कांग्रेस वर्किंग कमेटी की सोमवार को हुई वर्चुअल बैठक में पार्टी की अंदरूनी कलह खुलकर सामने आ गई। राहुल गांधी के एक कथित बयान का गुलाम नबी आजाद और कपिल सिब्बल ने तुरंत विरोध कर दिया, तो साढ़े चार घंटे के अंदर पार्टी ने डैमेज कंट्रोल भी कर लिया। लेकिन इस कलह के पीछे की कहानी थोड़ी अलग है। आगे क्या होने वाला है, यह भी लगभग तय है। इस घटनाक्रम से कुछ सवाल भी उठ रहे हैं। 6 पॉइंट में इन्हें बारी-बारी से समझते हैं...
1. चिट्ठी किस तरफ इशारा करती है?
चिट्ठी परोक्ष तौर पर इशारा करती है कि पार्टी का एक गुट किसी गैर-गांधी की ताजपोशी चाहता था। उसकी मंशा राहुल का रास्ता रोकने की थी। इसकी कहानी करीब 15 दिन पहले शुरू हुई। दरअसल, सोनिया गांधी का अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर एक साल का कार्यकाल 9 अगस्त को खत्म हो रहा था। इससे दो दिन पहले यानी 7 अगस्त को कांग्रेस के 23 नेताओं ने सोनिया गांधी को चिट्ठी लिख दी। यह चिट्ठी ऐसे समय लिखी गई, जब सोनिया गंगाराम अस्पताल में भर्ती थीं।
इस चिट्ठी में नेताओं ने सोनिया से ऐसी ‘फुल टाइम लीडरशिप’ की मांग की थी, जो ‘फील्ड में एक्टिव रहे और उसका असर भी दिखे’। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि फुलटाइम लीडरशिप और फील्ड में असर दिखाने वाली एक्टिवनेस जैसे शब्दों का इस्तेमाल इस तरफ इशारा करता है कि कांग्रेस का एक गुट दोबारा राहुल गांधी की ताजपोशी नहीं चाहता।
2. सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में हुआ क्या?
23 नेताओं की चिट्ठी के बावजूद सोनिया गांधी ने 12 अगस्त को संगठन के नाम एक चिट्ठी लिखी और अगला अध्यक्ष चुनने की कार्रवाई शुरू करने को कहा। दूसरे गुट के नेताओं को इस बात का एहसास हो गया कि सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में सोनिया पद छोड़ेंगी और लोकसभा चुनाव में हार के बाद अध्यक्ष पद छोड़ चुके राहुल के नाम पर दोबारा मुहर लगेगी। वे नहीं चाहते थे कि इस बैठक में किसी भी सूरत में राहुल की ताजपोशी हो। इसमें वे फिलहाल कामयाब भी हो गए और मामला छह महीने के लिए टल गया।
सीडब्ल्यूसी की सोमवार को मीटिंग थी और दो दिन पहले यानी शनिवार को 23 नेताओं की चिट्ठी लीक हो गई। जब सोमवार को मीटिंग शुरू हुई, तो राहुल ने सीधे इस चिट्ठी की टाइमिंग पर सवाल उठा दिए। उन्होंने कहा कि जब सोनिया गांधी अस्पताल में भर्ती थीं, तब यह चिट्ठी क्यों लिखी गई? राहुल ने हकीकत में ये कहा था कि इस तरह के पत्र लिखने से भाजपा को फायदा हो सकता है। जबकि मीडिया में यह बात लीक की गई कि राहुल कह रहे हैं कि पार्टी नेताओं ने भाजपा की मिलीभगत से ऐसा किया।
‘भाजपा को फायदे’ वाले बयान को ‘भाजपा की मिलीभगत’ वाला बयान मानकर दो नेताओं ने खुलकर विरोध कर दिया। पहले थे गुलाम नबी आजाद और दूसरे थे कपिल सिब्बल। सिब्बल ने पहले ट्वीट किया, फिर राहुल से बात होने की बात लिखकर उस ट्वीट को डिलीट भी कर दिया। आजाद ने कथित रूप से पहले कहा कि राहुल के आरोप साबित हुए तो इस्तीफा दूंगा। बाद में अपना बयान वापस ले लिया।
3. नेताओं ने अचानक बयान क्यों वापस लिए?
यहां सवाल उठता है कि जब राहुल के बयान के बारे में पार्टी नेता कन्फर्म ही नहीं थे, तो उन्होंने सार्वजनिक तौर पर
अपनी नाराजगी क्यों जाहिर की? दरअसल, सीडब्ल्यूसी की बैठक में 51 नेता शामिल हुए, लेकिन इनमें सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं की संख्या सिर्फ 4 थी। बाकी नेता सीडब्ल्यूसी की बैठक में पूरी तैयारी के साथ आए थे और उन्होंने चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को बैकफुट पर कर दिया।
कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि बिखराव रोकने और डैमेज कंट्रोल के तहत इन नेताओं से बयान वापस लेने को कहा गया। अंबिका सोनी जैसे कुछ नेताओं ने सोनिया से उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग भी कर डाली।
4. आखिर सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले नेताओं को दिक्कत क्या है?
चिट्ठी लिखने वालों में शामिल नेता बड़े पदों पर रहे हैं। गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के सीएम रहे हैं और अभी राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। राज्यसभा का उनका कार्यकाल अगले साल पूरा होने वाला है। माना जा रहा है कि वे दोबारा राज्यसभा नहीं भेजे जाएंगे। आनंद शर्मा की हालत भी ऐसी ही है।
सोनिया काे चिट्ठी लिखने वालों में शामिल भूपिंदर सिंह हुड्डा हरियाणा, राजिंदर कौर भट्टल पंजाब, एम वीरप्पा मोइली कर्नाटक और पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के सीएम रह चुके हैं। सिब्बल यूपीए सरकार में अहम मंत्री पदों पर रहे हैं। माना जाता है कि इन वरिष्ठतम नेताओं को राहुल की दोबारा ताजपोशी होने पर पार्टी में अपनी अहमियत कम होने की चिंता है, क्योंकि राहुल नई पीढ़ी को आगे लाना चाहते हैं।
इनमें से कई नेता अभी राज्यसभा में हैं या जाना चाहते हैं। इन्हें राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने पर राज्यसभा में दोबारा जाने का मौका मिलने की संभावना नहीं दिख रही। कुछ को बेटों के सियासी करियर की चिंता भी सता रही है।
5. अध्यक्ष पद पर आगे क्या होगा?
सोनिया गांधी अभी अंतरिम अध्यक्ष बनी रहेंगी। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि अगले साल की शुरुआत में पंजाब या छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी का सत्र होगा। इसमें राहुल गांधी को दोबारा अध्यक्ष चुना जाना तय है।
6. चिट्ठी लिखने वाले नेताओं का क्या होगा?
सीडब्ल्यूसी की 7 घंटे चली बैठक के बाद जो प्रस्ताव पारित किया गया, उसकी भाषा चेतावनी देने वाली है। सोनिया पत्र से कितनी आहत हैं, इसका संकेत प्रस्ताव की भाषा से साफ है। इसमें कहा गया है, ‘सीडब्ल्यूसी यह साफ कर देना चाहती है कि किसी को भी पार्टी या उसके नेतृत्व की अहमियत कम करने या उसे कमजोर करने की इजाजत नहीं दी जाएगी।’
राहुल को मजबूती देते हुए कहा गया, ‘सरकार के खिलाफ राहुल गांधी आगे होकर मोर्चा संभाले हुए हैं। सीडब्ल्यूसी हर तरह से सोनिया गांधी और राहुल गांधी के हाथ मजबूत करना चाहती है।’
माना जा रहा है कि राहुल के चुने जाने से पहले ही सोनिया को चिट्ठी लिखने वाले ज्यादातर नेताओं को पार्टी में किनारे करने की कोशिशें शुरू हो सकती हैं। पत्र लिखने वाले नेताओं को इसका एहसास भी है। इस कारण से पांच-छह नेता कल सीडब्ल्यूसी की बैठक के तुरंत बाद गुलाम नबी आजाद के घर भी पहुंचे थे।
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