शिव उपासना का महीना है श्रावण

भारत में वर्कप्लेस की बढ़ रही डिमांड 46 साल की तनीषा मुखर्जी मां बनने को तरस रहीं PAK और 4 खाड़ी देशों में भारी बारिश सिंघम अगेन के सेट से सामने आईं दीपिका पादुकोण की तस्वीरें प्रेग्नेंसी में भी काम कर रही हैं दुबई की बारिश में बुरे फंसे राहुल वैद्य PM मोदी ने विपक्ष पर साधा निशाना ड्रेसिंग गेम ऑफ थ्रोन्स: फैशन बन गया था इस शो के बारे में बात करना गर्मियों में अपनी डाइट में शामिल करें दही Jio Postpaid Plans-399 का रिचार्ज करने पर मिलेगी 3 सिम फ्री Vivo T3x 5G हुआ लॉन्च जानिए सब डिटेल्स Lok Sabha Election 2024: कांग्रेस को लगा एक और झटका बेटे की वर्जिनिटी पर मलाइका अरोड़ा ने किया सवाल प्रभु श्रीराम का हुआ सूर्यतिलक,सूर्य की किरणें रामलला के मस्तक पर पड़ीं जाह्नवी कपूर की नई फिल्म 'उलझ' का टीजर आउट,5 जुलाई 2024 को सिनेमाघरों में आएगी फिल्म Good news-तमिलनाडु में 5.9 मिलियन 5G कस्टमर्स का आंकड़ा हुआ पार Lok Sabha Election 2024: राहुल गांधी अमेठी से लड़ेंगे चुनाव गर्मियों में अपने बढ़ते वजन पर लगाए फुल स्टॉप दिल्ली के नंद नगरी में दिनदहाड़े फायरिंग,ASI का मर्डर आज का राशिफल iPhone 15 से भी दमदार होगा iPhone 16 का कैमरा-आइये जानते है और क्या-क्या होंगे नए फीचर्स

शिव उपासना का महीना है श्रावण

Khushboo Diwakar 17-07-2019 12:54:44

  • आदि गुरु, आदि योगी और प्रथम अघोरी शिव जीवन जीने के सूत्र देते हैं, 

  • सावन में शिव के स्वरुप से सीख सकते हैं कई बातें, 

  • क्या होता है अघोरी का सही अर्थ, कैसे करें सावन में शिव की उपासना 

    श्रावण...सावन मास शुरू हो रहा है। श्रावण का अर्थ है श्रवण करने का समय। चातुर्मास, जिसमें हरि कथा का श्रवण किया जाता है। लेकिन, चातुर्मास का पहला महीना “हर” यानी शिव की उपासना का महीना है। सावन शिव को प्रिय है क्योंकि ये शीतलता प्रदान करता है। हर वो चीज जो शीतलता दे, वो शिव को प्रिय है। भागवत महापुराण में कथा है समुद्र मंथन की। देवता और दानवों ने मिलकर जब समुद्र को मथा तो सबसे पहले हलाहल विष निकला। विष इतना विनाशक था कि सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। भगवान विष्णु ने देवताओं को सलाह दी, जाकर भोलेनाथ को मनाएं, वो ही इस विष को पी सकते हैं। शिव ने विष पिया। गले में अटकाकर रख लिया। पूरा कंठ नीला पड़ गया और तब शिव का एक नाम पड़ा नीलकंठ। 

    हलाहल से उत्पन्न हो रही अग्नि इतनी तेज थी कि शिव का शरीर पर इसका असर होने लगा। भगवान को ठंडक मिले इसके लिए उन पर जल चढ़ाया गया। शिव प्रसन्न हो गए। तब से शिव पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई। सावन इस कारण शिव को प्रिय है क्योंकि इस पूरे मास में हल्की फुहारें आसमान से बरसती हैं। ये कथा आज की युवा पीढ़ी को मात्र मायथोलाजी लग सकती है। लेकिन, इसमें संदेश है। संसार में जब भी कुसंस्कारों-अत्याचार और व्याभिचार का विष आता है, वो ही इंसान इसे रोक सकता है, जो गृहस्थ होकर भी संन्यासियों जैसा रहता है, सृष्टि का स्वामी होकर भी पहाड़ की गुफाओं में रहने से संतुष्ट होता है, जो अघोर है यानी ऐसा चरित्र जिसके लिए कोई भी बुरा नहीं है, सभी समान हैं। शिव अघोरवाद के प्रवर्तक हैं। श्रावण शिव के प्रति आस्था और इस बात के लिए धन्यवाद का प्रतीक है कि संसार को बचाने के लिए उन्होंने अपने गले में विष धारण किया है। 

    शिव ही हैं सृष्टि के पहले गुरु
    ये महज संयोग नहीं है कि सावन मास शुरू होने के एक दिन पहले गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। वास्तव में शिव ही आदि गुरु हैं। ब्रह्मा अगर सृष्टि के पिता हैं, तो शिव प्रथम गुरु। शांति, संतुष्टि, समानता और सहयोग का जो पाठ शिव ने संसार को पढ़ाया वो किसी अन्य देवता ने नहीं। देवता हों या दानव, सबको समान भाव से स्नेह दिया। देवताओं के गुरु बृहस्पति और दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य. ये दोनों ही दो संस्कृतियों के जनक हैं लेकिन इनके गुरु एक हैं, शिव। देवताओं ने समुद्र मंथन में दैत्यों से मदद ली। दोनों ने अमृत निकाला। भगवान विष्णु ने मोहिनी रुप बनाकर देवताओं को अमृत पिला दिया। दैत्य उनके छल को समझ नहीं पाए। 
    वे शिव की शरण में गए। शिव ने कहा जब तय हुआ था अमृत दोनों का होगा तो देवताओं को छल नहीं करना था। उन्होंने तत्काल दैत्यों के गुरु शुक्राचार्य को मृत-संजीवनी विद्या दे दी। ऐसी चिकित्सा पद्धति जिससे मरे को भी तुरंत जिंदा किया जा सके। शिव ने शरण में आए दैत्यों से भी भेद नहीं किया। कैलाश की बर्फीली पहाड़ी को घर बनाया, पशुओं की खाल को वस्त्र, भस्म को श्रंगार
    इस सब में भी सबसे ज्यादा संतुष्ट और प्रसन्न। ये हैं शिव के स्वरुप और कहानियों से जीवन में उतारी जाने वाली बातें। जो मिले, जैसा मिले उसी में संतुष्ट रहना सीख जाएं तो हम महानता के पथ पर बहुत आगे निकल सकते हैं। 
    शिव का श्रंगार
    सभी देवताओं में शिव का श्रंगार सबसे अलग है। वाघंबर यानी शेर की खाल के वस्त्र, भस्म का लेप, रुद्राक्ष की माला, गले में सर्प, हाथ में त्रिभूल, उस पर बंधा डमरू और नंदी की सवारी। 
    शेर की खाल - इसलिए कि समस्त जीवों में कुछ ही ऐसे हैं जिनमें कुंडलिनी का जागरण स्थायी होता है, शेर और कुत्ता ये दो प्रमुख जीव हैं जिनके शरीर के चक्र सदैव जागृत रहते हैं। ये ध्यान और साधना में सहायक हैं। इसलिए, तांत्रिकों और अघोरियों के साथ अक्सर कुत्ता देखने को मिलता है। 
    भस्म का लेप - शिव पहले संन्यासी हैं, पहले नागा साधु, नागाओं के इष्ट, शमशान के वासी। सो, शरीर पर भस्म का लेप करते हैं। भस्म शरीर के रोमछिद्रों को बंदकर देती है, ऐसे में सर्दी और गरमी दोनों ही मौसमों में शरीर पर कोई असर नहीं होता। 
    गले में सर्प - सर्प को वास्तु शास्त्र और तंत्र में वायु का प्रतीक माना गया है। सर्प यानी वायु। मेडिटेशन से समाधि तक की स्थिति के लिए श्वास पर नियंत्रण आवश्यक है। श्वास वायु से चलती है। पातंजलि योगसूत्र कहता है ध्यान में जाने के लिए श्वास पर नियंत्रण आवश्यक है। शिव को ही आदि योगी माना जाता है। 
    हाथ में त्रिशूल - त्रिशूल तीन गुणों का प्रतीक है, सत, रज और तम। सतगुण यानी सात्विक गुण जो संन्यासियों और वैरागियों का गुण होता है। रजगुण मतबल सांसारिक गुण ये मूलतः गृहस्थों का गुण है। और, तमोगुण यानी राक्षसों के गुण। शिव के हाथों में तीनों गुणों का नियंत्रण है। मतलब संन्यासियों, गृहस्थों और राक्षसों तीनों द्वारा समान रुप से पूजे जाने वाले एकमात्र भगवान शिव हैं। 
    डमरू - डमरू नाद का प्रतीक है। इसका स्वर वातावरण से नकारात्मकता को दूर करता है। डमरू के नाद में ऊँ का स्वर छिपा होता है। ऊंकार स्वर के कारण ये शिव का वाद्य है। 
    रुद्राक्ष - शिव की आंखों से गिरे आंसुओं से जिन फलों की उत्पत्ति हुई, वो रुद्राक्ष थे। रुद्राक्ष की खासियत ये है कि वो लकड़ी का होते हुए भी पानी में डूब जाता है। सारी लकड़ियां पानी में तैरती हैं, उसके साथ बहती हैं लेकिन रुद्राक्ष अलग होता है, वो पानी में तैरता नहीं है। तले में बैठ जाता है। ये शिव के उपासकों का गुण होना चाहिए, संसार के साथ ना बहें, अपने अस्तित्व के साथ रहें। संसार में रहकर भी उससे अलग रहने का गुण रुद्राक्ष सिखाता है। 
    सावन में ऐसे हो पूजा
    सावन में शिव की पूजा करने के कई विधान हैं। सोलह सोमवार से लेकर पूरे मास उपवास तक। लोग तरह-तरह से शिव की आराधना करते हैं। अगर आपके पास ये सब नियम, व्रत, उपवास का समय ना भी हो तो शिव महापुराण कहता है कि अपनी दिनचर्या में दो-तीन चीजें शामिल कर लें। पूरे सावन के महीने में उसका पालन करें।  
    ब्रह्ममुहूर्त में जागें। थोड़ा योग करें। फिर स्नान करें। 
    स्नान के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। 
    किसी शिवालय में शिवलिंग पर जल चढ़ाएं। 
    संभव हो तो थोड़े बिल्व पत्र और फूल भी। 
    कम से कम 10 मिनट शिवालय में बैठकर ऊँ नमः शिवाय का जाप करें। 
    ये पांच काम आपके सावन की पूजा को सफल बना सकते हैं।  

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :