ओडिशा की धार्मिक नगरी पुरी में विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन 04 जुलाई दिन गुरुवार को हो रहा है। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार, रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है। यह रथ यात्रा 9 दिनों तक चलेगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ जगन्नाथ मंदिर से निकलकर गुंडीचा मंदिर जाएंगे। वहां सात दिनों तक विश्राम के बाद वे वापस अपने धाम जगन्नाथ पुरी में लौट आएंगे। यह मंदिर हिन्दुओं के चार धामों में से एक है। 9 दिनों तक चलने वाली इस यात्रा में तीन विशाल रथ होते हैं, जिसे भगवान के भक्त खींचते हैं। इस रथ यात्रा से जुड़ी कई रोचक बातें हैं, जिसे आपको जानना चाहिए।
आइए जानते हैं रथ यात्रा से जुड़े रोचक तथ्यों के बारे में—
2. इस रथ यात्रा के संदर्भ में कहा जाता है कि पुरी के लोग भगवान जगन्नाथ को अपना राजा और स्वयं को प्रजा मानते हैं। इस कारण से भगवान जगन्नाथ रथ पर सवार होकर वर्ष में एक बार अपनी प्रजा का हाल जानने के लिए अपने धाम से निकलते हैं। उनके सुख-दुख जानते हैं।
3. इस रथ यात्रा के लिए तीन विशेष रथ बनाए जाते हैं, जिस पर सबसे पहले बलराम, दूसरे पर सुभद्रा और तीसरे पर भगवान जगन्नाथ सवार होते हैं। रंग और ऊंचाई से इन रथों की पहचान होती है।
4. भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है, जिसमें 18 पहिए लगे होते हैं। इसे 'गरुड़ध्वज' भी कहा जाता है। इस रथ पर लगे ध्वज
को त्रिलोक्यमोहिनी कहा जाता है। यह रथ 45.6 फीट ऊंचा होता है, जो लाल और पीले रंग के कपड़े से ढंका होता है। भगवान जगन्नाथ के सारथी का नाम मातली है।
5. भगवान जगन्नाथ के भाई बलराम के रथ का नाम तालध्वज है, जो 45 फीट ऊंचा होता है, जिसमें 14 पहिए होते हैं। यह लाल और हरे कपड़े से ढंका रहता है। बलराम के सारथी का नाम सान्यकी है।
6. भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा के रथ का नाम दर्पदलन है, जो 44.6 फीट ऊंचा होता है और उसमें 12 पहिए होते हैं। यह लाल और काले रंग के कपड़े से ढंका रहता है। देवी सुभद्रा के सारथी का नाम अर्जुन है।
7. ये तीनों रथ नीम की लकड़ियों से बनाए जाते हैं, इनको दारु कहा जाता है। रथ के निर्माण में कील या किसी धातु का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। नीम की लकड़ी का चयन बसंत पंचमी से शुरू होती है और अक्षय तृतीया से रथ निर्माण शुरू होता है।
8. रथ यात्रा के दिन तीनों मूर्तियों को श्रीमंदिर से बाहर लाने वाली प्रक्रिया पहंडी बिजे कहलाती है। इसके बाद विधि विधान से तीनों रथों पर सवार होते हैं। भक्त इन रथों को मोटे-मोटे रस्सों से खींचते हैं।
9. श्री मंदिर से शुरू हुई रथ यात्रा गुंडीचा मंदिर पहुंचती है, यह भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर है। भगवान यहां पर 7 दिन विश्राम करते हैं। वहां इन तीनों का खूब आदर-सत्कार होता है। उनको कई प्रकार के स्वादिष्ट पकवान का भोग लगाया जाता है। फिर वे भाई-बहन के साथ अपने धाम श्रीमंदिर लौटते हैं। इस वापसी यात्रा को बाहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
10. यह रथ यात्रा श्रीमंदिर से प्रारंभ होकर गुंडीचा मंदिर तक जाती है, इसलिए इसे गुंडीचा महोत्सव भी कहा जाता है।
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