अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: अच्छा होता यह काम और पहले किया जाता और विशेष रूप से कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा के बाद। इस आंदोलन का आवश्यकता से अधिक लंबा खिंचना किसान संगठनों और सरकार के बीच के अविश्वास को ही व्यक्त करता है। आंदोलन के बाद किसान अपने घर वापस लौट चले हैं। जब आंदोलन शुरू हुआ था तब किसान देश के विभिन्न हिस्सों से चल कर रामलीला मैदान में जमा होना चाहते थे, मगर सरकार ने उन्हें शहर में घुसने से रोक दिया था। तब उन्होंने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा जमा लिया था। हालांकि सरकार ने शुरू में उनसे बातचीत का सिलसिला चलाया, मगर वह अचानक रुक गया था। फिर तो किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर अपना स्थायी बसेरा बनाना शुरू कर दिया। र्इंट-गारे, लोहे-लक्कड़ से टपरे खड़े करने शुरू कर दिए थे। इसलिए कि उन्हें खुद अनुमान नहीं था कि सरकार कब तक उनकी मांगें मानेगी और कब तक उन्हें धूप, गरमी, बरसात, ठंड में खुले आसमान के नीचे बैठना पड़ेगा।
किसान तब तक वापस न लौटने का संकल्प ले चुके थे, जब तक कि कानून वापस नहीं होते। इस तरह किसानों और सरकार के बीच तनातनी और जोर-अजमाइश का वातावरण भी बना। किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के तर्क पर सड़कों के किनारे कंक्रीट की मजबूत बाड़बंदी कर दी गई, चौड़ी खाइयां खोद दी गर्इं, कई जगह मोटी-मोटी कीलें गाड़ दी गर्इं। इस तरह उन रास्तों से गुजरने वालों को नाहक परेशानी उठानी पड़ रही थी।
अब किसानों ने अपने तंबू उखाड़ने शुरू कर दिए हैं, तो स्वाभाविक ही उन धरनास्थलों के आसपास के इलाकों में रहने वालों, उन रास्तों से रोज आने-जाने वालों ने राहत की सांस ली है। उन रास्तों से गुजरने में लोगों को घंटों भीड़भाड़ से जूझना पड़ता था। सिंघु सीमा पर धरनास्थल
के आसपास के उद्योगों ने भी शिकायत की थी कि सड़कों पर व्यवधान होने की वजह से उन्हें माल लाने और उत्पाद बाहर भेजने में दिक्कत पेश आती है। इस परेशानी को लेकर एक नागरिक ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार भी लगाई थी कि उसे आने-जाने में परेशानी होती है।
उस पर अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि आंदोलन करना किसानों का अधिकार है, मगर अनिश्चित काल तक वे रास्तों को रोक कर नहीं बैठ सकते। इस पर किसानों ने सड़कों के किनारे से अपना कब्जा हटा लिया और स्पष्ट कर दिया था कि सड़कों पर व्यवधान उन्होंने नहीं, बल्कि सरकार ने खड़े किए हैं। खैर, अब किसानों की वजह से व्यवधान समाप्त हो गया है। किसानों ने एलान किया है कि वे पंद्रह तारीख तक सारी सीमाओं को पूरी तरह खाली कर देंगे। यानी अब उन रास्तों पर आवागमन सुचारु हो सकेगा।
आंदोलन की समाप्ति के साथ ही किसानों ने अपने साथियों से अपील की है कि जब वे अपना सामान समेट कर निकलें, तो उन जगहों को पूरी तरह झाड़Þ-बुहार कर साफ कर दें। उन्होंने ऐसे बाहरी लोगों से भी अपील की है, जो स्वयंसेवक के तौर पर उन इलाकों की साफ-सफाई में योगदान कर सकते हैं। हालांकि पूरे साल किसानों ने जिस तरह साफ-सफाई आदि का ध्यान रखा और कचरे आदि के निपटान में एक मिसाल कायम की, उसे देखते हुए यकीन के साथ कहा जा सकता है कि वे जाते वक्त सीमाओं को पहले से कुछ साफ-सुथरा करके ही जाएंगे। मगर सवाल है कि क्या सरकार ने उनसे कोई सबक लिया है। उसने जो बाड़बंदी और कीलबंदी कर रखी है, खाइयां खोद और लोहे के सरिए गाड़ रखे हैं, उन्हें कब तक हटाएगी और उन रास्तों की मरम्मत आदि कब तक करा पाएगी। जाते-जाते भी किसान सरकारों के लिए एक सबक छोड़ गए हैं।
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