आईवीएफ टेक्नीक का पूरा नाम इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन है , यह एक सहायक प्रजनन टेक्नीक है | इस टेक्नीक से बच्चा पैदा करने से असमर्थ महिलाओं को गैर कुदरती तरीके से गर्भवती करवाया जाता है |
पति और पत्नी में से किसी में भी कोई विकार हो सकता है , जिस वजह से बच्चा पैदा करने में मुश्किल आ सकती है | बाँझपन का रोग महिलाओं और पुरष दोनों में हो सकता है |
आईवीएफ टेक्नीक से उपचार का तरीका –
आईवीएफ टेक्नीक से बाँझपन से पीड़ित महिलाये भी बच्चा पैदा कर सकती हैं | जिन महिलाओं ने अपनी फ़ेलोपियन नालियां निकलवा दी है या फिर किसी अन्य विकार की वजह से उनकी फ़ेलोपियन नलिका अंडा पैदा करने के योग्य नहीं हैं| उन महिलाओं को गैर कुदरती तरीके से गर्भधारण करवाया जाता है | महिला के अंडे को प्रयोगशाला की डिश में गैर कुदरती तरीके से पुरष शक्राणुओं से संजोयजन करवाया जाता है | इस पर्किर्या से जब भ्रूण तैयार हो जाता है तो उसे महिला की बच्चेदानी में रख दिया जाता है | इस तरह महिला गर्भवती हो कर बच्चे को जन्म दे सकती है |
आईवीएफ टेक्नीक के चार महत्वपूर्ण कदम होते है, जिनके हिसाब से महिलाओं का उपचार किया जाता है
पहला कदम – सबसे पहले मरीज के खून के सैम्पल्स लिए जाते हैं , जिनसे यह देखा जाता है की मरीज के शरीर में हार्मोन्स किस स्तर पर हैं और अगर हार्मोन्स का स्तर ऊपर नीचे हो तो उन्हें दवाओं की मदद से काबू में किया जाता है | उसके बाद मरीज को प्रजनन की दवायां और हार्मोन्स दिए जाते हैं जिससे उसके अंडकोष में नए अंडे बनने शुरू हो जाते हैं | वहां से अण्डों को निकाल कर परखनली में स्टोर किया जाता है | अण्डों की
गिनती एक से जायदा रखी जाती है | इस पर्किर्या में पहले मरीज को कुछ दवायां दी जायेगीं , जिन्हे अपने कुछ निश्चित दिनों तक ही खाना है , उसके बाद मरीज की दवायां बंद करके मरीज को इंजेक्शन लगने शुरू किये जायेगे , जिनका काम है महिला के अंडकोष में काफी सारे अंडे पकाना , क्यूंकि कुछ अंडे दुबारा बच्चेदानी में रखने पर अच्छी तरह से विकसित नहीं हो पाते |
दूसरा कदम – जब अंडे पक कर तैयार हो जायेगे तो इनको अल्ट्रासॉउन्ड की मदद से बाहर निकाला जायेगा , इसमें १० से १५ मिनट लगेंगे और महिला को बेहोश किया जायेगा. अंडे निकलने के बाद महिला के पति से या फिर यहाँ से भी अच्छी गुणवत्ताका वीर्य मिले , उसे लेकर रखा जायेगा |
तीसरा कदम – इन अण्डों और वीर्य से भ्रूण तैयार किया जाएगा | प्रयोगशाला में चिकत्सक इन अण्डों से बने भ्रूण को अपनी देख रेख में बड़ा करेगें और उसका ध्यान रखा जायेगा कि इसमें कोई विकार ना हो | इन अंडे और वीर्य से जो भ्रूण बनाया जायेगा उन्हें प्रयोगशाला में तीन से पांच दिन तक रखा जायेगा |
चौथा कदम – प्रयोगशाला में चिकत्सक जो भ्रूण तैयार करेंगे उसे महिला की बच्चेदानी में रखा जायेगा | इसके बाद महिला को तीन महीने तक दवायां खानी पड़ेगी जो कि बच्चे को टिका कर रखने और उसकी सेहत के लिए जरूरी हैं |
उसके बाद खून की जाँच से पता किया जायेगा की बच्चा टिक गया है या नहीं | अगर बच्चा टिक गया है और सारी रिपोर्ट्स अच्छी है तो मरीज को अब चिकत्सक के पास जाने की जरूरत नहीं है | मरीज की दवायां चालू रहेगी और वह निश्चित समय पर माँ बन सकेगी |
यह एक बेहद सुरक्षित और भरोसेमंद टेक्नीक है |
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