नई दिल्ली,Localnewsofindia Bihar Health : बिहार में आश्चर्यजनक रुप से पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण डायरिया (Diarrhea) है। पहला सबसे बड़ा कारण न्यूमोनिया (Pneumonia) है। इन दोनों समस्याओं से निबटने क लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। फिर भी आज भी बिहार में 10. 4 प्रतिशत बच्चे डायरिया के कारण पांच साल की उम्र से पहले ही मौत की भेंट चढ़ जाते हैं। आश्चर्यजनक रुप से 2010 तक प्रति वर्ष पांच साल से कम बीस हजार बच्चों की मौत डायरिया से हो जाती थी। लैंसेट स्टडी के अनुसार, 2017 में बच्चों की माैत संख्या घटकर 12 हजार प्रति वर्ष हो गई । हालांकि केंद्र सरकार की इंटीग्रेटेड एक्शन प्लान फॉर प्रीवेंशन ऑफ न्यूमोनिया एंड डायरिया (Integrated action plan for prevention of Diarrhea and Pneumonia) अभियान का लक्ष्य 2025 तक डायरिया से होनेवाले मौताें की संख्या को प्रति एक हजार बच्चों में एक माैत तक करने की है। इस लक्ष्य को पाने में कितनी सफलता मिलेगी यह भविष्य के गर्भ में है।
दस साल में मात्र एक प्रतिशत बढ़ा केयर गिविंग का आंकड़ा
बहरहाल, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -3 (एनएफएचएस) के अनुसार , 54.9 प्रतिशत अभिभावक डायरिया हाेने पर बच्चों को डॉक्टर या अस्पताल में ले जाते हैं यानी बच्चों को सही समय पर उचित देखभाल (care giving) मिलती थी। एनएफएचएस -4 के अनुसार दस सालों में केयर गिविंग का यह आंकड़ा मात्र एक प्रतिशत बढ़ा है। अब 55.9 प्रतिशत डायरिया पीडि़त बच्चों को सही समय पर उचित देखभाल और इलाज मिल पाता है। यह आंकड़ा बेहद चिंताजनक है। तब यह और भी चिंता की बात है जब मात्र 51 प्रतिशत बेबी गर्ल को और 58 प्रतिशत बेबी बॉय को लेकर लोग इलाज के लिए अस्पताल या डॉक्टर के पास पहुंचते हैं।
ओआरएस नहीं मिलता समय पर
एनएफएचएस-4 के अनुसार, डायरिया पीडि़त मात्र 45.2 प्रतिशत बच्चों को ही ओआरएस का घोल पिलाया जाता है। जो कि डायरिया के इलाज के लिए बेहद अहम है। इसके अलावा मात्र 20.1 प्रतिशत बच्चे
को ही जिंक मिल पाता है। बिहार के ग्रामीण इलाकों में पांच से कम उम्र के डायरिया पीडि़त बच्चों को ओआरएस , जिंक सही समय पर नहीं मिल पाता। डायरिया होने पर यदि बच्चों को जिंक और ओआरएस का घोल तुरंत देना शुरु कर दिया जाए तब भी काफी हद तक डायरिया से होनेवाली मौत को कम किया जा सकता है।
जानकारी के आभाव में जानलेवा हो जाता डायरिया
यूनिसेफ बिहार के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सैयद हुबे अली ने बताया कि ग्रामीण इलाकों में कई बार लोग नीम-हकीम तथाकथित डॉक्टरों कें चक्कर में फंस जाते हैं। जिससे बच्चों को स्वास्थ्य लाभ की जगह नुकसान ही हो जाता है। जानकारी के आभाव में कई बार बच्चों को लूज मोशन होने के कारण मां अपना दूध पिलाना भी बंद कर देती हैं, जिसके कारण बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाती है और डायरिया जानलेवा हो जाता है। इसके अलावा बच्चों को लूज मोशन होत ही मात्र 54. 9 प्रतिशत अभिभावक ही तुरंत स्वास्थ्यकर्मियाें की मदद लेने के साथ ही अस्पताल पहुंचते हैं। यह दुखद है कि शिशु यदि बालिका है तो उसकी स्वास्थ्य की प्राथमिकता आज भी ग्रामीण इलाकों में उपेक्षित है।
60 प्रतिशत डायरिया रोटावायरस सेडॉ हुबे अली का कहना है कि बिहार में 60 प्रतिशत डायरिया रोटा वायरस के कारण होता है। इससे भी बच्चों की मौत का आंकड़ा ज्यादा है। हालांकि पिछले साल से बिहार में भी सभी स्वास्थ्य केंद्रों और सरकारी अस्
16 से 29 सितंबर तक बिहार में स्टेट हेल्थ सोसायटी, बिहार सरकार द्वारा इंटीग्रेटेड डायरिया कंट्रोल पखवाड़ा शुरू किया गया है। पूरे राज्य में डायरिया को नियंत्रित करने का यह अभियान चलाया जा रहा है। यूनिसेफ के डॉ हुबे अली ने बताया कि हम बिहार सरकार के साथ मिलकर डायरिया नियंत्रण के लिए काम कर रहे हैं। 16 से 29 सितंबर तक हमारा लक्ष्य पांच से कम उम्र के 1.72 करोड़ बच्चों तक पहुंचना है। उनके माता-पिता को ओआरएस घोल पिलाने और अन्य जरूरी केयर देने को जागरूक करना है।
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