मैं तुम्हें हराऊंगा पर तुम मुझे जिताते रहना - यूँ ही

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मैं तुम्हें हराऊंगा पर तुम मुझे जिताते रहना - यूँ ही

30-04-2019 21:38:06

                                                               मैं तुम्हें हराऊंगा पर तुम मुझे जिताते रहना - यूँ ही!  -आशीष मान

भारतीय राजनीति के सन्दर्भ में ये बात कुछ ठीक सी लगने लगी है। यहाँ का लोक तंत्र सही मायने में "प्रजा तंत्र" ही है। एक तरफ प्रजा और एक तरफ कुछेक राजा। राजा सिर्फ राज करने के लिए और प्रजा राजा के मनोरंजन और पोषण के लिए। सात दशकों में प्रजा ने राजा को इतना सशक्त कर दिया की अब तो वो नियम, नीति, विधि और विधान से काफी ऊपर पहुँच गया है और ये सभी नियम कानून प्रजा के लिए छोड़ दिया जिससे कि किताबों में लिखी लोकतंत्र की परिभाषा जीवित रहे - किसके लिए?...राजाओं की सल्तनत बरक़रार रखने के लिए। किसी की बेशर्मी और किसी की नादानी - ये राजा बड़ी बड़ी बातों में प्रजा को उलझाकर उनका निरंतर दोहन कर रहे हैं और प्रजा जो स्वयं को शिक्षित करती है और अनवरत परिश्रम के पश्तात भी इनके सम्मोहन में फंसी हुई है। ना जाने क्या सम्मोहन है इन राजाओं के चीखते चिल्लाते, शोर मचाते, वादों से भरे भाषणों में जो हर पल काम कर रहे हैं, और प्रजा है की असहाय सी इन शोर मचाते शब्दों के पुलिंदों में
फंसी अपनी असहायता को अपना मुस्तक़बिल समझे जी रही है। बड़े बड़े ओहदों पर बैठे लोग भी अपनी सारी समझदारी और ज्ञान को ताख पर रखके यह कहते हुए वर्ष दर वर्ष वही गलती कर रहे हैं जो बेचारा एक उतना शिक्षित न हुआ व्यक्ति। राजा प्रत्येक 5 वर्ष पश्चात् आता है और उतनी ही निर्लज्जता और आत्मविश्वास से वादों का बेसुरा राग छेड़ प्रजा को सम्मोहित कर ये कहता है, कि देख तुझे इस प्रजातंत्र को जीवित रखने क़ेलिए मुझे जितना होगा ही, तुझे जीतने का अवसर एक दिन अवश्य आएगा, इसी उम्मीद में एक बार और हारने में क्या हर्ज़ है? मोशी मिशन इन सम्मोहित करनेवाले भाषणों की असली बेसुरी धुन को सुन सकता है और सुना भी सकता है। अब राजाओं की सल्तनत समाप्त, प्रजा तंत्र को लोक तंत्र में परिवर्तित होना ही होगा। समाज काफी सशक्त है और हमारे पास कई नेता छोटे छोटे गाओं में, कस्बों में और शहरों में तत्पर हैं वो सब कुछ कर दिखाने को जो इस देश की आज ज़रुरत है। मोशी वो मंच देता है जिसपर से जनता अपना राग छेड़ेगी - कि हम स्वयं सक्षम हैं, हम तत्पर हैं...एक प्रयोग को, सामाजिक चेतना क़े योग को। स्वयं हार कर जिताया तुम्हे यदि तुम सही में कुछ करना चाहते हो तो एक बार जिताओ हमें। असल पहचान होगी तुम्हारी यदि हे राजा तुम आने दो हमारी भी बारी। टूट रही है हमारी खामोशी..."खा" ख़त्म अब प्रारब्ध है "मोशी"।

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