अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: स्वास्थ्य देश एक व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक और सामाजिक बेहतरी को संदर्भित करता है। एक व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेते हुए तब कहा जाता है जब वह किसी भी शारीरिक बीमारियों, मानसिक तनाव से रहित होता है और अच्छे पारस्परिक संबंधों का मज़ा उठाता है। वहीं कोरोना के मामले जहां कम होने लगे हैं, वहीं डेंगू के मामलों में बढ़ोतरी चिंता और दुख की बात है। राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के अनेक राज्यों में डेंगू के मामलों ने स्वास्थ्य एजेंसियों को परेशान करना शुरू कर दिया है। एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में इस साल डेंगू के 1,000 से ज्यादा मामले दर्ज किए गए हैं, जिसमें पिछले सप्ताह 280 से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। दिल्ली सरकार ने अस्पतालों को निर्देश दिया है कि कोरोना के लिए आरक्षित बिस्तरों में से एक तिहाई बिस्तर डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों के लिए आरक्षित कर दिया जाए। दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, पंजाब और बिहार में भी डेंगू से चिंता बढ़ी है। कुछ जगहों से रिकॉर्ड मामले आ रहे हैं।
यह बात सर्वज्ञात है कि डेंगू मच्छर जनित बीमारी है, जो एडीज मच्छरों के काटने के कारण होती है। डेंगू से संक्रमित ज्यादातर लोगों में हल्के या कोई लक्षण नहीं होते हैं। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र के अनुसार, डेंगू से संक्रमित 75 प्रतिशत लोगों में कोई लक्षण नहीं दिखता है, जबकि 20 प्रतिशत में हल्के लक्षण होते हैं और पांच प्रतिशत में गंभीर लक्षण विकसित हो सकते हैं, जो जानलेवा भी हो सकते हैं। अत: सावधानी व समय पर इलाज जरूरी है। ध्यान रखना चाहिए कि इधर एक सप्ताह में कुछ डॉक्टरों की भी डेंगू से मौत हुई है। इस वर्ष डेंगू के मामलों का बढ़ना विवश कर रहा है कि इसके कारणों पर फिर से
निगाह डाली जाए। मलेरिया के मामलों में हाल के वर्षों में भारी गिरावट हुई है। साल 2000 से 2019 के बीच मलेरिया के मामलों में 71.8 फीसदी, जबकि मौतों में 73.9 फीसदी की गिरावट आई है। शायद हमारे प्रयासों में कमी है, तभी हम ऐसी बीमारियों को भी पूरी तरह से काबू नहीं कर पा रहे हैं। पंजाब जैसे संपन्न और साफ-सुथरे समझे जाने वाले राज्य में इस साल डेंगू से करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है। महाराष्ट्र भी विकसित है और दिल्ली भी अपेक्षाकृत विकसित है, लेकिन ऐसे राज्यों में अगर मच्छरों का आतंक कम नहीं हो रहा है, तो अपेक्षाकृत पिछड़े राज्यों की क्या स्थिति होगी, सहज अनुमान लगाया जा सकता है।
डेंगू के साथ-साथ मलेरिया और चिकनगुनिया ने भी अगर सिर उठाया है, तो इसका मतलब है, मच्छरों के प्रति हम लापरवाह हुए हैं। अब समय आ गया है, जब भारत के शहरों और रिहाइशी इलाकों को मच्छर-मुक्त बनाने के तमाम उपाय किए जाएं। नए स्वच्छता अभियान को मच्छर-मुक्त शहर-गांव बनाने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। शहरों को हरा-भरा और साफ-सुथरा करने के लिए सरकारों की ओर से बहुत धन खर्च किया जा रहा है। स्मार्ट सिटी बनाने की कोशिशें चल रही हैं, लेकिन क्या हमारा कोई ऐसा शहर है, जहां कूड़े के पहाड़ न हों या जहां खुली नालियां न बहती हों? राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र को ही अगर देख लिया जाए, तो समझ में आ जाता है कि हम वास्तविक रूप से साफ-सफाई के लिए अभी आधे भी सजग नहीं हुए हैं। व्यक्तिगत स्तर परजहां आम लोग जागरूक हैं, वहां तो गंदगी और मच्छरों से थोड़ी मुक्ति की स्थितियां बनी हैं, लेकिन ज्यादातर जगह आम लोग सफाई को अपना नहीं, किसी और का काम समझते हैं। जब हम सफाई रखने को अपना मूलभूत काम समझने लगेंगे, तो डेंगू ही नहीं, दस से ज्यादा बीमारियों को हमेशा के लिए अलविदा कह देंगे।
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