चमन शर्मा/आनी
ऐसा ही एक उदाहरण हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के तहत पड़ने वाली सरयोल सर झील का भी है । जो कई रहस्यों को संजोए है । जलोड़ी जोत से लगभग पांच किमी की दूरी पर स्थित इस झील के कई रहस्य है । जहां एक ओर इस झील के पानी की सुंदरता देखते ही बनती है वहीं कहा जाता है कि इस रहस्मय झील के पानी मे कई औषधीय तत्व विद्यमान है । झील का पानी काफ़ी गहरा है और अगर किसी व्यक्ति ने झील के पानी में उतरने की कोशिश की है तो वह काल का ग्रास बन जाता है । कुछ वर्षों पूर्व इस तरह की एक घटना भी सामने आ चुकी है ।इसलिए नहाने या मौज मस्ती के उद्देश्य से इस झील के पानी मे प्रवेश करना वर्जित है । ऐसी घटना फ़िर न हो इसके लिए प्रशासन और स्थानीय लोगों ने झील के चारों और ग्रिलिंग और कई सूचना बोर्ड में लगाये हैं । एक मान्यता अनुसार इस झील की पूरी साफ़-सफ़ाई का ज़िम्मा एक नन्ही सी चिड़िया के हवाले है । आबी नामक यह चिड़िया झील के आसपास ही रहती है । इस झील में जैसे ही कोई पेड़ का पत्ता तक भी अगर गिरता है तो झट से चिड़िया इसे हटाकर झील से बाहर कर देती है । यह इस झील की सफाई एक चिड़िया करती है।
झील को बूढ़ी नागिन के नाम से भी जाना जाता है। यह झील समुद्रतल से लगभग 3199 मीटर (10,500फ़ीट) की ऊंचाई पर स्थित है। यहाँ सर्दियों में बहुत बर्फ पड़ती है। उस समय झील बर्फ़ से जमी हुई होती है । पर्यटकों के लिए ये काफ़ी मनमोहक नज़ारा होता है और हज़ारों पर्यटकों समेत स्थानीय लोग यहां का रुख करते हैं ।इस जगह की यात्रा चैत्र-नवरात्रों से नवंबर के बीच की जाती है । इस झील में एक बूढ़ी नागिन का आराम स्थान भी है। कहा जाता है कि यह नागिन मक्खन व घी खाकर जिंदा है। मान्यता के अनुसार झील के अंदर एक महल बना हुआ हैं, जो इस बूढ़ी नागिन का है। यहाँ
नागिन के अलावा अन्य कोई नहीं जा सकता है, क्योकि अगर कोई उस झील में नहाने उतरता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है । इस झील के चारों तरफ घी की धार निकलने की बात कही गई है । इसलिए इस झील को चारों तरफ से देसी घी की धार अर्पण भी करने की पंरपरा है । यहाँ के निवासी अपनी गाय के घी को बूढी नागिन को दिए बिना इसका सेवन नहीं करते है। इस झील में जो पानी है वह समय और पहर के अनुसार अपने रंग में बदलाव करता है । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार इस झील का पानी कभी नीला, कभी हरा, तो कभी काले रंग का दिखाई देता है । सामान्य रूप से पारदर्शी रंग में चमकता रहता है। हर साल बर्फबारी के दिनों में इस मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं जिन्हें बैसाख संक्रांति के दिन खोला जाता है।
यहाँ की अद्वितीय और मनमोहक सुंदरता का आनन्द उठाने के लिए हर वर्ष हज़ारों पर्यटक पहुँचते है । खूबसूरत घने जंगलों और प्राकृतिक सौंदर्य के बीच में स्तिथ यह स्थल पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक केंद्र है । वहीं इसके साथ ही जलोड़ी जोत से तीन किमी दूर रघुपुर गढ़ है । जो अपने पुरातन किलो के लिए प्रसिद्ध है । हालांकि अब ये खंडहरों के रूप में है । इसकी उत्पति के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है । माना जाता है कि पांडवों ने भी इस स्थल का भृमण किया था । यहाँ कई ऐसी विरासतें मौजूद हैं जो हमें प्राचीनकाल की घटनाओं से जोड़ती है । रघुपुर गढ़ के निचले छोर पर एक धरती है । मान्यता अनुसार यहाँ भीम का पाँव पड़ा था तो तब से यह धरती का एक बड़ा टुकटा अगर यहाँ पैर रखा जाए तो पूरी धरती हिलती है ।यहां के कुछ पत्थरों पर प्राचीन प्राचीन लिपि में कुछ लिखा हुआ भी मिलता है । यहाँ चरवाहे अपने पशुओं के साथ देखे जा सकते हैं ।सुंदर घने जंगलों और पहाड़ियों के बीच में बसा यह स्थल भी पर्यटकों के मन को सुहावना बना देता है ।
Copyright @ 2019 All Right Reserved | Powred by eMag Technologies Pvt. Ltd.
Comments