कर्नाटक विधानसभा चुनाव,

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कर्नाटक विधानसभा चुनाव,

Anjali 12-05-2023 14:12:37

अंजलि, 

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया

नई दिल्ली  - कर्नाटक में किसकी सरकार बनेगी इसका अंदाजा लगाना हर बार मुश्किल होता है. इस बार एग्जिट पोल के नतीजे दावा कर रहे हैं कि कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होगी. 

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर दक्षिण भारत की राजनीति की प्रस्तावना के तौर पर भी देखे जा रहे हैं.  लेकिन सरकार आखिर में किसकी बनेगी इस पर अभी कुछ भी कह पाना मुश्किल है. 

एबीपी न्यूज-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक कांग्रेस को इस चुनाल में 110 से 112 सीटें मिलती दिखाई दे रही हैं जबकि बीजेपी को 73 से 85 सीटें मिल सकती है. वहीं क्षेत्रीय पार्टी जेडीएस को 21 से 29 सीटें मिल सकती हैं. इंडिया टुडे-सी वोटर के सर्वे के मुताबिक भी बीजेपी को 74-86 सीटें मिल सकती हैं.

कोई भी अंदाजा लगाने से पहले अब नजर डाल लेते हैं पांच साल पहले 2018 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद आए सर्वे के नतीजों पर. टाइम्स नाऊ और वोटर्स मूड रिसर्च के ओपिनियन पोल में बीजेपी को बहुमत मिलते दिखाया गया था लेकिन पार्टी को कांग्रेस से थोड़ा ही ज्यादा सीटें आई थीं और बहुमत से पीछे रह गई.

इंडिया टुडे के सर्वे के मुताबिक बीजेपी और कांग्रेस दोनों को बहुमत न मिलने और त्रिशंकु विधानसभा का दावा किया गया था.

इसी चुनाव में एनडीटीवी ने के पोल ऑफ पोल्स में 9 एग्जिट पोल को शामिल किया गया जिसमें दावा किया गया कि बीजेपी को 97, कांग्रेस को 90 सीटें और जेडीएस को 31 सीटें मिल सकती हैं. इन्हीं 9 सर्वे में कुछ ने कांग्रेस को तो कुछ में बीजेपी को बहुमत का भी दावा किया गया था.

जब नतीजे आए तो 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में बीजेपी को 104 (36.2% वोट), कांग्रेस को 78 (38%) और जेडीएस को 37 सीटें (18.3% वोट) सीटें मिलीं. हालांकि ज्यादातर सर्वे में त्रिशंकु विधानसभा का ही अनुमान लगाया गया था. 

सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी बीजेपी ने सरकार बनाने की कोशिश शुरू कर दी. इस दौरान जमकर नाटक भी हुआ. मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके बीएस येदियुरप्पा ने सदन में बहुमत साबित करने से 10 मिनट पहले इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दे दिया और कुमारस्वामी कर्नाटक के सीएम बन गए. 

खास बात ये थी कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए ये एक तरह से मनोवैज्ञानिक झटका था क्योंकि एक तो सरकार नहीं बनी दूसरी ओर कुमारस्वामी का शपथग्रहण समारोह विपक्षी एकता का मंच बन गया. कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, सपा नेता अखिलेश यादव, बीएसपी सुप्रीमो मायावती, आरएलडी नेता चौधरी अजीत सिंह, आरजेडी नेता तेजस्वी यादव सहित तमाम नेता मंच पर मौजूद थे.

हालांकि लोकसभा चुनाव आते-आते विपक्ष की ये एकता बरकरार नहीं रह पाई. यूपीए के दायरे को बढ़ाने की कोशिश में लगी कांग्रेस को टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने झटका दे दिया और उन्होंने साफ तौर पर राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार करने से इनकार कर दिया. दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में सपा के साथ गठबंधन कर चुकी बीएसपी ने कांग्रेस को शामिल करने पर राजी नहीं हुई. 

बात करें कर्नाटक की लोकसभा सीटों की तो साल 2019 के चुनाव में कांग्रेस-जेडीएस को खामियाजा भी भुगतना पड़ा. राज्य की 28 लोकसभा सीटों में बीजेपी ने 25 और उसके समर्थन से एक निर्दलीय प्रत्याशी ने जीत दर्ज की थी. 

बीजेपी हारी तो क्या बदल सकता है?
कर्नाटक में इस बार तस्वीर बदली हुई है. साल 2018 के चुनाव में कांग्रेस को अपनी सत्ता बचानी थी तो इस बार बीजेपी के सामने वही चुनौती है. कर्नाटक का इतिहास रहा है कि 1985 से कोई भी पार्टी सत्ता में लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बना पाई है.

बीजेपी के सामने सिर्फ कर्नाटक ही जीतने की चुनौती नहीं है. राहुल गांधी की यात्रा के बाद कांग्रेस उनकी गंभीर नेता की छवि के तौर पर पेश कर रही है. दक्षिण भारत में इसके असर का दावा कांग्रेस कर रही है. दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में विपक्षी एकता का झंडा उठाए हैं और सभी नेताओं को एक मंच पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर बीजेपी कर्नाटक का चुनाव हारती है तो नीतीश की इस कवायद को मजबूती मिल सकती है. वहीं राहुल गांधी की यात्रा को सफलता से भी जोड़ा जाएगा. 

दूसरी ओर बीजेपी के पास दक्षिण भारत की 129 लोकसभा सीटों में अभी सिर्फ 29 सीटें हैं जिसमें 25 सीटें तो सिर्फ कर्नाटक से हैं. बीजेपी इस बार कोशिश कर रही है कि हिंदी राज्यों में अगर सीटें कम पड़ती हैं तो इसकी भरपाई दक्षिण से हो जाए. अगर कर्नाटक का गढ़ बीजेपी के हाथ से निकलता है तो बीजेपी के दक्षिण मिशन पर भी झटका लगेगा. गौरतलब है कि बीजेपी तेलंगाना में टीआरएस को हराने के लिए हर बार पुरजोर कोशिश करती रही है दूसरी ओर केरल में ईसाइयों को लुभाकर बड़ी ताकत बनने की कोशिश कर रही है.

कितना अहम है कांग्रेस के लिए ये चुनाव
कर्नाटक विधानसभा
का चुनाव कांग्रेस के लिए 'करो या मरो' वाला है. बीते कुछ सालों में हिमाचल छोड़ दें तो गुजरात, पंजाब, यूपी, उत्तराखंड सहित कई राज्यों में झटका ही लगा है. कर्नाटक एक ऐसा राज्य हैं जहां पर कांग्रेस से बीजेपी की सीधी टक्कर है. कई सीटों पर जेडीएस भी मजबूत है.

क्षेत्रीय दलों के नेता जैसे ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल हमेशा इस बात पर अंदेशा जताते हैं कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का मुकाबला करने के लिए कांग्रेस काफी नहीं है. अब अगर इस हालात में भी कांग्रेस सरकार नहीं बना पाती है तो इन नेताओं की बात सही साबित हो जाएगी. ऐसे में नतीजा ये होगा कि पीएम मोदी की अगुवाई में चुनाव दर चुनाव जीत रही बीजेपी का सामना करने के लिए कांग्रेस के पास शायद ही कोई क्षेत्रीय दल आए.

कर्नाटक विधानसभा चुनाव की अहमियत कांग्रेस के रणनीतिकार भी समझ रहे हैं इसीलिए इस राज्य में प्रचार और रैलियां करने के लिए राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी भी मैदान में उतरे थे. जबकि गुजरात-हिमाचल प्रदेश के चुनाव में ऐसा नहीं देखा गया था.

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से लेकर सीएम पद के दावेदार सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार जैसे नेताओं ने कांग्रेस के मिजाज से उलट इस बार आक्रामक चुनाव प्रचार किया. साथ ही पार्टी ने मुसलमानों को लुभाने के लिए बिना किसी झिझक घोषणपत्र में कई लोकलुभावन ऐलान भी किए हैं.  जिसमें आरक्षण की भी बात है. अगर कांग्रेस जीतती है तो इसे चुनावी हथियार के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

सामने हैं मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनाव
साल 2018 में कर्नाटक में सरकार न बना पाना बीजेपी के लिए एक तरह से 'दुर्भाग्य' साबित हुआ. पार्टी इसी साल मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव भी हार गई. लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए बड़ा झटका था. राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे केंद्र की राजनीति में बीजेपी के 'अंत का आरंभ' भी मान लिया. लेकिन राजनीति की खूबी है कि 24 घंटों के अंदर यहां समीकरण बदल जाते हैं.

लोकसभा चुनाव में इन्हीं राज्यों में बीजेपी ने कांग्रेस का सफाया कर दिया और साथ ही मध्य प्रदेश और कर्नाटक में भी कांग्रेस के विधायक टूट गए और बीजेपी की सरकार बन गई. 

क्या कहते हैं इस बार एग्जिट पोल
कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज और सी वोटर के एग्जिट पोल में संभावना जताई गई है कि कांग्रेस को 100 से 112 सीटें मिल सकती हैं.बीजेपी को 83 से 95 और जनता दल (सेक्युलर) यानी जेडीएस को 21 से 29 सीटें हासिल हो सकती हैं. 

जी न्यूज और मैट्रिज एग्जिट पोल में कांग्रेस को 41 प्रतिशत मतों के साथ 103 से 118 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया है. इसके मुताबिक, बीजेपी को 36 प्रतिशत मतों के साथ 79 से 94 सीटें मिलने का अनुमान है. जनता दल (सेक्युलर) को 17 प्रतिशत मतों के साथ 25 से 33 सीटें मिल सकती हैं.

टीवी 9 और पोलस्ट्रेट की ओर से किए गए चुनाव बाद सर्वेक्षण में कहा गया है कि कांग्रेस को 99 से 109 सीटें मिल सकती हैं जबकि बीजेपी को 88 से 98 सीटें मिलने का अनुमान  है. इस एग्जिट पोल में यह अनुमान भी लगाया गया है कि जेडीएस को 21 से 26 सीटें मिल सकती हैं.

इंडिया टुडे-एक्सिस माई इंडिया' ने कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत के साथ 122-140 के बीच सीट मिलने का अनुमान जताया है वहीं बीजेपी को 62-80 के बीच सीटें दी हैं.

न्यूज 24-टुडेज चाणक्य' ने भी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत के साथ 120 सीटें मिलने की संभावना जताई है, इसने बीजेपी को 92 सीटें मिलने की बात कही है. बता दें कि 224 सीटों वाली कर्नाटक विधानसभा में बहुमत के लिए 113 सीटें चाहिए. 

कांग्रेस ने इस पर कहा, 'जैसे-जैसे पोल के नतीजे आ रहे हैं यह और स्पष्ट हो रहा है कि कांग्रेस पार्टी धमाकेदार जीत की राह पर है.'

वहीं सीएम बसवराज बोम्मई ने एग्जिट पोल को खारिज कर दिया है. उन्होंने कहा कि मतदान का उच्च प्रतिशत हमेशा बीजेपी के पक्ष में रहा है न कि कांग्रेस के जैसा कि कुछ प्रतिद्वंद्वी नेता दावा करते रहे हैं. शिग्गांव से चुनाव मैदान में उतरे बोम्मई ने कहा, 'एग्जिट पोल तो एग्जिट पोल हैं. वे शत प्रतिशत सही नहीं हो सकते. ऐसा अंतर होगा जो पूरे परिदृश्य को बदल सकती है.'

कौन-कौन हैं सीएम पद के दावेदार
बीजेपी ने निर्वतमान सीएम बसवराज बोम्मई के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा है.  बोम्मई लिंगायत समुदाय से आते हैं जो कर्नाटक में हार-जीत में बड़ी भूमिका निभाते हैं. 

वहीं कांग्रेस ने किसी भी गुटबाजी से बचने के लिए बिना सीएम पद के चेहरे पर ही चुनाव लड़ा है. हालांकि पूर्व सीएम सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार खुद को सीएम पद का दावेदार मानते हैं और दोनों के बीच अदावत भी छिपी नहीं है. कुछ लोग कांग्रेस के मौजूदा राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को भी सीएम पद के दावेदार के तौर पर देख रहे हैं. हालांकि इसकी संभावना कम ही है.


 

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