शिप्रा शुक्ला
तिकरित में फंसी सिनी का ढाई साल का बेटा कई दिन से परेशान है कि क्यों उसकी माँ आजकल उसे फ़ोन नहीं करती । इस नन्ही सी उम्र में उसे यह समझ नहीं कि कैसे उसकी माँ अक्सर लम्बे समय के लिए गायब हो जाती है, उसने अपनी याद में माँ को बस आते-जाते ही देखा है. पर वह जानता है उसकी माँ हर रोज फ़ोन पर कभी कहानी सुनाती है तो कभी लोरी गाती है। लेकिन अब यह अचानक बंद हो गया। वह अपनी थोड़ी सी शब्दाबली में कुछ पूछ भी नहीं पाता। यह बात और है कि उसके पिता और दुसरे परिवारीजन उसके किसी सवाल का जवाब देने में असमर्थ है।ईराक के तिकरित में फंसी केरल और तमिलनाडु की ४६ नर्से देश भर में चिंता का विषय है। खासकर केरल और तमिलनाडु में लोग बार बार यही सवाल उठा रहे हैं की रोजी की तलाश में गई ये महिलाएं सलामत अपने वतन लौट सकेंगी या नहीं। अभी तक उन्हें वापस लाने का कोई सरकारी उपक्रम कामयाब न होने से उनके परिवारो की मायूसी हताशा में तब्दील होती जा रही है।
जहाँ एक ओर उनकी सुरक्षा के सवाल अभी तक निरुत्तरित है वही एक दूसरा अहम सवाल उनके जीवनयापन के इस तरीके की कड़वी सच्चाई का है। क्या कारण है कि देश में सबसे ज्यादा विकसित प्रदेशों में से एक केरल की महिलाये अपना घर द्वार और बहुत से मामलों में अपने दूध पीते बच्चे तक पीछे छोड़कर विदेशों में जाकर काम करने को तैयार हैं ? कौन सी वजह है कि ये नर्स ईराक जैसे असुरक्षित स्थान पर जाकर रोजी कमाने को मजबूर हुई वह भी कर्ज लेकर दलालों को बड़ी रकम देकर । केरल की करीब ६० हज़ार नर्से विदेशो में कार्यरत है जिनमे से हज़ारों नर्से इराक में सेवारत है। सऊदी अरब में लगभग ९५ फीसदी नर्से भारत विशेषकर केरल और दक्षिण एशिया से हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार तक़रीबन साढ़े सोलह लाख मलयाली विदेशो में रह रहे है जो कुल केरलवासियों का लगभग पांच प्रतिशत है। इसमें में लगभग ९०
प्रतिशत अरब देशों में कार्यरत हैं। प्रदेश के करीब ५० लाख लोग विदेशो में बसे लोगों पर आश्रित हैं। प्रदेश में व्याप्त बेरोजगारी की मार इसका बड़ा कारण है जिसके चलते प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा विदेशो में नौकरियां तलाशने के लिए मजबूर है। कोट्टायम और मल्लापुरम जिलो में जाये तो शायद ही कोई ऐसा परिवार मिलेगा जिसका कोई सदस्य अरब देश में हो। खाड़ी देशो में जाने पर पैसे भी अच्छे है और अकेलेपन की भी समस्या से नहीं जूझना पडता क्योंकि वहां मलयाली बड़ी तादाद में बसे हैं। दुबई और मस्कट के कई हिस्से आपको केरल में होने का भरम दे सकते हैं। इसी तरह कोच्चि और त्रिवेंद्रम हवाईअड्डे से खाड़ी देशो की उड़ाने भारत के कई बड़े शहरों से ज्यादा दिखेगी।
सत्तर के दशक से केरल की नर्सों ने खाड़ी के देशों में जाकर रोजी कमाना शुरू किया। यह सिलसिला अब प्रथा बन गया है। आकड़ों पर नज़र डालें तो लगभग ९० प्रतिशत नर्सें ईसाई समुदाय से है जिसमे नर्से होना एक सम्मान पूर्ण काम माना जाता है। आज बहुत से मलयाली परिवारों में बेटी की शिक्षा दीक्षा नर्स बनकर गल्फ भेजने का उद्देश्य ध्यान रख कर दी जाती है। इससे न सिर्फ बेटी अपना दहेज़ इक्कठा कर सकेगी, बल्कि उसकी शादी में आराम रहेगा क्योंकि विदेश में कामकाजी पत्नी के चलते पुरुष को भी नौकरी मिलना आसान रहता है। साथ ही, जब तक विवाह न हो वह माँ पिता के परिवार की सहायता करती है और विवाहोपरांत अपने पति के परिवार की । ज्यादातर नर्से कुछ वर्ष विदेश जाकर पैसे कमाने के उद्देश्य से काम शुरू करती हैं लेकिन ख़्वाहिशों और मांगों का ख़त्म न होता सिलसिला उन्हें अपने मायाजाल में समेटे लेता है। पहले पहल दलाल को दी गयी रकम की अगायगी और उसके बाद परिवार की दूसरी जरूरतों को पूरा करने में लम्बा समय बीत जाता है। अपने देश में नौकरी और बेहतर मुयावजे की कमी इन महिलाओं को हज़ारों मील लेजा बैठा देती है और खतरे छेल कर भी बड़ी रकम घर भेजना उनकी नियति बन गया है ।समय चर्चा डाट काम
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