अंजलि यादव,
लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,
नई दिल्ली: केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने आज देश का आम बजट पेश किया. इसके बाद पीएम मोदी ने बजट को लोगों के अनुकूल और प्रगतिशील बताया है. बजट में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं किया गया है, जिससे मिडिल क्लास जरूर मायूस होगी. इसके अलावा क्रिप्टोकरंसी से होने वाली इनकम पर 30 फीसदी टैक्स लगा दिया गया है. सीतारमण ने कहा कि इस बजट से अगले 25 सालों की बुनियाद रखी जाएगी. इस बजट में 16 लाख नौकरियां देने का वादा किया गया है.
संसद में सोमवार को पेश किए गए आर्थिक सर्वे से स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था को रफ्तार देना चुनौती भरा काम है। साल 2022 के आर्थिक सर्वे में आर्थिक वृद्धि दर आठ से साढ़े आठ फीसद रहने का अनुमान लगाया है। बीते साल की गतिविधियों को देखते हुए सरकार भी समझ रही है कि आर्थिक वृद्धि दर आठ-साढ़े आठ फीसद पर भी बनी रहे तो यह बड़ी उपलब्धि होगी। यह भी तब होगा जब इस साल मानसून अच्छा रहे, कच्चे तेल के दाम सत्तर-पचहत्तर डालर से ऊपर न जाएं और सबसे बड़ी बात तो यह कि अब महामारी की कोई लहर न आए। पर अभी से मानसून की भविष्यवाणी कर पाना संभव नहीं है।
जहां तक कच्चे तेल के दाम का सवाल है तो यह अभी भी नब्बे डालर प्रति बैरल पर बना हुआ है। ऐसे में इसके जल्द नीचे आने के आसार दिखते नहीं हैं। और जहां तक बात है महामारी की लहर की, तो विशेषज्ञों की चेतावानियों को हमें भूलना नहीं चाहिए। देश में संक्रमण का जो आंकड़ा चल रहा है और विषाणु के नए-नए रूप जिस तरह से हमला कर रहे हैं, उसमें इस बात की गारंटी कौन दे सकता है कि अब कोई लहर नहीं आएगी। जाहिर है, अर्थव्यवस्था के लिए यह साल भी कम मुश्किलों भरा नहीं होगा।
सर्वे में पिछले साल की आर्थिक गतिविधियों के जो आंकड़े पेश किए गए हैं, वे बता रहे हैं कि 2020 के मुकाबले अब हालात कुछ सुधरे
हैं। प्रमुख क्षेत्रों में उत्पादन कुछ पटरी पर आने लगा है। लेकिन अभी हम उस स्थिति में नहीं पहुंच पाए हैं जो महामारी से पहले की थी। कृषि क्षेत्र अभी भी पूर्व-महामारी स्तर से आठ फीसद कम है, जबकि कृषि कर्ज में 10.4 फीसद की वृद्धि हुई है। सेवा क्षेत्र भी वृद्धि दर्ज नहीं कर पा रहा है। सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योग यानी एमएसएमई क्षेत्र संकट से उबर नहीं पा रहा है, जबकि इस क्षेत्र के कर्ज में 12.7 फीसद का इजाफा हुआ है।
कहने को कारखानों में उत्पादन बढ़ रहा है, पर बाजार में मांग अभी भी नहीं है। निजी खपत अभी भी महामारी-पूर्व की स्थिति में नहीं आ पाई है। यह इस बात का संकेत है कि लोग अभी भी आर्थिक संकट से निकल नहीं पाए हैं। बेरोजगारी की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। जाहिर है, लोगों के पास पैसे नहीं है। ऐसे में निजी खपत कैसे बढ़ेगी? अर्थव्यवस्था में बड़ा योगदान करने वाले होटल, पर्यटन जैसे कारोबार अभी भी बेदम पड़े हैं।
सर्वे से यह भी साफ हो गया कि सामाजिक क्षेत्र के विकास और कल्याणकारी योजनाओं पर खर्च करना सरकार की प्राथमिकता बना रहेगा। हालांकि स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी पिछले दो सालों में सरकार का खर्च बढ़ा है और ऐसा महामारी के कारण हुआ, वरना स्वास्थ्य क्षेत्र दशकों से उपेक्षा का शिकार था। पर शिक्षा क्षेत्र की न्यूनतम जरूरतें अभी भी पूरी नहीं हो पा रही हैं। एक मुद्दा विनिवेश का भी है।
पिछले साल बजट में पौने दो लाख करोड़ के विनिवेश का लक्ष्य रखा गया था। पर यह कहां हासिल हो पाया? एअर इंडिया की बिक्री को छोड़ दें तो विनिवेश के मोर्चे पर सरकार नाकाम ही रही है। पिछले एक साल में महंगाई ने जनता को रुला डाला है। सरकार भले दावा करती रहे कि आर्थिक संकेतक मजबूत हैं और उसके पास पूंजीगत खर्च बढ़ाने की वित्तीय क्षमता है। पर जब तक निजी खपत और मांग नहीं बढ़ेगी, महंगाई काबू नहीं होगी, अर्थव्यवस्था को गति दे पाना आसान नहीं होगा।
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