जान जाए पर चुनाव ना जाए....

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जान जाए पर चुनाव ना जाए....

Anjali Yadav 31-12-2021 17:35:48

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: चुनाव आयोग ने स्पष्ट कर दिया है कि उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव टाले नहीं जाएंगे। पिछले सप्ताह इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक जज ने कोरोना और उसके नए वेरिएंट ओमिक्रॉन के बढ़ते खतरे के मद्देनजर अपील की थी कि अगर संभव हो तो राज्य में विधानसभा चुनाव एक-दो महीने आगे खिसका दिए जाएं। इसके बाद से चुनाव की तारीख को लेकर अटकलों का बाजार गर्म था। इस स्थिति को देखते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त ने खुद प्रदेश का दौरा करके जमीनी हालात का जायजा लिया और सभी संबंधित पक्षों से राय-मशविरा किया।

सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव आयुक्त से यही कहा कि कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर सख्ती जरूर बरती जाए लेकिन चुनाव टालने की जरूरत नहीं है। वैसे भी पांच वर्ष के अंतराल पर आम चुनाव के जरिए नई विधानसभा का गठन एक संवैधानिक जरूरत है। इस व्यवस्था में कोई छेड़छाड़ सामान्य समय में नहीं की जा सकती। कोरोना महामारी का खतरा जरूर है, लेकिन हालात इतने बुरे नहीं कि चुनाव करवाना असंभव मान लिया जाए। कोरोना की पहली लहर के बीच जब बिहार विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक करवा लिए गए तो अब इन चुनावों को टालने की कोई वजह नहीं है। अब तो कोरोना के टीके भी उपलब्ध हैं। राज्य में 50 फीसदी वयस्क आबादी को टीके की दोनों डोज लगा दी गई हैं।

उम्मीद है कि चुनावों तक लगभग पूरी वयस्क आबादी को वैक्सीन की कम से
कम एक डोज दे दी जाएगी। ओमिक्रॉन के खतरे की जहां तक बात है तो जैसा कि चुनाव आयुक्त ने बताया राज्य में अब तक इसके सिर्फ चार केस पाए गए हैं, जिनमें से तीन तो ठीक भी हो चुके। यानी हालात ऐसे बिल्कुल नहीं हैं, जिन्हें काबू से बाहर माना जाए। फिर भी चुनाव आयोग ने अपनी तरफ से पूरी सावधानी बरतने का फैसला किया है। इसी क्रम में तय किया गया है कि फ्रंटलाइन पोल वर्कर्स की जिम्मेदारी उन्हीं लोगों को सौंपी जाएगी, जो टीके की दोनों डोज ले चुके होंगे। वोटिंग टाइम भी एक घंटा बढ़ा दिया जाएगा। इसके साथ ही पोल बूथों की संख्या भी बढ़ाई जा रही है ताकि वोटिंग के दौरान मतदाताओं के बीच दूरी बनाए रखने में कोई दिक्कत न हो।

हालांकि एक बड़ा सवाल रैलियों का रह गया है। विभिन्न नेताओं की बड़ी-बड़ी रैलियों में उमड़ती भीड़ चिंता का कारण बनी हुई है। पश्चिम बंगाल चुनावों के दौरान हुई रैलियों को कोरोना केसेज बढ़ने का एक बड़ा कारण माना गया था। यह भी सही है कि बड़ी रैलियों में हजारों की भीड़ के बीच प्रोटोकॉल का पालन सुनिश्चित कराना लगभग असंभव होता है। ऐसे में विशाल रैलियों के बजाय छोटी-छोटी सभाओं पर जोर देना व्यावहारिक हो सकता है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अगले महीने की शुरुआत में चुनाव तारीखों के एलान के वक्त चुनाव आयोग इस बारे में भी स्पष्ट दिशानिर्देश जारी करेगा।

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