अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: इस पर हैरानी नहीं कि संसद के बजट सत्र में विपक्ष सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है। प्रत्येक सत्र के पूर्व इस तरह की तैयारी अब एक चलन का रूप ले चुकी है। दुर्भाग्य की बात यह है कि यह प्रवृत्ति अब बेलगाम होती दिख रही है। यही कारण है कि संसद के पिछले अनेक सत्र विपक्ष के हंगामे की भेंट चढ़ गए। ऐसा लगता है कि यह सिलसिला इस बजट सत्र में भी कायम रहने वाला है।
उचित यह होगा कि विपक्ष और विशेष रूप से कांग्रेस इस पर गंभीरता के साथ आत्ममंथन करे कि शोरशराबे की इस राजनीति से उसे हासिल क्या हो रहा है? यदि राहुल गांधी और उनके सहयोगी यह समझ रहे हैं कि संसद में राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सार्थक बहस करने के बजाय सतही विषयों पर हंगामा करने से कांग्रेस का भला हो रहा है तो यह सही नहीं। चूंकि कांग्रेस राष्ट्र को दिशा देने में सहायक कोई विमर्श खड़ा कर पाने में बुरी तरह नाकाम है इसीलिए जनता के बीच उसकी प्रतिष्ठा गिरती जा रही है और एक के बाद एक कांग्रेसी नेता दूसरे दलों की ओर रुख कर रहे हैं।
विपक्ष जिन मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने की तैयारी कर रहा है उनमें से अधिकांश
मुद्दे वे हैं जिनके जरिये वह पिछले सत्रों में भी हंगामा करके संसद के समय की बर्बादी कर चुका है। क्या यह उचित नहीं होगा कि विपक्ष इसकी तैयारी पर ज्यादा ध्यान दे कि आगामी बजट पर संसद के दोनों सदनों में कोई ठोस चर्चा कैसे हो। भले ही विपक्ष यह संदेश देने की कोशिश कर रहा हो कि वह किसानों की समस्याओं को हल करने के लिए व्यग्र है, लेकिन सच्चाई यह है कि उसने तीनों कृषि कानूनों पर जैसा रवैया अपनाया और ऐसी परिस्थितियां पैदा कीं कि सरकार को अनिच्छापूर्वक इन कानूनों को वापस लेने के लिए बाध्य होना पड़ा, उसके बाद विपक्षी दल यह कहने के अधिकारी नहीं रह जाते कि वे किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए प्रयत्नशील हैं।
यह लगभग तय है कि वह समय आएगा जब किसान कृषि कानूनों पर विपक्षी दलों के संकीर्ण रवैये के लिए उन्हें कोसेंगे। विपक्ष चाहे जो दावा करे, सच यह है कि वह देश का ध्यान भटकाने वाली राजनीति की राह पर चल निकला है और इसका उदाहरण है एक बार फिर पेगासस प्रकरण को तूल देने की तैयारी। आखिर जब इस प्रकरण की जांच सुप्रीम कोर्ट की समिति कर रही है तब फिर विपक्षी दल इस जांच समिति की रपट की प्रतीक्षा करने के लिए तैयार क्यों नहीं हैं?
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