लोकसभा चुनाव 2019: आया तो मोदी ही

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लोकसभा चुनाव 2019: आया तो मोदी ही

Khushboo Diwakar 24-05-2019 11:21:41

लोकसभा चुनाव 2019 भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में सबसे कोलाहल भरे चुनाव के लिए जाना जाएगा. सत्ता के लिए जो शोर सुनाई दिया, टीवी और सोशल मीडिया के जरिए उसकी गूंज लोगों के डायनिंग रूम तक पहुंची. इस शोर के बीच जनता ने पीएम मोदी को चुनने का फैसला लिया. पूरे चुनाव के दौरान पीएम मोदी आत्मविश्वास से लबरेज दिखे. ये आत्मविश्वास शायद इसलिए दिखा क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हवा का मिजाज पहले ही भांप लिया था. अपने तीन महीने के अथक चुनाव प्रचार में पीएम को एहसास हो गया था कि देश की जनता चाहती क्या है. और ये भी कि पिछली बार जैसा बहुमत मिला था, इस बार आंकड़ उसके पार जाएगा. पीएम अपने आकलन में विश्वस्त जौहरी की तरह दिखे. उनका अनुमान पूरा सही निकला. जब वो आए तो महानायक की तरह आए.

महागठबंधन

2019 के लोकसभा चुनाव का सबसे बड़ा बज वर्ड (BUZZ WORD) महागठबंधन था. इसकी बड़ी चर्चा हुई. मोदी को रोकने के लिए राजनीति में किया गया ये प्रयोग अनूठा तो था ही विपक्ष की उम्मीदों को कंधा भी दिए हुए था. उत्तर प्रदेश में विपक्ष को जातीय और धार्मिक वोटों की गोलबंदी की उम्मीद थी. इसी नतीजे के फलीभूत होने की आशा में मायावती और अखिलेश सालों पुरानी दुश्मनी को भुला कर एक हुए. लेकिन जब नतीजे आए, तो आया तो मोदी ही. उत्तर प्रदेश में सहयोगी दलों के साथ बीजेपी ने 63 सीटें हासिल की, जबकि महागठबंधन को 16 सीटें मिली.

चौकीदार

19 का चुनाव चौकीदारी पर लड़ी गई. राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी की चौकीदारी पर सीधा सवाल उठाया और उन्हें चोर करार दिया. लेकिन नरेंद्र मोदी विपक्ष द्वारा दिए इस विशेषण को यूं लपक बैठे जैसे वो इसका ही इंतजार कर रहे थे. नरेंद्र मोदी ने अपने नाम के आगे चौकीदार शब्द जोड़ लिया. पीएम द्वारा ऐसा करते देख बीजेपी के सभी नेताओं ने अपने नाम के आगे चौकीदार शब्द जोड़ लिया. 31 मार्च को बीजेपी ने मैं भी चौकीदार हूं अभियान की शुरूआत की और इसे देश की जनता के सम्मान से जोड़ दिया. फिर जो हुआ उसे पूरे देश ने देखा. बीजेपी ने चौकीदार चोर है का ऐसा काउंटर नैरेटिव तैयार किया कि राहुल उसके नहीं टिक पाए.

प्रियंका गांधी वाड्रा

समाजवादी पार्टी और बहुजन समाजपार्टी अपनी बहुचर्चित दोस्ती पर इतरा रही थी, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपने उस महारथी को मैदान-ए-जंग पर उतारने जा रहे थे जिनमें लोगों को पूर्व पीएम इंदिरा गांधी का अक्श नजर आ रहा था. ये उनकी अपनी बहन थीं. प्रियंका गांधी वाड्रा जब यूपी में महासचिव बन कर आईं तो आत्मविश्वास से भरी दिखी. कम से कम टीवी स्क्रीन पर तो ऐसा ही दिख रहा था. प्रियंका का संबोधन, उनकी मुद्राएं कांग्रेस के लोगों को तो खुश जरूर कर गई, लेकिन EVM का नतीजा सामने
आया तो उससे निकला तो मोदी ही. यूपी से कांग्रेस के लिए नतीजे बेहद निराशाजनक रहे. राहुल गांधी अमेठी में स्मृति की चुनौती के आगे घुटने टेकते नजर आए. इस राज्य में 80 सीटों में से पार्टी को मात्र 1 सीट मिली.

हुआ तो हुआ

इस चुनाव का सबसे रोचक जुमला रहा, हुआ सो हुआ. राहुल के इस सलाहकार ने चुनावों में एंट्री देर से की. लेकिन जब आए तो छा गए और यूं छाए कि खुद राहुल गांधी को ही दखल देना पड़ा. कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने 1984 के सिख दंगों को इतनी सहजता से हुआ तो हुआ कहा कि बीजेपी ने इस पर कोहराम मचा दिया. पीएम मोदी ने अपने चुनावी सभाओं में इस शब्द को दोहराया और कहा कि ये कांग्रेस का अंहकार है. सैम पित्रोदा ने इस बयान के लिए माफी मांगी ,लेकिन इसका जो असर पड़ना था वो पड़ चुका था.

ममता बनर्जी

इस चुनाव में मोदी-शाह की अपरिमित सत्ता को पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने झकझोर कर रख दिया. ममता अमित शाह के रास्ते में बीचों-बीच खड़ी हो गईं. ये जंग थी पश्चिम बंगाल की 42 सीटों के लिए. बात दीदी से शुरू हुई और गुंडा तक पहुंच गई. इश्वरचंद्र विद्या सागर की भूमि ने गुंडागर्दी देखी, मूर्तियां टूटी, रैलियां रद्द हुई और सियासत के दूसरे दांव पेंच आजमाए गए. कोई पक्ष झुकने के लिए तैयार नहीं था. दरअसल बंगाल की जिन सीटों की बदौलत दीदी पीएम की कुर्सी के सपने बुनती दिखीं, वहां नतीजे ऐसे आए कि सारे अरमान धरे के धरे रह गए. और नतीजे आए तो मोदी ही आए. बीजेपी को बंगाल में 18 सीटें मिली. यहां पार्टी की 16 सीटें बढ़ी, टीएमसी को 22 सीटें आई, यहां ममता को 12 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा. जबकि कांग्रेस 2 सीटें हासिल कर सकी.

चंद्रबाबू नायडू

आंध्र प्रदेश में पहले ही चरण में लोकसभा-विधानसभा का चुनाव निपटाने के बाद खाली पड़े नायडू को न जाने क्या लगा कि उनके अंदर भी भारतवर्ष का प्रधानमंत्री बनने की क्षमता है. पिछले एक सप्ताह से वह लगातार हैदराबाद से दिल्ली, दिल्ली से लखनऊ और चेन्नई का चक्कर काटते रहे और नेताओं से बात कर संभावनाएं तलाशते रहे. उनकी उम्मीदें उस जनादेश पर टिकी थी, जहां कई बार बिल्ली के भाग्य से छींका टूटा था. लेकिन इस बार ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. जब नतीजे आए तो आए मोदी दी.  

प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी इस चुनावी प्रक्रिया के अजातशत्रु साबित हुए. वे विपक्ष के चक्रव्यूह को भेदते चले गए, उन्होंने कई हमले झेले, कुछ वार तो लपककर उन्होंने वापस विरोधियों की ओर ही फेंक दिया. पीएम की तारीफ के ये पहलू इसलिए नहीं निकाले जा रहे हैं क्योंकि उन्होंने धमाकेदार वापसी की है. इसके पीछे प्रधानमंत्री मोदी का वो पराक्रमी शब्दकोष है जिसमें हार शब्द है ही नहीं!


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