अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी ने ब्याज दरों में कोई बदलाव नहीं किया। यह लगातार दसवां मौका है, जब दरें जस की तस रखी गईं। आखिरी बार 22 मई 2020 को पॉलिसी रेट में बदलाव हुआ था। तब ब्याज दरें घटाई गई थीं। आरबीआई जिस दर पर बैंकों को उधार देता है, उस रेपो रेट को 4 फीसदी पर बनाए रखा गया। आरबीआई के पास पैसा जमा करने पर बैंकों को मिलने वाली ब्याज दर यानी रिवर्स रेपो रेट को भी 3.35 फीसदी पर रहने दिया गया।
अनुमान लगाया जा रहा था कि इस बार आरबीआई रिवर्स रेपो रेट में 0.15-0.40 फीसदी तक बढ़ोतरी करेगा, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। रिजर्व बैंक के दरों में बदलाव ना करने की वजह यह है कि वह इकॉनमिक रिकवरी को सपोर्ट देना चाहता है। इससे पहले बजट में सरकार ने वित्त वर्ष 2023 में कैपिटल एक्सपेंडिचर में 35 फीसदी से अधिक बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा था। केंद्र को ऐसा इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि अभी कंस्यूमर डिमांड कमजोर है। इस वजह से निजी क्षेत्र की ओर से बहुत निवेश नहीं हो रहा। सरकार को लगता है कि उसके अधिक पैसा खर्च करने से आर्थिक विकास दर में तेजी आएगी। लिहाजा रोजगार बढ़ेगा और लोग अधिक पैसा खर्च करेंगे। इससे डिमांड की दिक्कत दूर हो सकती है। रिजर्व बैंक ने ब्याज दरों में बदलाव ना करके एक तरह से सरकार की
इस नीति को समर्थन दिया है।
इतना ही नहीं, रिजर्व बैंक ने यह भी कहा कि जब तक ग्रोथ टिकाऊ नहीं हो जाती, तब तक वह कर्ज महंगा नहीं करेगा। लेकिन इसमें एक पेच है। देश में महंगाई बढ़ रही है। खुदरा महंगाई दर भले ही रिजर्व बैंक के 6 फीसदी की अधिकतम सीमा से कम हो, लेकिन थोक महंगाई दर बहुत ऊंची है। इससे खुदरा महंगाई दर आने वाले वक्त में बढ़ेगी। इस बीच, कच्चे तेल के दाम में काफी बढ़ोतरी हुई है। यूं तो पांच राज्यों में चुनाव को देखते हुए तीन महीने से अधिक वक्त से देश में पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़े हैं, लेकिन यह स्थिति चुनाव खत्म होने के बाद बदल सकती है। तब तेल की कीमतों का असर भी महंगाई पर पड़ेगा।
उधर, अमेरिका में महंगाई दर 7 फीसदी के करीब पहुंच गई है, जो 80 के दशक की शुरुआत के बाद सबसे ज्यादा है। इसलिए वहां मार्च से ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला शुरू हो सकता है। इसी वजह से भारतीय शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशक कुछ महीनों से पैसा निकाल रहे हैं। रिजर्व बैंक को यह पक्का करना होगा कि इससे रुपया कमजोर ना हो। यह भी देखना होगा कि सस्ती ब्याज दरों की वजह से किसी भी एसेट क्लास में बुलबुला ना बने और सबसे बड़ी बात यह है कि महंगाई बेकाबू ना हो क्योंकि वह खासतौर पर गरीबों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक होती है।
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