मानव सभ्यता ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी में अप्रत्याशित उन्नति की है, लेकिन इसी के साथ हमने प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया है, जिसके कारण हमारी पृथ्वी का पारिस्थितिकी संतुलन अस्थिर हो गया है। पिछले कुछ दशकों में जैव विविधता में आई भारी गिरावट ने इसे हमारे सामने एक गंभीर संकट के रूप में प्रस्तुत किया है। यह केवल पर्यावरण का ही नहीं, बल्कि हमारे वित्तीय स्थिरता और आजीविका का भी खतरा बन चुका है।
आज, दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद का आधे से ज्यादा हिस्सा प्रकृति पर निर्भर करता है, और इसके बावजूद जैव विविधता के नुकसान का वित्तीय संकट पर असर पड़ता जा रहा है। यूएन महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने दीर्घकालिक वित्तपोषण की आवश्यकता की बात की है, और यह बात सच्चाई से परे नहीं है। जब तक हम जैव विविधता के संरक्षण के लिए उचित निवेश नहीं करते, हम एक स्थिर और समृद्ध भविष्य की कल्पना नहीं कर सकते।
यह स्थिति केवल वित्तीय संकट तक सीमित नहीं है। डब्लूडब्लूएफ की 'लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट' 2024 के अनुसार, पिछले पचास वर्षों में वैश्विक वन्यजीव आबादी में औसतन 73% की गिरावट आई है। मीठे पानी की प्रजातियां 85% तक घट चुकी हैं, और समुद्री प्रजातियां 56% तक लुप्त हो गई हैं। यह गिरावट न केवल प्राकृतिक दुनिया के लिए संकट पैदा कर रही है, बल्कि मानव जीवन के लिए भी खतरे की घंटी है। प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, और अवैध शिकार के कारण जंगलों, समंदरों और नदियों में जैव विविधता तेजी से कम हो रही है।
लैटिन अमेरिका, अफ्रीका और एशिया जैसे क्षेत्रों में यह संकट और भी गंभीर है। इन क्षेत्रों में जैव विविधता में 76% से 95% तक की कमी आई है, जो सीधे तौर पर वहाँ रहने वाले लोगों की आजीविका, भोजन सुरक्षा, और जीवनस्तर को प्रभावित कर रहा है। हम यह न भूलें कि प्रकृति पर निर्भर हमारे पारिस्थितिकी तंत्र ही हमारी खाद्य, जल, और ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। ऐसे में जैव विविधता का नुकसान हमारे अस्तित्व के लिए संकट बन सकता है।
यह संकट केवल पारिस्थितिकी तक सीमित नहीं है; इसके सामाजिक और आर्थिक परिणाम भी गहरे हैं। विश्व की 40% भूमि का
उपयोग मानव खाद्य उत्पादन के लिए हो रहा है, फिर भी 73 करोड़ लोग हर रात भूखे सोते हैं। खाद्य उत्पादन की बढ़ती मांग और पारंपरिक फसलों का लुप्त होना एक विकट समस्या बन गई है। समुद्री जीवन के अत्यधिक शोषण ने समुद्री मछली भंडार को संकट में डाल दिया है। यदि यह स्थिति जारी रही, तो यह न केवल जैव विविधता बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए भी एक गंभीर खतरा बन सकता है।
अब, एक ओर गंभीर संकट के रूप में जलवायु परिवर्तन भी है। तापमान में वृद्धि, समुद्र का स्तर बढ़ना, और महासागरों का अम्लीकरण जैव विविधता को और भी प्रभावित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, प्रवाल भित्तियां नष्ट हो रही हैं, और बर्फीले क्षेत्रों में बर्फ तेजी से पिघल रही है, जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरनाक है।
यह स्थिति हमें दोहरी चुनौती देती है: एक ओर तो हमें जैव विविधता को बचाने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है, और दूसरी ओर हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारे हर कदम का पारिस्थितिकी पर क्या प्रभाव पड़ सकता है। यह संकट केवल सरकारों और पर्यावरण संस्थाओं की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी भूमिका निभानी होगी। सरकारों, व्यवसायों और समाज को मिलकर काम करने की आवश्यकता है ताकि हम पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण के लिए एक मजबूत और टिकाऊ योजना बना सकें।
समय की मांग है कि हम अब भी इस संकट को काबू करने के लिए तत्पर हों। डब्लूडब्लूएफ की रिपोर्ट साफ तौर पर दर्शाती है कि जैव विविधता पर संकट गहरा रहा है, लेकिन हम इसे रोकने का एक अवसर अभी भी रखते हैं। आगामी पांच साल हमारे लिए निर्णायक होंगे। यह वही समय है जब हमें स्थायी समाधान के लिए कदम उठाने होंगे, ताकि हम अपनी पृथ्वी और उसके संसाधनों के साथ सामंजस्यपूर्ण तरीके से जीवन जी सकें। यदि हम इस अवसर को गंवा देंगे, तो इसके दुष्परिणाम हमारे आने वाली पीढ़ियों को भुगतने पड़ेंगे।
यह समय हमारे लिए सोचने और बदलाव लाने का है। जैव विविधता का संरक्षण अब सिर्फ पर्यावरणीय जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हमारे भविष्य की सुरक्षा की भी आवश्यकता बन चुकी है।
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