Kashish || @LocalNewsOfIndia
पश्चिम एशिया इन दिनों युद्ध की आग में झुलसने के करीब है। इज़रायल और ईरान के बीच छिड़ा संघर्ष अब केवल दोनों देशों की दुश्मनी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह एक बहुस्तरीय जियोपॉलिटिकल टकराव का रूप लेता जा रहा है। इसी क्रम में अब अमेरिका की एंट्री ने इस तनाव को निर्णायक मोड़ पर पहुंचा दिया है। रविवार को अमेरिकी वायुसेना द्वारा ईरान के सैन्य ठिकानों पर की गई बमबारी ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया। जबकि ईरान ने इसका सख्त जवाब देने की बात कही है, दूसरी ओर उसके वो परंपरागत सहयोगी — हिज़बुल्लाह, हमास, हुती विद्रोही और इराकी मिलिशिया — जो अतीत में हमेशा ईरान की ‘प्रॉक्सी स्ट्रैटेजी’ का आधार रहे हैं, इस बार आश्चर्यजनक रूप से चुप हैं।
अमेरिका की बमबारी: युद्ध का ग्लोबल विस्तार
रविवार सुबह अमेरिकी एयरफोर्स ने ईरान के खिलाफ प्रत्यक्ष सैन्य कार्रवाई करते हुए कई लक्ष्यों को निशाना बनाया। अमेरिकी प्रशासन ने इस हमले को “रक्षा की पूर्व-चेतावनी” बताया, लेकिन यह कदम एक वैश्विक युद्ध का संकेत भी हो सकता है। इससे पहले अमेरिका लंबे समय तक इज़रायल को सैन्य सहयोग दे रहा था, लेकिन इस प्रत्यक्ष हस्तक्षेप ने युद्ध के स्वरूप को बदल दिया है। ईरान ने इस हमले को "आक्रामक और अवैध" बताया है और चेताया है कि वह अमेरिका को इसका गंभीर जवाब देगा।
ईरान की पारंपरिक ‘प्रॉक्सी वार’ रणनीति: अब तक क्यों नहीं सक्रिय?
ईरान की विदेश नीति और सुरक्षा रणनीति की रीढ़ रही है – प्रॉक्सी वॉर। ईरान सीधा युद्ध कम लड़ता है, लेकिन अपने समर्थन से चलने वाले संगठनों के जरिए अपने विरोधियों पर दवाब बनाता रहा है। इस रणनीति के तहत वर्षों तक उसने हिज़बुल्लाह (लेबनान), हमास (गाज़ा), हौथी (यमन), और इराक की शिया मिलिशिया को खड़ा किया और प्रशिक्षित किया। लेकिन इस बार, जब इज़रायल और अमेरिका एक साथ ईरान पर हमलावर हैं, तो ये सभी सहयोगी संगठनों ने आश्चर्यजनक चुप्पी साध रखी है। आइए एक-एक करके समझते हैं क्यों:
1. हिज़बुल्लाह: रणनीतिक चुप्पी या मजबूरी?
लेबनान स्थित हिज़बुल्लाह हमेशा से ईरान के सबसे मजबूत और समर्पित सहयोगियों में गिना जाता है। 2006 के युद्ध में उसने इज़रायल को चुनौती दी थी। लेकिन इस बार हिज़बुल्लाह ने केवल एक बयान जारी कर अमेरिका और इज़रायल की आलोचना की और इस्लामी दुनिया से समर्थन मांगा, पर सैन्य हस्तक्षेप से दूरी बनाई।
वजह:
इससे स्पष्ट है कि हिज़बुल्लाह फिलहाल इज़रायल के साथ सीधी भिड़ंत से बच रहा है, जिससे ईरान
की उम्मीदों को झटका लग सकता है।
2. हुती विद्रोही: समझौते की सीमा में बंधे
यमन के हूती विद्रोही हाल के महीनों में रेड सी में जहाजों पर हमले करके दुनिया का ध्यान खींच चुके हैं। लेकिन अब वह भी शांत हैं।
वजह:
हालांकि उन्होंने चेतावनी दी है कि यदि अमेरिका सीधे युद्ध में और गहराई से उतरा, तो वे जवाब देंगे — लेकिन अब तक केवल शब्दों में।
3. इराक की शिया मिलिशिया: पहले चेतावनी, अब खामोशी
कताइब हिज़बुल्लाह और अन्य ईरान समर्थित इराकी गुटों ने पहले तो अमेरिका को चेतावनी दी थी कि यदि वह जंग में उतरा तो वे पूरे क्षेत्र में अमेरिकी ठिकानों को निशाना बनाएंगे। लेकिन अमेरिकी हमलों के बाद भी वे पूरी तरह शांत हैं।
वजह:
4. हमास: ग़ाज़ा की तबाही के बाद से पुनर्निर्माण की कगार पर
हमास भी ईरान के करीब रहा है, लेकिन गाज़ा पर इज़रायल द्वारा किए गए भीषण हमलों के बाद संगठन पूरी तरह बिखर चुका है। अब वह युद्ध नहीं, पुनर्निर्माण की दिशा में लगा है।
वजह:
क्या बदल रही है पश्चिम एशिया की जियो-पॉलिटिक्स?
इस पूरे परिदृश्य को देखने के बाद कुछ अहम बदलाव साफ नज़र आते हैं:
1. ईरान अब अकेला पड़ता दिख रहा है।
2. उसकी प्रॉक्सी रणनीति इस बार निष्क्रिय है।
3. सहयोगी संगठन अपने-अपने संकटों में उलझे हैं।
4. अमेरिका की सीधी सैन्य कार्रवाई क्षेत्रीय संतुलन को तोड़ सकती है।
क्या यह एक नया युद्ध मॉडल है?
ईरान के सहयोगियों की चुप्पी बताती है कि पश्चिम एशिया में युद्ध के पुराने समीकरण बदल रहे हैं। जहां पहले एक हमला पूरी श्रृंखला को सक्रिय कर देता था, अब सहयोगी अपने-अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं और ईरान के लिए लड़ने की स्थिति में नहीं हैं। इसका मतलब यह नहीं कि युद्ध थम जाएगा, बल्कि यह युद्ध अब और अधिक केंद्रित, सीमित लेकिन गहराई से खतरनाक हो सकता है। अमेरिका की एंट्री ने इसे वैश्विक शक्ल दे दी है। और अगर ईरान जवाब देता है — तो पूरी दुनिया को इसके झटके लग सकते हैं।
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