क्या आप जानते है गुरुनानक जयंती के बारे में ?

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क्या आप जानते है गुरुनानक जयंती के बारे में ?

Abhishek sinha 12-11-2019 12:17:42

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक जी के जन्म दिवस के दिन गुरु पर्व  मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती के दिन सिख समुदाय के लोग 'वाहे गुरु, वाहे गुरु' जपते हुए सुबह-सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं. गुरुद्वारे में शबद-कीर्तन करते हैं, रुमाला चढ़ाते हैं, शाम के वक्त लोगों को लंगर खिलाते हैं। गुरु पर्व के दिन सिख धर्म के लोग अपनी श्रृद्धा के अनुसार सेवा करते हैं और गुरु नानक जी के उपदेशों यानी गुरुवाणी का पाठ करते हैं।  आपको बता दें कि गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन देवों की दीवाली यानी देव दीपावली भी होती है। 

गुरु नानक जयंती कब है?

हिन्‍दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास की पूर्णिमा को गुरु नानक जयंती मनाई जाती है। ग्रेगोरियन कैलेंडर के मुताबिक गुरु पर्व हर साल नवंबर महीने में आता है। इस बार गुरु नानक जयंती 12 नवंबर 2019 को है। हर साल कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु पर्व मनाया जाता है। 

गुरु नानक जयंती क्यों मनाई जाती है?

गुरु पर्व या प्रकाश पर्व गुरु नानक जी की जन्म की खुशी में मनाया जाता है। सिखों के प्रथम गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 को राय भोई की तलवंडी (राय भोई दी तलवंडी) नाम की जगह पर हुआ था, जो अब पाकिस्तान के पंजाब प्रांत स्थित ननकाना साहिब में है। इस जगह का नाम ही गुरु नानक देव जी के नाम पर पड़ा।  यहां बहुत ही प्रसिद्ध गुरुद्वारा
ननकाना साहिब भी है, जो सिखों का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल माना जाता है।  इस गुरुद्वारे को देखने के लिए दुनिया भर से लोग आते हैं। बता दें, शेर-ए पंजाब नाम से प्रसिद्ध सिख साम्राज्य के राजा महाराजा रणजीत सिंह ने ही गुरुद्वारा ननकाना साहिब का निर्माण करवाया था। सिख समुदाय के लोग दीपावली के 15 दिन बाद आने वाली कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही गुरु नानक जयंती मनाते हैं। 

गुरु नानक जी कौन थे?

गुरु नानक जी सिख समुदाय के संस्थापक और पहले गुरु थे। उन्‍होंने ही सिख समाज की नींव रखी. उनके अनुयायी उन्हें नानक देव जी, बाबा नानक और नानकशाह कहकर पुकारते हैं। वहीं, लद्दाख और तिब्बत में उन्हें नानक लामा  कहा जाता है। गुरु नानक जी ने अपना पूरा जीवन मानवता की सेवा में लगा दिया। उन्होंने सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि अफगानिस्तान, ईरान और अरब देशों में भी जाकर उपदेश दिए। पंजाबी भाषा में उनकी यात्रा को 'उदासियां' कहते हैं। उनकी पहली 'उदासी' अक्टूबर 1507 ईं. से 1515 ईं. तक रही। 16 साल की उम्र में सुलक्खनी नाम की कन्या से शादी की और दो बेटों श्रीचंद और लखमीदास के पिता बने। 1539 ई. में करतारपुर (जो अब पाकिस्तान में है) की एक धर्मशाला में उनकी मृत्यु हुई। मृत्यु से पहले उन्होंने अपने शिष्य भाई लहना को उत्तराधिकारी घोषित किया जो बाद में गुरु अंगद देव नाम से जाने गए। गुरु अंगद देव ही सिख धर्म के दूसरे गुरु बने।

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