RTI क़ानून आने के बाद पिछले 15 वर्षों में कितना बदलाव भारत

लोकसभा से चौधरी महेंद्र प्रताप को कांग्रेस ने उतरा मैदान में - बधाई देने वालों का लगा तांता । मतदाता जागरूकता गतिविधिया- नीमच पीलीभीत में गोमती नदी को रात में ही शारदा नहर से दिया गया पानी पीलीभीत से सुहाना हो जाएगा लखनऊ का सफर, आज से चलेगी समर स्पेशल ट्रेन पांचवें चरण की अधिसूचना आज जारी होने के साथ ही झारखंड की तीन सीटों चतरा, हजारीबाग और कोडरमा के लिए नामांकन प्रक्रिया शुरू अयोध्या में राम लला को समर्पित कीं रामायण पर ड्राइंग व क्राफ्ट की अभ्यास पुस्तिकाएं झारखंड में चौथे चरण के लोकसभा सीट के लिए 65 प्रत्याशियों ने किया नामांकन प्रवेश प्रक्रिया- यूजी-पीजी दूसरा चरण मतदान मौसम-राजस्थान अनूपगढ़ : सिंचाई पानी को लेकर हुए विवाद में एक वृद्ध व्यक्ति की मौत लोकसभा चुनावों के चौथे चरण के लिए नामांकन पत्रों की जांच आज होगी लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण के तहत छत्तीसगढ़ के तीन लोकसभा क्षेत्रों में जोर-शोर से जारी है मतदान आज का राशिफल पुलिस ने लेवी मांगनेवाले दो अपराधियों को हथियार सहित दबोचा Karauli : श्री महावीर जी में भगवान जिनेन्द्र की निकली रथ यात्रा पीलीभीत टाइगर रिजर्व के बीच स्थित नहरों का जंक्शन है खास 29 को कल्पना सोरेन गांडेय से करेगी नामांकन बीजापुर के आराध्य देव चिकटराज मेले का हुआ समापन उत्तराखंड: चारधाम यात्रा के लिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन लगातार जारी

RTI क़ानून आने के बाद पिछले 15 वर्षों में कितना बदलाव भारत

Anjali Yadav 18-10-2020 16:30:02

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,



नई दिल्ली: भारत में आरटीआई अधिनियम लाने का मक्सत भ्रष्टाचार के रोकथाम था. बता दे कि बीते 12 अक्टूबर 2020 को आरटीआई यानी सूचना का अधिकार कानून को लागू हुए 15 साल हो गए. इस तारीख को देश में आरटीआई दिवस मनाया जाता है.



कानून के सफर में रहा काफी उतार-चढ़ाव

कहा जाता है कि लंबे संघर्ष के बाद बने इस कानून का सफर काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा है. एक तरफ विभिन्न सरकारें इस कानून में संशोधन करके या समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति न करके या कई महत्वपूर्ण विभागों को इसके दायरे से बाहर रखकर इसे कमजोर करने की कोशिश करती रही हैं.

वहीं दूसरी तरफ आम नागरिकों ने अपने इस बेहद महत्वपूर्ण अधिकार का इस्तेमाल करते हुए बहुत बड़ी संख्या में आरटीआई आवेदन दायर किया और जवाब न मिलने पर वे सूचना आयोग, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक भी गए. आरटीआई के तहत सूचना देने से इनकार करने के फैसलों को न्यायालयों में चुनौती दी गई और लगातार इस कानून की व्याख्या की जा रही है. अब ऐसे में यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर पिछले 15 सालों में आरटीआई एक्ट के आने के बाद से भारतीय लोकतंत्र कितना बदला है.



अब तक 3.33 करोड़ RTI आवेदन किए दायर

पारदर्शिता एवं भ्रष्टाचार की दिशा में काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया’ की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्र एवं राज्य सरकारों में कुल 3.33 करोड़ आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. हालांकि ये आरटीआई आवेदनों की न्यूनतम संख्या है, क्योंकि इसमें उत्तर प्रदेश और तेलंगाना के आंकड़े शामिल नहीं है. इसके साथ ही इसमें कई राज्यों का अपडेटेड आंकड़ा उपलब्ध नहीं है.

इसमें से सबसे ज्यादा 9,263,816 आरटीआई आवेदन केंद्र सरकार के लिए दायर किए गए हैं. इसके बाद महाराष्ट्र राज्य का नंबर आता है, जहां पिछले 15 सालों में 6,936,564 आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. इसी तरह कर्नाटक में 3,050,947, तमिलनाडु में 2,691,396, केरल में 2,192,571, गुजरात में 1,388,225, राजस्थान में 1,212,827, उत्तराखंड में 969,511, छत्तीसगढ़ में 896,288, बिहार में 884,102, आंध्र प्रदेश में 804,509, पंजाब में 792,408 और हरियाणा में 613,048 आरटीआई आवेदन दायर किए गए हैं. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में 484,356, ओडिशा में 411,621, मध्य प्रदेश में 184,112, असम में 182,994, पश्चिम बंगाल में 98,323, जम्मू कश्मीर में 73,452, झारखंड में 67,226, त्रिपुरा में 42,111, गोवा में 32,283, नगालैंड में 28,604, अरुणाचल प्रदेश में 26,152, मेघालय में 18,527, मिजोरम में 16,115, सिक्किम में 5,120 और मणिपुर में 4,374 आरटीआई आवेदन दायर किए जा चुके हैं.



सूचना आयोगों में दूसरी अपील

आरटीआई एक्ट के तहत जनसूचना अधिकारी द्वारा सूचना देने से इनकार किए जाने पर कानून में ये व्यवस्था दी गई है कि आवेदन संबंधित सूचना आयोग में इसके खिलाफ अपील और शिकायत दायर कर सकते हैं, जो इस पर निर्णय लेगा कि सूचना दी जा सकती है या नहीं. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2005-06 से लेकर 2019-20 तक केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में कुल 21.86 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं.

सबसे ज्यादा तमिलनाडु सूचना आयोग में 461,812 अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं. इसके बाद केंद्रीय सूचना आयोग का नंबर आता है, जहां पिछले 15 सालों में कुल 302,080 शिकायतें एवं अपीलें दायर की गई हैं. बाकि अन्य राज्यों में भी सूचना आयोग में अपील एवं शिकायतें दायर की गई हैं.



सूचना न देने पर लगाया गया जुर्माना

आरटीआई एक्ट
की
धारा 20(1) के तहत केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों को ये शक्ति मिली हुई है कि यदि गलत तरीके से सूचना देने से मना किया जाता है या सूचना नहीं दी जाती है तो वे संबंधित जनसूचना अधिकारी पर जुर्माना लगा सकते हैं. सूचना आयोग प्रतिदिन 250 रुपये या अधिकतम 25,000 रुपये तक का जुर्माना लगा सकते हैं.

हालांकि ये देखने में आया है कि सूचना आयोग आम तौर पर जुर्माना लगाने पर ढिलाई बरतते हैं, जिसके चलते सूचना देने से इनकार, गलत सूचना, देरी से सूचना देने जैसे मामलों में काफी बढ़ोतरी हुई है. उदाहरण के तौर पर असम में पिछले 14 सालों में सिर्फ 63 मामलों में सूचना आयोग ने जुर्माना लगाया है. इसी तरह बिहार में 463, गुजरात में 654, हिमाचल प्रदेश में 208, केरल में 664, नगालैंड में 73, ओडिशा में 1,031 मामलों में जुर्माना लगाया गया है. अन्य राज्यों के सूचना आयोगों द्वारा लगाए गए जुर्माने का आंकड़ा नीचे दी गई तालिका में देखा जा सकता है.



केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में खाली पद

देश भर के विभिन्न सूचना आयोगों में समय पर सूचना आयुक्तों की नियुक्ति नहीं होने के कारण सरकारें सवालों के घेरे में हैं. इसे लेकर पिछले साल फरवरी महीने में सुप्रीम कोर्ट ने समय पर नियुक्ति करने के लिए एक महत्वपूर्ण आदेश दिया था, लेकिन इसके बावजूद कोई खास परिवर्तन नहीं आया है.

देश भर में केंद्रीय एवं राज्य सूचना आयोगों में कुल 160 पद हैं, जिसमें से 29 पद मुख्य सूचना आयुक्त और 131 पद सूचना आयुक्तों के हैं. हालांकि आलम ये है कि इस समय मुख्य सूचना आयुक्तों के चार पद और सूचना आयुक्तों के 34 पद खाली पड़े हैं.

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक केंद्रीय सूचना आयोग में कुल 11 पद हैं, लेकिन इसमें से पांच पद खाली हैं. हालत ये है कि मुख्य सूचना आयुक्त का भी पद यहां रिक्त है. राज्यों को अगर देखें तो आंध्र प्रदेश सूचना आयोग में कुल छह पद हैं, जिसमें दो अक्टूबर 2020 तक सभी पद भरे हुए थे. वहीं अरुणाचल प्रदेश में पांच में से तीन पद, छत्तीसगढ़ में चार में से एक पद, गोवा में तीन में से एक पद, हरियाणा में 11 में से तीन पद, हिमाचल प्रदेश में दो में से एक पद, झारखंड में दो में से दोनों पद खाली पड़े हैं.



कोर्ट ने भी RTI को मजबूत करने के बजाय लगाया ब्रेक

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशन इंडिया के कार्यकारी निदेशक रामनाथ झा ने कहा, ‘सूचना का अधिकार निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार के उन्मूलन का कारगर हथियार है, लेकिन शुरू के कुछ वर्ष के बाद इस कानून की धार को सभी सरकारों ने कम किया है, कोर्ट ने भी अपने फैसलों में आरटीआई एक्ट को मजबूत करने के बजाय इस पर ब्रेक लगाने का काम किया है.’

उन्होंने आगे कहा, ‘कानून बनने के बाद से केंद्र अथवा किसी राज्य सरकार ने इसकी जागरूकता के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं किए. गांव में आज भी आरटीआई लगाने का मतलब लोग शिकायत करना समझते हैं, शायद जनता के पास अपनी हर समस्या का समाधान करने का अभी भी यही कारगर अधिकार है.’

मालूम हो कि आरटीआई के पालन को लेकर जारी वैश्विक रैंकिंग में भारत का स्थान नीचे गिरकर वर्ष 2018 में सातवें पायदान (साल 2020 में भी) पर पहुंच गया है, जबकि पूर्व में भारत दूसरे स्थान पर था. खास बात ये है कि जिन देशों को भारत से ऊपर स्थान मिला है, उनमें से ज्यादातर देशों ने भारत के बाद इस कानून को अपने यहां लागू किया है.

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :