कुछ दिनों पहले दिल्ली सरकार की महिलाओं के लिए फ्री मेट्रो और बस सेवा की घोषणा क्या हुई सभी का नारीवाद और समानता का सिद्धांत एक दम से जाग गया। इससे पहले शायद यह कहीं सोया हुआ था या फिर शायद ये मुद्दे गंभीर न हो इसका एक कारण भारतीय पितृसत्तामक समाज की मानसिकता ले या लोगो का इसके खिलाफ बोलने का डर. समझने वाली बात यह है कि क्या लोग यह सच में जानते भी है कि लैंगिक समानता आखिर होती क्या है?
ये जानने से पहले इस बात पर गौर कर लें कि प्रकृति ने सभी को समान नहीं बनाया फिर चाहे वो शक्ल सूरत में हो या रंग रूप में, सभी शारीरिक और मानसिक तौर पर एक दूसरे से अलग है पर फिर भी कई दशकों से इनकी सामाजिक समानता की बात की जा रही है और यह भारत में कई मायनों में सफल भी हुआ है पर ऐसी बहुत से विषय है जो आज भी इन्साफ की मांग कर रहे है फिर क्यों लोगो को दिल्ली सरकार का सिर्फ यही फैसला सामाजिक असमानता लगा?
ऐसे कई महत्वपूर्ण मुद्दे है जिनपर आवाज़ उठायी जानी चाहिए पर दिल्ली सरकार को घेरे में लाकर राजनीति करने से किसी को फुर्सत हो तब कोई इसपर सवाल उठाये।
1 सवाल नंबर एक लैंगिक समानता की बात महिलाओं को उस वक़्त याद क्यों नहीं आती जब उन्हें मेट्रो या बस में सीट चाहिए होती है?
2 दूसरा
सवाल पुरुष समाज के लिए कि परायी महिला पर नज़र रख अपने ही घर की बहु बेटी को चारदीवारी में कैद करके रखना क्या लैंगिक समानता के अंतर्गत आता है?
3 संसद में महिला आरक्षण 50% तो दूर 33% पर ही अटका है क्या तब महिलाओं को समानता की याद नहीं आई?
4 बॉलीवुड से लेकर हर कार्यक्षेत्र में वेतन का बंटवारा यदि देखा जाए तो महिलाओं की तुलना में पुरूषों की प्राथमिकता ज्यादा है तब क्यों नहीं आपका समानता का सिद्धांत जागा?
जब वेतन ही समान नहीं तो समान खर्चें की बात करना उचित नहीं लगता। और सबसे जरुरी बात की बहुत से ऐसे राष्ट्र है जो सार्वजनिक यातायात को फ्री करने की योजना बना रहे है और इस लिस्ट में सबसे पहला नाम लक्जमबर्ग का है जो की 2020 तक सभी के लिए फ्री ट्रांसपोर्ट उपलप्ध कराने जा रहा है.
कई महिलाओं और लड़कियों ने इस फैसले का विरोध किया कि उन्हें दिल्ली में फ्री सेवा नहीं बल्कि सुरक्षा और प्रदुषण रहित दिल्ली चाहिए। सरकार के इस फैसले को आगामी चुनाव के एक प्ले कार्ड के रूप में देखा जा रहा है जिससे वो महिलाओं के वोट बैंक को अपनी झोली में बटोर सकें, पर सकारात्मक दृष्टिकोण से देखें तो यह महिला सशक्तिकरण का एक अच्छा प्रयास है. यह सेवा हाई क्लास सोसाइटी की महिलाओं के लिए नहीं है बल्कि निम्न मध्यम वर्गीय महिलाओं के लिए है जिससे उनपर बोझ काम हो सके.
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