पश्चिम एशिया की ज्वालामुखी पर खड़ी दुनिया: इज़रायल-ईरान युद्ध में अमेरिका की बमबारी, लेकिन ईरान के सहयोगी अब क्यों हैं खामोश?

सितंबर में ब्रिटेन की राजकीय यात्रा पर जाएंगे डोनाल्ड ट्रंप, ऐसा करने वाले पहले अमेरिकी राष्ट्रपति बने आगरा डबल मर्डर: रंजिश नहीं, फिर कौन बना हैवान? दो दोस्तों की बेरहमी से हत्या, नहर किनारे मिले शव, गांव में मातम कांग्रेस की रणनीतिक बैठक आज: मानसून सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी, सोनिया गांधी करेंगी नेतृत्व कांग्रेस की रणनीतिक बैठक आज: मानसून सत्र में सरकार को घेरने की तैयारी, सोनिया गांधी करेंगी नेतृत्व “दौड़ फिर से शुरु: ‘भाग मिल्खा भाग’ 18 जुलाई को लौटेगी थिएटर्स में” “शुभांशु शुक्ला का ऐतिहासिक वापसी मिशन पूरा — Axiom 4 कैप्सूल 'Grace' का शांतिपूर्ण स्प्लैशडाउन” बालासोर छात्रा ने आत्मदाह किया, AIIMS में इलाज के तीन दिनों बाद अस्‍पताल में हुई मौत दुनियाभर में ठप हुआ एलन मस्क का X प्लेटफॉर्म, भारत में भी यूजर्स परेशान 'पीएम मोदी की रिटायरमेंट के बाद गडकरी बनें देश के प्रधानमंत्री', कांग्रेस के इस नेता ने कर दी बड़ी मांग लोकसभा में गैरहाजिरी पर कांग्रेस का सवाल: पीएम और मंत्रियों को क्यों मिल रही है छूट? 'कम बोलो, ज्यादा काम करो...', अपने ही पार्टी नेताओं से क्यों नाराज हुए एकनाथ शिंदे? दुबई में मुख्यमंत्री मोहन यादव की बड़ी पहल: TEXMAS के साथ बैठक, मध्यप्रदेश को बनाया जा रहा वैश्विक टेक्सटाइल हब ग्रेटर नोएडा: कासना टावर में एसी के एग्जॉस्ट में लगी आग, कर्मचारियों में मची अफरा-तफरी, बड़ा हादसा टला मुख्यमंत्री योगी का बड़ा बयान: सरकारी स्कूलों का विलय छात्रों और शिक्षकों के हित में, शिक्षा की गुणवत्ता में होगा सुधार देवप्रयाग में नृसिंहगाचल पर्वत दरका: मकानों पर गिरे भारी बोल्डर, एक घायल, कई वाहन मलबे में दबे पंजाब में बेअदबी बिल को कैबिनेट की मंजूरी, विधानसभा के विशेष सत्र में आज होगा पेश ग्रेटर आगरा प्रोजेक्ट के लिए शुरू हुआ सर्वे, रहनकलां और रायपुर के किसानों को मिल रहा मुआवजा, आसमान छू सकते हैं जमीन के दाम भोजपुर में शराब माफियाओं के खिलाफ छापेमारी के दौरान पुलिस की गोली से ग्रामीण की मौत, गुस्साई भीड़ ने सैप जवान को पीटा, सड़क पर शव रखकर घंटों हंगामा Income Tax Raids: 80GGC के तहत फर्जी दावों पर आयकर विभाग की बड़ी कार्रवाई, देशभर में 200 से ज्यादा ठिकानों पर छापेमारी जारी संजय भंडारी से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस में ईडी के सामने पेश हुए रॉबर्ट वाड्रा, आरोपों को बताया राजनीति से प्रेरित

पश्चिम एशिया की ज्वालामुखी पर खड़ी दुनिया: इज़रायल-ईरान युद्ध में अमेरिका की बमबारी, लेकिन ईरान के सहयोगी अब क्यों हैं खामोश?

MUSKAN 23-06-2025 12:43:22

Kashish || @LocalNewsOfIndia 

पश्चिम एशिया इन दिनों युद्ध की आग में झुलसने के करीब है। इज़रायल और ईरान के बीच छिड़ा संघर्ष अब केवल दोनों देशों की दुश्मनी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक बहुस्तरीय जियोपॉलिटिकल टकराव का रूप लेता जा रहा है। इसी क्रम में अब अमेरिका की एंट्री ने इस तनाव को निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया है। रविवार को अमेरिकी वायुसेना द्वारा ईरान के सैन्य ठिकानों पर की गई बमबारी ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया। जबकि ईरान ने इसका सख्त जवाब देने की बात कही है, दूसरी ओर उसके वो परंपरागत सहयोगी — हिज़बुल्लाह, हमास, हुती विद्रोही और इराकी मिलिशिया — जो अतीत में हमेशा ईरान की ‘प्रॉक्सी स्ट्रैटेजी’ का आधार रहे हैं, इस बार आश्चर्यजनक रूप से चुप हैं।

अमेरिका की बमबारी: युद्ध का ग्लोबल विस्तार

रविवार सुबह अमेरिकी एयरफोर्स ने ईरान के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई करते हुए कई लक्ष्यों को निशाना बनाया। अमेरिकी प्रशासन ने इस हमले को “रक्षा की पूर्व-चेतावनी” बताया, लेकिन यह कदम एक वैश्विक युद्ध का संकेत भी हो सकता है। इससे पहले अमेरिका लंबे समय तक इज़रायल को सैन्य सहयोग दे रहा था, लेकिन इस प्रत्यक्ष हस्तक्षेप ने युद्ध के स्वरूप को बदल दिया है। ईरान ने इस हमले को "आक्रामक और अवैध" बताया है और चेताया है कि वह अमेरिका को इसका गंभीर जवाब देगा।

ईरान की पारंपरिक ‘प्रॉक्सी वार’ रणनीति: अब तक क्यों नहीं सक्रिय?

ईरान की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति की रीढ़ रही है – प्रॉक्सी वॉर। ईरान सीधा युद्ध कम लड़ता है, लेकिन अपने समर्थन से चलने वाले संगठनों के जरिए अपने विरोधियों पर दवाब बनाता रहा है। इस रणनीति के तहत वर्षों तक उसने हिज़बुल्लाह (लेबनान), हमास (गाज़ा), हौथी (यमन), और इराक की शिया मिलिशिया को खड़ा किया और प्रशिक्षित किया। लेकिन इस बार, जब इज़रायल और अमेरिका एक साथ ईरान पर हमलावर हैं, तो ये सभी सहयोगी संगठनों ने आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है। आइए एक-एक करके समझते हैं क्यों:

1. हिज़बुल्लाह: रणनीतिक चुप्पी या मजबूरी?

लेबनान स्थित हिज़बुल्लाह हमेशा से ईरान के सबसे मजबूत और समर्पित सहयोगियों में गिना जाता है। 2006 के युद्ध में उसने इज़रायल को चुनौती दी थी। लेकिन इस बार हिज़बुल्लाह ने केवल एक बयान जारी कर अमेरिका और इज़रायल की आलोचना की और इस्लामी दुनिया से समर्थन मांगा, पर सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाई।

वजह:

  • लेबनान की राजनीतिक अस्थिरता: देश आर्थिक दिवालियापन के कगार पर है।
  • आंतरिक जनविरोध: आम लोग एक और युद्ध नहीं चाहते।
  • सरकारी दबाव: लेबनानी नेतृत्व हिज़बुल्लाह को शांत रहने की सलाह दे चुका है।

इससे स्पष्ट है कि हिज़बुल्लाह फिलहाल इज़रायल के साथ सीधी भिड़ंत से बच रहा है, जिससे ईरान
की उम्मीदों को झटका लग सकता है।

2. हुती विद्रोही: समझौते की सीमा में बंधे

यमन के हूती विद्रोही हाल के महीनों में रेड सी में जहाजों पर हमले करके दुनिया का ध्यान खींच चुके हैं। लेकिन अब वह भी शांत हैं।

वजह:

  • अमेरिका-हुती अस्थायी समझौता: अमेरिका ने यमन पर हमला न करने का वादा किया, बदले में हुती रेड सी में हमला नहीं करेंगे।
  • स्थिति का मूल्यांकन: हुती नेतृत्व भी जानता है कि अमेरिका के खिलाफ फिर मोर्चा खोलना उन्हें यमन में भारी नुकसान पहुंचा सकता है।

हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका सीधे युद्ध में और गहराई से उतरा, तो वे जवाब देंगे — लेकिन अब तक केवल शब्दों में।

3. इराक की शिया मिलिशिया: पहले चेतावनी, अब खामोशी

कताइब हिज़बुल्लाह और अन्य ईरान समर्थित इराकी गुटों ने पहले तो अमेरिका को चेतावनी दी थी कि यदि वह जंग में उतरा तो वे पूरे क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाएंगे। लेकिन अमेरिकी हमलों के बाद भी वे पूरी तरह शांत हैं।

वजह:

  • इराकी सरकार का दबाव: सरकार नहीं चाहती कि उसके देश को फिर से संघर्ष का मैदान बनाया जाए।
  • अमेरिकी सैन्य मौजूदगी: अमेरिका के खिलाफ हमला करना, खुद को अंतरराष्ट्रीय हमले के निशाने पर लाना है।

4. हमास: ग़ाज़ा की तबाही के बाद से पुनर्निर्माण की कगार पर

हमास भी ईरान के करीब रहा है, लेकिन गाज़ा पर इज़रायल द्वारा किए गए भीषण हमलों के बाद संगठन पूरी तरह बिखर चुका है। अब वह युद्ध नहीं, पुनर्निर्माण की दिशा में लगा है।

वजह:

  • भारी नुकसान: हजारों लड़ाके मारे जा चुके हैं, हथियार भंडार तबाह हो चुके हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय निगरानी: इस समय कोई भी हमला पूरी तरह नियंत्रण से बाहर जा सकता है।

क्या बदल रही है पश्चिम एशिया की जियो-पॉलिटिक्स?

इस पूरे परिदृश्य को देखने के बाद कुछ अहम बदलाव साफ नज़र आते हैं:

1. ईरान अब अकेला पड़ता दिख रहा है।

2. उसकी प्रॉक्सी रणनीति इस बार निष्क्रिय है।

3. सहयोगी संगठन अपने-अपने संकटों में उलझे हैं।

4. अमेरिका की सीधी सैन्य कार्रवाई क्षेत्रीय संतुलन को तोड़ सकती है।

क्या यह एक नया युद्ध मॉडल है? 

ईरान के सहयोगियों की चुप्पी बताती है कि पश्चिम एशिया में युद्ध के पुराने समीकरण बदल रहे हैं। जहां पहले एक हमला पूरी श्रृंखला को सक्रिय कर देता था, अब सहयोगी अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और ईरान के लिए लड़ने की स्थिति में नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं कि युद्ध थम जाएगा, बल्कि यह युद्ध अब और अधिक केंद्रित, सीमित लेकिन गहराई से खतरनाक हो सकता है। अमेरिका की एंट्री ने इसे वैश्विक शक्ल दे दी है। और अगर ईरान जवाब देता है — तो पूरी दुनिया को इसके झटके लग सकते हैं।

 

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :