देश का बजट पेश होने में अब कुछ ही दिन और बचे हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 5 जुलाई को मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला केंद्रीय बजट पेश करने वाली हैं। जब बजट और अर्थव्यवस्था की बात हो तो डॉ मनमोहन सिंह का जिक्र होना भी लाजमी ही है। भारत के वित्तमंत्री और प्रधानमंत्री के पद पर रहे मनमोहन सिंह भारत में आर्थिक उदारीकरण के प्रणेता के तौर पर जाने जाते हैं। कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से डी. फिल. करने वाले मनमोहन सिंह ने कभी लोकसभा चुनाव नहीं लड़ा, लेकिन विभिन्न पदों पर रहते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में उनका योगदान महत्वपूर्ण है।
साल 1985 में राजीव गांधी के शासन काल में मनमोहन सिंह को भारतीय योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया था। वे इस पद पर पांच सालों तक रहे जिसके बाद उन्हें 1990 में प्रधानमंत्री का आर्थिक सलाहकार बना दिया गया। इसके बाद जब पी वी नरसिंहराव पीएम बनें, तो उन्होंने डॉ मनमोहन सिंह को 1991 में वित्त मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार सौंप दिया। मनमोहन सिंह वित्त मंत्रालय के सचिव, भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। साल 2004 से 2014 के बीच यूपीए-1 और यूपीए-2 सरकार में वे प्रधानमंत्री पद पर रहे।
वित्त मंत्रालय का कामकाज देखते हुए सिंह ने 1991 से 1996 के बीच कई महत्वपूर्ण कार्य किए। उनके पदभार संभालने से पहले देश बड़ी आर्थिक मंदी झेल रहा था। देश
की अर्थव्यवस्था दिवालिया होने के कगार पर थी। यह वह समय था जब भारतीय अर्थव्यवस्था के पास दो हफ्तों से ज्यादा समय तक आयात करने लायक पैसे नहीं थे। विदेशी मुद्रा भंडार में सिर्फ 110 करोड़ डॉलर बचे थे। जब देश का राजकोषिय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 8.5 फीसदी के आस-पास था, तब सिंह ने उसे सिर्फ एक साल के अंदर 5.9 फीसदी तक ला दिया था। देश में ग्लोबलाइजेशन की शुरुआत 1991 में सिंह ने ही की थी। वे जिस प्रारुप और नीति के साथ आर्थिक सुधार लाए, उन्हें आर्थिक क्रांति का नाम दें तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उन्होंने भारत को दुनिया के बाजार के लिए तो खोला ही, बल्कि निर्यात और आयात के नियमों को भी सरल बनाया। यही नहीं, उन्होंने घाटे में चल रहे पीएसयू के लिए भिन्न नीतियां बनाने का काम किया था।
साल 2004 से 2014 के बीच अपने प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान मनमोहन सिंह ने कई उतार-चढ़ाव देखे। अपने कार्यकाल में उन्होंने मनरेगा, शिक्षा का अधिकार और आधार कार्ड योजना जैसे कुछ अच्छे कदम उठाए। उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि थी, भारत और पाकिस्तान के बीच परमाणु समझौता। 18 जुलाई 2006 में मनमोहन सिंह और जार्ज बुश ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे। दूसरी तरफ महंगाई और घोटालों ने जनता को उनके कार्यकाल का सबसे बुरा दौर भी दिखाया। सिंह के कार्यकाल में महंगाई का सबसे बुरा दौर चल रहा था। इस महंगाई से अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह पार नहीं पा सके और अर्थव्यवस्था भी क्षीण होती गई।
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