अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: निर्वाचन आयोग ने चुनाव प्रचार संबंधी प्रतिबंधों की अवधि ग्यारह फरवरी तक और बढ़ा दी है। हालांकि इसमें कुछ शर्तों को लचीला बना दिया गया है। मसलन, घर-घर जाकर प्रचार करने के लिए लोगों की संख्या दस से बढ़ा कर बीस कर दी गई है। जनसभाओं में लोगों की तादाद अधिकतम एक हजार कर दी गई है। कोविड की ताजा स्थितियों के मद्देनजर निर्वाचन आयोग ने यह फैसला किया है। ग्यारह फरवरी तक किसी भी पार्टी को पदयात्रा, रैली, जुलूस, साइकिल-मोटरसाइकिल यात्रा वगैरह निकालने की इजाजत नहीं होगी। यानी उत्तर प्रदेश में मतदान का पहला चरण समाप्त हो चुका होगा।
दूसरा चरण चौदह तारीख से है, जिसके लिए वैसे ही दो दिन बाद केवल घर-घर जनसंपर्क की इजाजत रह जाएगी। चौदह तारीख को तो उत्तर प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों में भी मतदान होगा। हालांकि पहले से चले आ रहे प्रतिबंधों के बावजूद जिस तरह से राजनीतिक दलों ने निर्वाचन आयोग की नजरों में धूल झोंकने का भरपूर प्रयास किया, वे ताजा फैसले के बाद नहीं करेंगे, इसका दावा करना मुश्किल है। नए आदेश में तो फिर भी निर्वाचन आयोग ने कुछ लचीला रुख दिखाया है। किसी जनसभा के लिए एक हजार लोगों की भीड़ एक ऐसी संख्या है, जिसमें एक हजार की भीड़ को गिनना आसान काम नहीं है, उसमें दो से पांच हजार तक लोगों को समाहित करने की कोशिश की जा सकती है।
यों भी राजनेताओं को भीड़ देख कर ही उत्साह बनता है, इसलिए जिस समय दस लोगों को साथ लेकर घर-घर जाकर प्रचार करने की इजाजत थी, उस समय भी सैकड़ों लोगों को साथ लेकर चल रहे थे। उसमें मुंह ढंकने और उचित दूरी का पालन करने की
जरूरत शायद कोई नहीं समझ रहा था। पिछले दिनों पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कुछ शहरों में जब केंद्रीय गृहमंत्री ने घर-घर जाकर प्रचार किया और उसमें बेतहाशा उमड़ी भीड़ देखी गई और लोगों ने एतराज जताया तो उन्हें अपना प्रचार अभियान रोकना पड़ा।
दरअसल, निर्वाचन आयोग की यह शर्त कई नेताओं के साथ व्यावहारिक रूप में लागू करना संभव नहीं हो पा रहा था। राजनीतिक दलों के बड़े चेहरों के सुरक्षा इंतजाम में ही इतने लोग लगे रहते हैं कि उन्हें दस की संख्या तक सीमित रख पाना संभव नहीं होता। इसलिए मांग की जा रही थी कि प्रशासन को कुछ ऐसा इंतजाम करें, जिससे भीड़भाड़ को काबू में रखना आसान हो सके। शायद इसे भी ध्यान में रखते हुए निर्वाचन आयोग ने कुछ ढिलाई दी है।
यों कोरोना के मामले अब पहले से कम दर्ज हो रहे हैं, पर चिंता की बात है कि इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा निरंतर बढ़ रहा है, इसलिए इसे लेकर किसी भी प्रकार की लापरवाही खतरे से खाली नहीं मानी जा सकती। ऐसे में जिस तरह राजनीतिक दल प्रचार में नियम-कायदों को ताक पर रखते देखे जा रहे हैं, वे नए नियमों के बाद कुछ और छूट लेने का प्रयास करेंगे। मतदान की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती है, राजनीतिक दलों में प्रचार की होड़ बढ़ जाती है। इसलिए वे निर्वाचन आयोग के दिशा-निर्देशों की धज्जियां उड़ाने से शायद ही बाज आएं। मगर निर्वाचन आयोग से अपेक्षा है कि जब उसने नियम बनाए हैं, तो उन पर अमल भी कड़ाई से सुनिश्चित कराए। वरना उसकी ढिलाई पर पहले ही अंगुलियां उठती रही हैं। इस बार मामला बड़ी आबादी की सेहत का है, इसलिए इसमें किसी प्रकार की ढिलाई नहीं बरती जानी चाहिए।
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