Kashish || @LocalNewsOfIndia
केरल के तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर बीते तीन सप्ताह से खड़ा ब्रिटिश एफ-35बी (F-35B) लड़ाकू विमान अब भारत-ब्रिटेन के रक्षा हलकों में चर्चा का बड़ा विषय बन गया है। यह अत्याधुनिक स्टील्थ फाइटर जेट, जिसे लॉकहीड मार्टिन द्वारा पांचवीं पीढ़ी के फाइटर के तौर पर तैयार किया गया है, शॉर्ट टेक-ऑफ और वर्टिकल लैंडिंग (STOVL) क्षमताओं से लैस है। अब इसे वापस ब्रिटेन ले जाने के प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन इसमें तकनीकी और सुरक्षा दोनों ही स्तरों पर गंभीर चुनौतियां सामने आ रही हैं।
19 दिन पहले अचानक तिरुवनंतपुरम में बिना किसी पूर्व सूचना के लैंडिंग करने वाले इस विमान की फील्ड रिपेयर की सभी कोशिशें असफल रही हैं। अब ब्रिटेन की रॉयल नेवी इसे विशाल अमेरिकी ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट C-17 ग्लोबमास्टर के जरिए स्वदेश ले जाने की योजना बना रही है। हालांकि, C-17 में एफ-35बी को फिट करना आसान काम नहीं है। इसके लिए विमान को आंशिक रूप से 'डिसअसेंबल' यानी कुछ हिस्सों में तोड़ना पड़ सकता है। इस संवेदनशील कार्य को केवल लॉकहीड मार्टिन के प्रशिक्षित इंजीनियर ही अंजाम दे सकते हैं।
F-35B में मौजूद उन्नत स्टील्थ कोटिंग, रडार अवरोधक, एन्क्रिप्टेड सॉफ्टवेयर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डेटा फ्यूजन तकनीकें इसकी सुरक्षा और गोपनीयता को अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती हैं। यही वजह
है कि ब्रिटिश सेना इस प्रक्रिया के दौरान हर एक कदम पर कड़ी निगरानी रखेगी। विमान के हर पुर्जे को विशेष कोडिंग और सुरक्षा प्रोटोकॉल के तहत हटाया जाएगा ताकि डेटा में किसी तरह की सेंधमारी न हो सके। अगर स्टील्थ तकनीक से जुड़ी जानकारी लीक होती है, तो इससे वैश्विक कूटनीतिक और सैन्य संतुलन प्रभावित हो सकता है।
गौरतलब है कि इससे पहले मई 2019 में अमेरिका के एग्लिन एयरफोर्स बेस से एक F-35 लाइटनिंग II को C-17 में एयरलिफ्ट किया गया था। यह मिशन चार साल की तैयारी और करीब दो लाख डॉलर की लागत के साथ पूरा किया गया था, जिससे इस तरह के ऑपरेशन की जटिलता और संवेदनशीलता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
F-35 दुनिया का सबसे महंगा सैन्य प्रोजेक्ट है जिसकी अनुमानित लागत 1.7 ट्रिलियन डॉलर से अधिक है। यह परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम, मल्टी-रोल और किसी भी मौसम में लड़ने की क्षमता वाला सबसे उन्नत फाइटर जेट है। विदेशी धरती पर इसका यूं फंसना और फिर उसे सुरक्षित रूप से वापस लाना, सिर्फ एक तकनीकी चुनौती ही नहीं बल्कि एक कूटनीतिक कसौटी भी बन चुका है। अब देखना यह है कि क्या यह अत्याधुनिक लड़ाकू विमान बिना टूटे वापस जाएगा या फिर टुकड़ों में 'ग्लोबमास्टर' से अपने देश लौटेगा।
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