कांग्रेस को पछाड़ते केजरीवाल

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कांग्रेस को पछाड़ते केजरीवाल

VIJAY SHUKLA 04-04-2022 13:14:59

 


 

देश की सियासत में तीसरे मोर्चे की बात होती थी जो धीरे धीरे  कहा चला गया क्योंकि नीतीश कुमार को निपटाते हुए भाजपा ने पूरा माहौल ही बदल दिया। उधर जब 2019 के आम चुनाव में 

पुलवामा हमले के बाद मोदी सरकार ने बालाकोट में एयर स्ट्राइक की तो सारा देश पीएम मोदी का मुरीद बन गया। और जब तक विपक्ष चिल्लाता समझता तब तक तो पूरा खेल बिगड़ गया था और उधर दिल्ली बचाने की कोशिश में केजरीवाल ने जब कांग्रेस की तरफ देखा तो कांग्रेस ने शायद  केजरीवाल के कद को काम करके आँका। जबकि तब तक  विपक्ष इस बात को समझ चूका था  कि अब लोकसभा चुनाव में बीजेपी से मुकाबला आसान नहीं होगा। पर अब पंजाब में फतह हासिल करके केजरीवाल ने गैर भाजपा गैर कांग्रेस मंच का पूरा माहौल बना दिया हैं और अब वो एक नायाब चेहरा हैं। ऐसा चेहरा जो कांग्रेस को उसके सपने में भी शायद रास नहीं आएगा।


 

अन्ना आंदोलन से निकले केजरीवाल  ने मनमोहन सरकार की चूलें हिला दीं और एक बड़ा वैक्यूम राष्ट्रीय राजनीति में बन गया। इसमें कोई शक नहीं कि इस आंदोलन का चेहरा अन्ना हजारे थे, लेकिन उसे धार देने का काम और भुनाने का काम केजरीवाल ने ही किया। अन्ना ने वापस रालेगण सिद्धि का रास्ता नापा क्योकि उनका राजनीति में आने का इरादा नहीं था। और  केजरीवाल ने उनसे इतर रास्ता अपनाया। और आम आदमी पार्टी अस्तित्व में आई। और दिल्ली चुनाव में वो उतरे। बहुमत हासिल नहीं कर सके तो कांग्रेस का सहारा लेकर सरकार बनाई। फिर दोस्ती तोड़कर दोबारा चुनाव का सामना किया। उधर मोदी लहर की चासनी की मिठास में बीजेपी मुगालते में थी कि केजरीवाल अपनी टीम में शामिल रहीं किरण बेदी से पार नहीं पा पाएंगे। लेकिन केजरीवाल ने कमाल कर दिया। बीजेपी और कांग्रेस का पूरी तरह से सूपड़ा साफ हो गया था। 67 सीटें जीतकर केजरीवाल ने राजनीति में धमाल मचा दिया था।


 

पर दिल्ली जीत को ना तो भाजपा ने  कांग्रेस ने तवज्जो दी उलटा एलजी के चक्कर में केजरीवाल को उलझाने की कोशिश में लगी रही। वजह थी उनका दिल्ली में सिमटना।दिल्ली से बाहर के सूबों में केवल पंजाब ही था जहां उनके चार नेता जीतकर संसद पहुंचे। 2017 के चुनाव में माना जा रहा था कि वो कांग्रेस के लिए पंजाब में कड़ी चुनौती बनेंगे। लेकिन तब कैप्टन अमरिंदर के करिश्मे के सहारे कांग्रेस ने 77
सीटें जीतकर आप के सपनों को पनपने से रोक दिया। और तब  केजरीवाल ने 20 सीटें जीतीं। उन्हें तब 17.1 फीसदी वोट मिले। लेकिन सबसे बड़ी उलझन ये थी कि दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी केजरीवाल के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं था जो लोकल हो और तब केजरीवाल के नाम का अफवाह ऐसा फैलाया गया था कि पंजाब के लोगो ने आम आदमी पार्टी की घनघोर लहर को महज बीस सीटों पर ही समेट  दिया था । पर केजरीवाल  पंजाब में दायरा बढ़ाते रहे और दूसरे सूबों में भी सेंधमारी की कोशिश करते रहे। गुजरात के निकाय चुनाव में उतरे और गांधी नगर में बेहतरीन प्रदर्शन कर कांग्रेस को तमाचा मारा।


 

पर आज केजरीवाल ने 2022 में पंजाब में प्रचंड़ जीत हासिल करके कांग्रेस के होश उड़ा दिए हैं। अब वो राष्ट्रीय राजनीति में एक बड़ा चेहरा लगभग बन गए हैं या जल्द ही बना दिए जायेगे और उनके सामने की दो चुनौतियों ममता बनर्जी और शरद पवार को पछाड़कर। पवार शिवसेना के मार्फत अपनी दावेदारी पेश करते रहते हैं तो ममता जगह-जगह घूमकर बीजेपी को उखाड़ फेंकने की बात कर रही हैं। लेकिन केजरीवाल इन दोनों से अलग हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह उनका हिंदी भाषी होना है। ममता यहीं पर उनसे मात खा जाती हैं। यहीं पर स्टालिन दम तोड़ देते हैं तो शरद पवार के रास्ते में भी ये चीज बड़ी बाधा बन जाती है। कहने की जरूरत नहीं कि यूपी, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर की जीत की खुशी में मदमस्त बीजेपी को भी केजरीवाल की चिंता सालने लगी है।लेकिन उनके बड़ा बनने से बीजेपी से भी ज्यादा दिक्कत कांग्रेस को है। 


 

कांग्रेस ने पांचों सूबों में मुंह की खाई है। भाजपा के एक के बाद एक करके तीन सीएम बदलने के बाद भी कांग्रेस  उत्तराखंड की जनता को भरोसे में नहीं ले सकी  तो गोवा में चिदंबरम की सारी रणनीति धरी की धरी रह गईं। पंजाब में नवजोत सिद्धू को मेन स्ट्रीम में लाने से नुकसान ही हुआ। वहीं यूपी में प्रियंका लड़कियों को तमाम सब्जबाग दिखाने के बाद भी जमीन पर फेल ही रही वजह महज सतही स्तर पर इवेंट के सहारे माहौल बनाना। यूपी में उन्हें पता था कि जीत बहुत दूर है लेकिन कुछ सीटें मिल जाती तो उनके लिए चेहरा दिखाना थोड़ा आसान हो जाता।  पर अब तो खेल के मायने ही बदल रहे हैं। 

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