बेरोजगारी, बजट और प्रधानमंत्री

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बेरोजगारी, बजट और प्रधानमंत्री

Anjali Yadav 03-02-2022 17:48:36

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: बेरोजगारी को दूर करने की संभावनाओं से लेकर 80 लाख बेघरों को पक्का मकान उपलब्ध कराने तक अगले वित्त वर्ष के लिए तैयार किए गए बजट के बारे में देश को बताने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास बहुत कुछ था। इसलिए बुधवार को जब उन्होंने बजट के बारे में भाजपा कार्यकर्ताओं और नेताओं को संबोधित किया, तो एक दिन पहले लोकसभा में सदन के पटल पर रखी गई योजनाओं का सिर्फ ब्योरा ही नहीं दिया, बल्कि वह उन्हें एक परिप्रेक्ष्य में रखते हुए भी दिखाई दिए। इस मौके पर प्रधानमंत्री बजट की व्याख्या ही नहीं कर रहे थे, बल्कि उन्होंने एक नई परंपरा की नींव भी रख दी। 


अभी तक की जो परंपरा थी, उसमें सालाना बजट के बारे में देश से संवाद करने का जिम्मा पूरी तरह से वित्त मंत्री का रहता था। बजट के बारे में अक्सर प्रधानमंत्री एक छोटा-सा व्यक्तव्य दे देते थे, जो उन्होंने कल दे भी दिया था। बाकी का काम वित्त मंत्री, मंत्रालय से संबद्ध अन्य मंत्री, मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त सचिव, राजस्व सचिव वगैरह को करना होता था। बजट के प्रावधानों की व्याख्या करना, उनकी जरूरत को बताना और उनके बारे में पैदा हो रही भ्रांतियों को दूर करना, यह काम एक्सपर्ट पैनल ही कर सकता है। इन सब ने कल एक लंबी चली प्रेस कांफ्रेंस में यह किया भी। लेकिन प्रधानमंत्री इस संवाद को एक कदम आगे ले गए। हालांकि, इस कार्यक्रम का आयोजन भाजपा ने किया था, पर इसके प्रसारण को पूरे देश ने देखा और प्रधानमंत्री की नजर से बहुत सी चीजों को समझा। मुमकिन है, कई तरह से उन्हें यह जरूरी भी लगा
हो।

 मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो बजट पेश किया था, उसके बारे में ज्यादातर विशेषज्ञों की राय यही थी कि यह किसी भी तरह से चुनावी या लोक-लुभावन बजट नहीं है। कुछ ने तो इसे ‘नो-नॉनसेंस’ बजट भी कहा। आम धारणा यही है कि जो बजट लोक-लुभावन नहीं होते, उनके फायदों को लोगों को समझाना टेढ़ी खीर होता है। यह भी कहा जाता है कि ऐसे बजट तार्किक रूप से भले मजबूत होते हों, पर राजनीतिक रूप से ज्यादा फायदा पहुंचाने वाले नहीं होते, क्योंकि उसका मर्म लोगों तक ठीक से नहीं पहंुच पाता। जाहिर है, इस बजट के बारे में यह चिंता भारतीय जनता पार्टी को भी रही होगी, शायद इसीलिए उसने इसका जिम्मा अपने सबसे कुशल कम्युनिकेटर और जनता से सबसे अच्छी तरह संवाद करने वाले प्रधानमंत्री मोदी को दिया। बुधवार को बजट पर दिया गया उनका यह संबोधन बताता है कि इस काम में प्रधानमंत्री पूरी तरह कामयाब भी रहे। बेशक! एक बात यह भी कही जाएगी कि जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव चल रहे हैं, वहां यह संबोधन प्रचार का काम भी करेगा।


इसके लिए भाजपा ने जो आयोजन किया, वह यह भी बताता है कि बजट जैसी जरूरी सरकारी कवायद को लेकर पार्टी कितनी गंभीर है। हालांकि, किसी भी सरकार की असल परीक्षा बजट पेश करने के बाद शुरू होती है। इसके प्रावधानों को नीचे आम लोगों तक पहंुचाना बजट बनाने के मुकाबले कहीं ज्यादा मुश्किल होता है। बजट के प्रावधान सरकार की सोच को बताते हैं, जबकि उसे लागू करना सरकार की प्रशासनिक क्षमताओं को। यह दूसरी चुनौती अब और भी बड़ी हो गई है, खासकर जब खुद प्रधानमंत्री ने देश से इसका वादा किया है। 

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