अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: देश की मजबूती के लिए देश की कारगर प्रतिभाओं का सम्मान जरूरी है, ताकि समाज में आचरण और कर्म का एक आदर्श बना रहे। इस वर्ष देश की 128 विभूतियों को पद्म सम्मान की घोषणा हुई है, जिनमें से चार विभूतियों को पद्म विभूषण मिलना है। पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत, पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह, संगीतज्ञ प्रभा अत्रे के साथ ही गीता प्रेस के पूर्व अध्यक्ष राधेश्याम खेमका को भी दिया गया सम्मान स्वागत के योग्य है। 17 विभूतियों को पद्म भूषण और 107 को पद्मश्री की घोषणा हुई है। सीईओ सुंदर पिचई से लेकर अभिनेता विक्टर बनर्जी तक एक से बढ़कर एक हस्तियां हैं, जिन्हें सम्मानित किया जा रहा है। सरकार ने इस बार भी किसी को भारत रत्न देने की घोषणा नहीं की है, तो कोई अचरज की बात नहीं, बल्कि यह दुखद संकेत भी है कि अपने देश में सम्मान भी विवाद का विषय हुआ करते हैं। सम्मान की खुशी के साथ छटांक भर दुख या नाराजगी भी हर बार आ ही जाती है।
गौर करने की बात है कि सीपीएम नेता और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे बुद्धदेब भट्टाचार्य समेत तीन हस्तियों ने सम्मान लेने से मना कर दिया है। यह संयोग ही है कि ये तीनों हस्तियां पश्चिम बंगाल से आती हैं। लगता है, वामपंथी नेता बुद्धदेब भट्टाचार्य ने राजनीतिक मतभेद की वजह से ही सम्मान लेने से मना किया है। राजनीतिक पार्टियां तो सत्ता में आती-जाती रहती हैं, दस्तावेजों पर तो यही लिखा मिलता है कि फलां वर्ष में फलां विभूति को फलां पद्म सम्मान मिला था। राजनीतिक मतभेद अपनी जगह है, सम्मान लेने के बाद भी वह जारी रह सकता है। इस बार
कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद को पद्म भूषण देने की घोषणा हुई है, तो जरूरी नहीं कि इस अवसर का राजनीति के लिए भी लाभ लिया जाए। अफसोस, व्यंग्य में ही सही, कांग्रेस के एक नेता ने उन्हें गुलाम के बजाय आजाद रहने की नसीहत दी है। हालांकि, अनेक कांग्रेस नेताओं ने उन्हें बधाई दी है। अपने किसी नेता के सम्मान पर कम से कम किसी पार्टी के अंदर विवाद नहीं होना चाहिए। गुलाम नबी आजाद को दिया गया सम्मान, एक ऐसे नेता का सम्मान है, जो अपनी लोकतांत्रिक शालीनता से हर जगह व्यावहारिक पैठ रखते हैं।
दो अन्य विभूतियों ने भी पद्म सम्मान ठुकराया है। तबला वादक पंडित अनिंदो चटर्जी और संगीतज्ञ संध्या मुखोपाध्याय के दुख को पूरी संवेदना से समझना चाहिए। अनिंदो को सरकार से बड़े सम्मान की आशा थी, तो सरकार इस पर पहले भी बात कर सकती थी। घोषणा के बाद किसी के इनकार से बनने वाली अपमानजनक स्थिति से बचना जरूरी है। पद्म सम्मान कोई राजनीतिक पार्टी अपने बैनर तले नहीं देती है, सम्मान के साथ भारत सरकार की प्रतिष्ठा जुड़ी होती है। यह अधिकारियों के स्तर पर कमी है कि वे विभूतियों से आवश्यक संवाद भी नहीं बना पा रहे हैं। संगीतज्ञ 90 वर्षीया संध्या मुखोपाध्याय ने सम्मान ठुकराते हुए कहा है कि 75 वर्ष के लंबे करियर के बाद अगर सरकार को लगता है कि वह पद्मश्री के लायक हैं, तो उन्हें यह सम्मान नहीं चाहिए। वाकई यह स्थिति नहीं बननी चाहिए थी, इससे एक खराब संदेश गया है। सम्मान देते हुए सरकारों को पूरी संवेदना और पारदर्शिता के साथ तमाम पहलुओं पर विचार करना चाहिए, ताकि प्रादेशिक या राष्ट्रीय सम्मान किसी को अपमान की तरह न महसूस हो।
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