युद्ध हमेशा दर्द ही देते हैं जीतने वाले को भी और हारने वाले को भी। पर इस त्रासदी के समय में इस युद्ध के गवाह ना जाने कब तक इसकी पीड़ा सहते हैं चाहे वो शरणार्थी हो या फिर सैनिको का परिवार। पर यूक्रेन और रूस का युद्ध मानो अहम् का युद्ध हो जिद का युद्ध हो , जहां एक और यूक्रेन का राष्ट्रपति झुकने को तैयार नहीं तो रूस उसको तबाह किये बिना मानने को तैयार नहीं। यूक्रेन के विभिन्न हिस्सों से करोड़ों लोग पलायन कर चुके हैं। दोनों देशों के हजारों आम लोग और सैनिक मारे जा चुके हैं। इसके बावजूद युद्ध रुकने के आसार फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं। दोनों देशों के बीच युद्ध रोकने के लिए कई बैठकें भी हुईं, जो बेनतीजा रहीं।अभी यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने रूस से संबंध रखने वाले ग्यारह राजनीतिक दलों की गतिविधियां निलंबित कर दी हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति ने कहा है कि तटीय शहर मारीपोल की रूसी सैनिकों द्वारा की गई घेराबंदी को इतिहास में युद्ध अपराध के रूप में जाना जाएगा।
जो भी हो, रूस की सामरिक शक्ति को यूक्रेन और नाटो देशों ने जिस तरह से कम करके आंका था, वह उनकी भूल साबित हुई, क्योंकि संयुक्त रूस के अलग—अलग होने के बाद भी उसकी सामरिक शक्ति में कोई कमी नहीं हुई है।पता नहीं, यूक्रेन किस तरह अन्य देशों और खासकर अमेरिका के बहकावे में आकर रूस से युद्ध करने के लिए तैयार हो गया। अब यूक्रेन के निर्दोष नागरिकों को सरकारी अक्खड़पन के कारण अपने जीवन के साथ ही राष्ट्रीय संपत्ति को भी नुकसान उठाना पड़ रहा है। इस घमासान में भारतीय पक्ष ना काहू से दोस्ती न ाकाहू से बैर वाली भूमिका में है। प्रधानमंत्री सहित विदेश मंत्रालय का यह निर्णय वर्ष 1971 में भारतीय विदेश मंत्री सरदार स्वर्ण सिंह और सोवियत रूस के विदेश मंत्री आइन्द्रे ग्रोमिको द्वारा किए गए समझौते के हिसाब से बिलकुल दुरुस्त और जायज हैं।
इधर यूक्रेन ने कई राजनीतिक दलों की गतिविधियों को लगभग रोक दिया हैं जिन पर युद्ध के इस दौर में उनका विरोध करने की आशंका हैं या थी और यह निलंबन मार्शल कानून की अवधि तक बरक़रार माने जायेगे। अब जेलेंस्की सवाल करते फिर रहे हैं कि शांतिप्रिय शहर मालीपोल पर हमला करके रूस को क्या मिला? रूस की आलोचना करते हुए जैलेंस्की ने कहा, यह आतंक है, जो सैकड़ों वर्षों तक लोगों को याद रहेगा। अब यह जैलेंस्की को कौन समझाए कि यह बात तो उन्हें रूस के साथ युद्ध से पहली ही बैठक में इस बात को समझना था।
अब तो पानी सिर के ऊपर से गुजर चुका हैं, क्योंकि न तो नाटो देशों ने और न ही अमेरिका ने यूक्रेन के पक्ष में अपनी सेना तथा युद्ध सामग्री को भेजकर युद्ध रूस के खिलाफ लड़ने में मदद कर सका। और ना आगे कोई उम्मीद हैं बस वो यह देख रहे हैं कि यूक्रेन की लपटों से कैसे वो अपनी ठंडक मिटा पाए और रूस का सामरिक नुकसान और बढ़ जाय। हालांकि, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की परेशानियां भी कम होती नहीं दिख रही हैं। यूक्रेन में जहां रूसी सैनिकों को युद्ध के लगभग एक महीने बाद भी काफी जद्दोजहद करनी पड़ रही है, वहीं राष्ट्रपति पुतिन को अपने जान का खतरा सताने लगा है। शायद यही वजह है कि संभावित परमाणु हमले के डर से उन्होंने रहस्यमय तरीके से अपने परिवार के सभी सदस्यों को कहीं छिपा दिया है।
जबकि, अपने पर्सनल स्टाफ के लगभग एक सौ लोगों को काम से निकाल दिया है। शायद इन सबके पीछे उनको अपनी हत्या का डर सता रहा हो। और यह कोई बेवजह शंका मात्र नहीं हैं क्योकि रूस के कई वरिष्ठ राजनीतिक लोगों ने पुतिन के करीबी लोगों को उनकी हत्या करने की कोशिश करने के लिए प्रोत्साहित किया है। यही कारण है कि वह इतने खौफजदा हैं, क्योंकि दक्षिण कैरोलिना के सिनेटर लिंडसे ग्राहम ने ट्वीट कर पुतिन की हत्या करने का आह्वान किया था। लिंडसे ने ट्वीट किया था कि इन सब को खत्म करने का सिर्फ एक तरीका यही हो सकता है कि पुतिन को बाहर निकाल दिया जाए।ऐसा आप अपने देश के लिए करेंगे, दुनिया के लिए करेंगे। फ्रांस के एक खुफिया एजेंट का भी यह दावा है कि क्रेमलिन के अंदर के लोग तख्ता पलट कर पुतिन को सत्ता से बेदखल कर हत्या भी कर सकते हैं। जहर की बात इसलिए मजबूत होती है, क्योंकि रूसी सरकार अपने दुश्मनों को जहर देकर मारने के लिए ही जानी जाती है। इस फ्रेंच एजेंट का कहना है कि रशियन इंटेलिजेंस इकलौती ऐसी एजेंसी है जो जहर का इस्तेमाल करती है।
रूस और यूक्रेन की सहायता के लिए और विशेषकर रूस की मदद के लिए यदि कोई देश सामने आकर युद्ध को शांत करने का प्रयास कराता है या किसी के पक्ष में युद्ध लड़ने की बात सोचता है, तो महाशक्ति के रूप में अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की तरफ से उसे परिणाम भुगत लेने की धमकी मिलती है।भारत को भी अमरीकी सरकार द्वारा चेतावनी दी जा चुकी है कि यदि भारत अपनी तटस्थता की नीति का परित्याग नहीं करता है तो उसे इसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे।
हालांकि, यूक्रेन को भी कमतर मानना उचित नहीं है। राष्ट्रपति जैंलेस्की ने कहा, रूसी सेना ने हमारे देश के नागरिकों को झुकाने के लिए बड़े शहरों की घेराबंदी कर ली है, लेकिन उनकी यह रणनीति विफल हो जाएगी। जैलेंस्की ने चेतावनी दी है कि रूस यदि युद्ध खत्म करके सार्थक बातचीत शुरू नहीं करता है तो आनेवाले समय में उसे बहुत कुछ गंवाना पड़ सकता है। उन्होंने यह भी धमकी दी है कि यदि उनके रूसी समकक्ष व्लादिमीर पुतिन से वार्ता विफल रहती है, तो तीसरा विश्व युद्ध तय है।जैलेंस्की ने यह भी कहा मैं पिछले दो साल से बातचीत के लिए तैयार था। मुझे लगता है कि बिना बातचीत के युद्ध खत्म कर पाना मुश्किल है। अगर बातचीत की संभावना बनती है, तो एक प्रारूप का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। लेकिन, अगर वार्ता विफल रहती है, तो तीसरा विश्वयुद्ध होकर रहेगा। जैलेंस्की ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मिलने की अपील भी की है।
उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है जब यूक्रेन की क्षेत्रीय अखंडता और उसके लिए न्याय किया जाए। यदि ऐसा नहीं किया गया तो रूस को इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी कि कई पीढ़ियों तक रूस अपने पैरों पर खड़ा नहीं हो पाएगा। क्रीमिया के रूस में विलय की वर्षगांठ पर आयोजित मास्को में एक रैली और संगीत कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि यूक्रेन और क्रीमिया, बेलारूस और मालदोवा ये सभी मेरे देश हैं। यह रैली युद्ध में रूस को भारी सामरिक क्षति के बीच हुई थी। पर अब शायद एक बात साफ़ दुनिया को समझ लेनी चाहिए कि रूस की यह जिद शायद सोवियत संघ की मजबूत नीव को दुबारा रखने का एक प्रयास भी हो सकता हैं।
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