Kashish || @LocalNewsOfIndia
सिंधु जल संधि को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनातनी देखने को मिल रही है। पाकिस्तान ने हेग स्थित मध्यस्थता न्यायालय (Court of Arbitration) के हालिया फैसले का हवाला देते हुए भारत से अपील की है कि वह इस संधि का "सही भावना" से पालन करे। सोमवार को पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा कि 27 जून को आए फैसले में मध्यस्थता कोर्ट ने पाकिस्तान के पक्ष को सही ठहराया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि सिंधु जल संधि आज भी वैध और प्रभावी है।
पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार ने भी इस मुद्दे पर सोशल मीडिया के माध्यम से प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "मध्यस्थता कोर्ट का पूरक फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि भारत एकतरफा रूप से सिंधु जल संधि को निलंबित नहीं कर सकता। समझौतों का सम्मान राष्ट्रों की साख का प्रतीक होता है।"
हालांकि, भारत ने पाकिस्तान की इन दलीलों को सिरे से खारिज करते हुए एक कड़ा जवाब दिया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि भारत कभी भी इस मध्यस्थता न्यायालय के अधिकार को मान्यता नहीं देता और इसे संधि का उल्लंघन मानता है। भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के तहत गठित मध्यस्थता अदालत स्वयं अवैध है, इसलिए उसका कोई भी फैसला या
पूरक अवार्ड "निरर्थक और अस्वीकार्य" है।
विदेश मंत्रालय ने यह भी दोहराया कि भारत ने सिंधु जल संधि को इस वर्ष अप्रैल में हुए पहलगाम आतंकी हमले के बाद स्थगित कर दिया था। भारत का यह भी कहना है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का स्पष्ट और विश्वसनीय तरीके से खात्मा नहीं करता, तब तक संधि को फिर से लागू करने का कोई प्रश्न नहीं उठता।
सिंधु जल संधि का इतिहास:
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई यह संधि सिंधु नदी प्रणाली के जल बंटवारे से संबंधित है। इसके तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों (रावी, ब्यास, सतलुज) का और पाकिस्तान को तीन पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) का उपयोग करने का अधिकार दिया गया था। समय-समय पर पाकिस्तान ने भारत की जलविद्युत परियोजनाओं, विशेषकर किशनगंगा और रतले प्रोजेक्ट्स पर आपत्ति जताई है और मामले को कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन में खींचा है।
भारत की स्पष्ट नीति:
भारत ने एक बार फिर दोहराया है कि किसी भी अवैध रूप से गठित निकाय को वह मान्यता नहीं देता और अंतरराष्ट्रीय कानूनों के तहत अपने संप्रभु अधिकारों का प्रयोग करते हुए संधि को स्थगित रखा है। भारत का यह भी मानना है कि पाकिस्तान जब तक सीमा पार आतंकवाद का समर्थन बंद नहीं करता, तब तक किसी भी प्रकार की संधि का पालन संभव नहीं है।
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