साल 2011 दिल्ली की आबोहवा में अन्ना हजारे के आंदोलन की खुशबू बिखर रही थी और देश के कोने कोने में ना जाने कांग्रेस के खिलाफ या राष्ट्रहित में एक नया जूनून दिख रहा था क्या अनपढ़ क्या पढ़े लिखे सब आंदोलन में अपनी आहुति दे रहे थे और उस समय सबसे अलग एक नाम अरविन्द केजरीवाल के रूप में जनता की उम्मीदों पर जन लोकपाल बिल के सहारे अपनी पैठ बना रहे थे। अन्ना से उलट केजरीवाल सत्ता के गलियारे से देश की राजनीति बदलने की योजना में थे और भाजपा को भी शायद कांग्रेस को उखाड़ फेकने में यह नयी शुरुवात मददगार ही लग रही थी और हुआ भी वैसा ही। आम आदमी पार्टी पहली बार दिसंबर 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव में झाड़ू चुनाव चिह्न के साथ चुनाव मैदान में उतरी। पार्टी ने चुनाव में 28 सीटों पर जीत दर्ज की और कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाई। अरविंद केजरीवाल ने 28 दिसंबर, 2013 को दिल्ली के सातवें मुख्यमंत्री बने। 49 दिनों के बाद 14 फरवरी, 2014 को विधानसभा द्वारा जन लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करने के प्रस्ताव को समर्थन न मिल पाने के कारण अरविंद केजरीवाल की सरकार ने त्यागपत्र दे दिया।
दिल्लीवासियों को वर्ष 2015 में एक बार फिर चुनाव का सामना करना पड़ा और इस बार केजरीवाल के नेतृत्व में आप ने सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते हुए दिल्ली विधानसभा की 70 में 67 सीटों पर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। इस चुनाव में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा सिर्फ तीन सीटें जीत सकी, जबकि कांग्रेस का तो यहां खाता भी नहीं खुल पाया। इसी तरह इस बार पंजाब में कमजोर कांग्रेस को बुरी तरह रौंदते हुए 117 में 90 सीटों पर ‘आप’ ने कब्जा करते हुए मुख्यमंत्री भगवंत मान के नेतृत्व में सरकार का गठन कर लिया। निःसंदेह आम आदमी पार्टी की इस ऐतिहासिक जीत पर कई संस्थाओं द्वारा अनुसंधान किया जा रहा होगा।
इसके उलट आज लगभग खात्मे की तरफ जाती दिख रही कांग्रेस जो आजादी के समय और उसके बाद तक लोगों में अपने आपको कांग्रेस से जुड़ा बताने पर गर्व महसूस करने सरीखा था और कांग्रेस एक पार्टी के साथ एक विचारधारा थी। भारत में राजनीतिक आंदोलन की शुरुआती परंपरा की नींव आजादी से पूर्व रखी गई थी। इंडियन नेशनल कांग्रेस का इसमें खास योगदान है।कांग्रेस देश की पहली और बड़ी राजनीतिक पार्टी है। आजादी के बाद के करीब 75 साल में देश में सबसे ज्यादा इसी राजनीतिक दल की सरकार रही है। देश का संविधान बनने से लेकर देश की हर व्यवस्था में कांग्रेस की छाप दिखती है। देश के सबसे बड़े और महत्वपूर्ण नेता, चाहे वह आजादी के आंदोलन से जुडे हों या फिर आजादी के बाद सभी की राजनीतिक जड़ें कांग्रेस से जुड़ी हुई थीं। जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सुभाष चंद्र बोस से लेकर अन्य कई बड़े नामों ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत इसी कांग्रेस से की थी।
कांग्रेस से इतर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना साल 1980 में हुई, लेकिन इसके मूल में श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में निर्मित भारतीय जनसंघ ही है। इसके संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी रहे, जबकि मुस्लिम चेहरे के रूप में सिकंदर बख्त महासचिव बने। वर्ष 1984 के चुनाव में भाजपा के खाते में मात्र दो सीटें थीं, लेकिन वर्तमान में सर्वाधिक राज्यों में भाजपा की खुद की या फिर उसके समर्थन से बनी हुई सरकारें हैं।साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा कांग्रेस के बाद देश की एकमात्र ऐसी पार्टी बनी जिसने चुनाव भले ही गठबंधन साथियों के साथ लड़ा, लेकिन 282 सीटें हासिल कर अपने बूते बहुमत हासिल किया। वर्ष 2019 में बंपर 302 सीट जीतकर देश के आम लोगों
की अपनी पार्टी बन गई। आज भाजपा देश की ही नहीं, पार्टी के लोगों का दावा है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है जिसके देश विदेश में करोड़ों समर्थक हैं। हिंदुत्व की बता हो या राष्ट्रवाद की शायद मोदी का असर आम जनता पर एक नशे सरीखा ही हैं।
जैसे जैसे कांग्रेस टूटी और वाम और जनता दल कमजोर हुआ बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसी पार्टिया भी वजूद में आयी और सबका केंद्र यूपी ही था क्योकि कहते हैं दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता हैं। उत्तर प्रदेश में उस पार्टी की सरकार बनी और मायावती ने मुख्यमंत्री का पदभार संभाला। लेकिन, लचर नीतियों के कारण धीरे धीरे पार्टी अपना अस्तित्व खोती चली गई। फिर वर्ष 2022 के चुनाव में पूरे उत्तर प्रदेश में केवल एक सीट पर सिमटकर तो लगभग अपना अस्तित्व ही खत्म कर लिया।अब कई समीक्षक इसकी भी एक्स-रे करेंगे। समाजवादी पार्टी की स्थापना एक शिक्षक मुलायम सिंह यादव ने 4 अक्टूबर, 1992 को की थी। समाजवादी पार्टी के संस्थापक व संरक्षक मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री और देश के पूर्व रक्षा मंत्री रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव वर्तमान में इस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 2017 के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से बुरी तरह चुनाव हारने के बाद पार्टी का फिर से चुनाव में जीत हासिल करना बड़ी टेढ़ी खीर थी, लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और जयंत चौधरी की जोड़ी ने तथा अन्य दलों के गठबंधन ने जनता से अपने अस्तित्व को बचाए रखने की अपील का लाभ लेते हुए लगभग सवा सौ सीटों पर अपना कब्जा करके यह साबित कर दिया कि अगले चुनाव में यह दल और जोरदारी से उत्तर प्रदेश में भाजपा को टक्कर दे सकती है साथ ही अपने वोट प्रतिशत में भी दो प्रतिशत की बढ़ोत्तरी करके जनता में अपना विश्वास बढ़ाने का संकेत दिया है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की स्थापना साल 1980 में हुई, लेकिन इसके मूल में श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा वर्ष 1951 में निर्मित भारतीय जनसंघ ही है। इसके संस्थापक अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी रहे, जबकि मुस्लिम चेहरे के रूप में सिकंदर बख्त महासचिव बने। वर्ष 1984 के चुनाव में भाजपा के खाते में मात्र दो सीटें थीं, लेकिन वर्तमान में सर्वाधिक राज्यों में भाजपा की खुद की या फिर उसके समर्थन से बनी हुई सरकारें हैं।साल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा कांग्रेस के बाद देश की एकमात्र ऐसी पार्टी बनी जिसने चुनाव भले ही गठबंधन साथियों के साथ लड़ा, लेकिन 282 सीटें हासिल कर अपने बूते बहुमत हासिल किया। वर्ष 2019 में बंपर 302 सीट जीतकर देश के आम लोगों की अपनी पार्टी बन गई। आज भाजपा देश की ही नहीं, पार्टी के लोगों का दावा है कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है जिसके देश विदेश में करोड़ों समर्थक हैं।
पर हाल की पंजाब की जीत ने दिल्ली और पंजाब से आम आदमी पार्टी को हरियाणा , हिमाचल और गुजरात में अपने आपको मजबूत बनाने की तरफ आगे बढ़ा दिया हैं और यकीन मनाइये यह कांग्रेस की बजाय भाजपा के लिए बड़ा राजनीतिक खतरा बनने की तरफ भी अग्रसर हैं और जिस तरह से निकाय चुनावों में गुजरात में आम आदमी पार्टी का प्रदर्शन रहा वो अब शायद वहा भाजपा की नीव को कमजोर ही करेगा शायद इसका अंदेशा प्रधानमंत्री मोदी को हैं और यही एकमात्र वजह हैं कि चार राज्यों में चुनाव की जीत के बाद गुजरात में रोड शो के जरिये पीएम ने इसको साधने की कोशिश की पर हिमाचल और हरियाणा में आप की बढ़ती गतिविधिया भाजपा के लिए बड़ा सरदर्द बनने वाली हैं ऐसे आसार दिख रहे हैं।
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