरक्षित होंगे, जो हरियाणा के निवासी हैं। इसके तहत वे सारी कंपनियां आ जाती हैं, जिनमें दस या उससे ज्यादा कर्मचारी हैं। विभिन्न उद्योग संगठनों ने यह कहते हुए इस कानून को चुनौती दी है कि इसके जरिए राज्य सरकार प्राइवेट सेक्टर में आरक्षण लागू करना चाहती है, जो एम्प्लॉयर्स के अधिकारों का उल्लंघन है। अब तक इन क्षेत्रों में नौकरी कैंडिडेट्स की योग्यता और स्किल के आधार पर दी जाती रही
है।
साफ है कि इस कानून का सीधा प्रभाव देश भर के उन पढ़े-लिखे युवाओं की संभावनाओं पर भी पड़ेगा, जो अपनी काबिलियत के आधार पर देश के किसी भी हिस्से में जाने और काम करने की आकांक्षा रखते हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि केंद्र सरकार इस कानून को एक राज्य का मामला आखिर कैसे करार दे सकती है। हालांकि इस तरह का कानून लाने के पीछे राज्य सरकार की यह वाजिब चिंता है कि वह अपने राज्य के युवाओं को रोजगार मुहैया कराने की अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं कर पा रही।
लेकिन यह तथ्य भी उतना ही स्पष्ट है कि देश के अन्य राज्यों की सरकारें भी ऐसी चुनौती से जूझ रही हैं। ऐसे में अगर एक राज्य ने ऐसे कानून में हल ढूंढने की कोशिश की तो अन्य सरकारें भी उसका अनुसरण करने में नहीं हिचकेंगी, जिसका नतीजा अंतत: इस रूप में सामने आ सकता है कि देश के युवाओं की आकांक्षाओं का आकाश अपने-अपने राज्यों की सीमाओं में कैद होकर रह जाए। हैरत की बात है कि केंद्र सरकार इतने महत्वपूर्ण मामले को एक राज्य सरकार के मत्थे मढ़कर अपना पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रही है। अच्छा है कि हाईकोर्ट ने पूरी सख्ती दिखाते हुए इस नजरिए को अस्वीकार्य बता दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि बुधवार को इस मामले की अगली सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के रुख में पॉजिटिव बदलाव दिखेगा।
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